बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पावन भंडारे के अवसर पर नई किरण मुहिम के तहत एक परिवार ने अपनी विधवा बहू को बेटी बनाकर उसकी शादी की। साथ ही नई सुबह मुहिम के तहत तलाकशुदा महिला और जीवन आशा मुहिम के तहत विधवा की भक्तयोद्धाओं के साथ शादियां हुर्इं। एमएसजी भंडारे को लेकर डेरा सच्चा सौदा की साध-संगत में अनुपम श्रद्धा, अद्वितीय विश्वास और अद्भुत जोश व ज़ज्बा देखने को मिला। सोमवार रात्रि से ही शाह सतनाम जी धाम व शाह मस्ताना जी धाम में साध-संगत का आना शुरू हो गया।
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सुबह 11 बजे ‘एमएसजी रहमोकरम दिवस के भंडारे’ के रूहानी सत्संग की शुरूआत से पहले ही विशाल पंडाल साध-संगत से खचाखच भर चुका था। इसके साथ ही आश्रम की ओर आने वाले सभी मार्गों पर जहां तक नजर पहुंच रही थी, साध-संगत का जन समूह ही नजर आया। सर्वप्रथम साध-संगत ने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां को ‘धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा’ के पवित्र नारे के साथ पावन एमएसजी महारहमोकरम दिवस के भंडारे की बधाई दी।
इसके पश्चात कविराजों ने विभिन्न भक्तिमय भजनों के माध्यम से सतगुरु जी की महिमा का गुणगान किया। तत्पश्चात पूज्य गुरु जी ने रूहानी सत्संग में फरमाया कि पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी दाता, रहबर ने हम पर महान परोपकार किए। ‘‘हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे’’, ये अपने मुरीदों के लिए, अपने शिष्यों के लिए बात कही। और आज सच्चे सौदे के साढ़े छह करोड़ लोग राम-नाम से जुड़े हैं, जो नशे छोड़ चुके हैं, बुराइयां छोड़ चुके हैं, भक्ति से जुड़ गए हैं।
आज फिर से वो ही बात दोहराते हुए हम फिर से कहते हैं कि बेपरवाह जी ने यही फरमाया था ‘गुरु हम थे, हम हैं और हम ही रहेंगे, तो आज भी ज्यों का त्यों वो बरकरार है। आज का दिन इसलिए भी विशेष हो जाता है कि आज के दिन दाता, रहबर ने सरेआम जाहिर किया कि हम शाह सतनाम, जिसे दुनिया ढूंढती है, आप सबके सामने जाहिर कर रहे हैं, आप सबके सामने उनको बैठा रहे हैं। तो मुर्शिद-ए-कामिल दाता का जो रहमोकरम है, वो हम सब पर बेइंतहा है। उन्होंने गाँव, शहरों और कस्बों में जा-जाकर लोगों का नशा छुड़ाया, बुराइयां छुड़ाई और नरक जैसे घरों को स्वर्गमय बना दिया। तो उस दाता को अरबों-खरबों बार सजदा है, नमन है।
भक्ति इबादत करके समाज की बुराइयों को दूर करना
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि उस परमपिता परमात्मा, दाता ने हमें वो नज़ारे दिए, जो दोनों जहानों में हमेशा बरकरार रहने वाले हैं। सर्वधर्म संगम, सभी धर्मों का सत्कार करना सिखाया। आज सच्चा सौदा में जो सेवादार बैठते हैं, साध-संगत बैठती है, वो ये पूछकर नहीं बैठती कि तेरा धर्म कौन सा है? बल्कि एक-दूसरे को भगवान से प्रेम करने वाला प्रेमी कहती है, सत्संगी कहती है, भाई कहती है, बहन कहती है या बुजुर्ग कहती है। कभी भी कोई किसी धर्म-जात, मजहब के बारे में नहीं पूछता। ये नहीं कहता कि तूं कौन से धर्म वाला है? ये नहीं कहता कि आगे तो ये धर्म वाला बैठेगा बाकी पीछे बैठेंगे, यहां ऐसा कुछ भी नहीं है।
इन्सानियत, मानवता का पाठ शाह सतनाम जी दाता रहबर ने, शाह मस्ताना जी दाता रहबर ने सच्चा सौदा बनाकर चलाया। इसमें रूहानियत, सूफियत का ये मार्ग है, जो उन्होंने चला रखा है, चल रहा है, चलता रहेगा। यहां जो भी श्रद्धा भाव से आकर बैठता है और ध्यान से सुनता है उसे अपने हर सवाल का जवाब मिल जाया करता है। सूफियत का मतलब समाज में रहकर, भक्ति इबादत करके समाज की बुराइयों को दूर करना।
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