बरनावा। सच्चे रूहानी रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शाह सतनाम जी आश्रम बरनावा (यूपी) से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से साध-संगत के आॅनलाइन सवालों के जवाब देते हुए उनकी जिज्ञासा को शांत किया।
रिया : गुरु जी मैं हरियाणा के सफाई महा अभियान में शामिल हुई थी। इससे पहले डॉक्टरों ने मेरे लीवर में गंभीर प्रोब्लम बता दी थी, पर सफाई महा अभियान के बाद मैं बिल्कुल स्वस्थ हो गई हूँ।
पूज्य गुरु जी ने दिया जवाब: रामजी की कृपा है। आपको बोला था कि ये महायज्ञ है। अब महायज्ञ में जो कोई आहूति डालता है, ये पुरातन समय से हमारे पवित्र धर्मों में दर्ज है कि महायज्ञ में जब कोई आहूति डालता है तो उसका भला तो होना ही होना है, आज नहीं तो कल। तो आपका हाथों हाथ हो गया। ये रामजी की कृपा है, उस ओउम की कृपा है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि एक-दूसरे के बारे में कोई गलत बात कहे तो शांति से सुनो। एक दिन गुजारो और अगले दिन बात करो। हो सकता है वो आपको लड़ाने के लिए बात कर रहा हो। गृहस्थ ज़िंदगी में संयम बेहद जरूरी है, ये भी आपको बताया। घर-गृहस्थ में रहते हुए क्या भक्ति की जा सकती है? घर-परिवार में रहते हुए क्या परमपिता परमात्मा के, उस भगवान के दर्शन हो सकते हैं? जी हां, आप अपने घर-परिवार में रहिये, जिस धर्म को मानते हैं मानते रहिये, पर तालमेल बैठाइये, काम-धंधा करते हुए राम का नाम जपने का। हमारे धर्मों में लिखा है, पवित्र वेदों में कर्मयोगी और ज्ञानयोगी। सभी धर्मों में यही बात आती है हक हलाल की रोजी-रोटी, अल्लाह की इबादत, दसां नहुंआं दी कीरत कमाई, वाहेगुरु का नाम जपना, हार्ड वर्क्स और गॉड प्रेयर, तो जो पवित्र वेदों में बताया, सब कुछ वैसे हर धर्म में बताया गया। क्योंकि पवित्र वेद हमारे पुरातन हैं। सो वहीं से शुरूआत करते हैं। तो इन सभी में बताया है कि काम-धंधा करते हुए, कर्मयोगी रहते हुए आप ज्ञानयोगी बन सकते हैं। या यूं कहें कि पहले ज्ञान योगी बनिए फिर कर्मयोगी बनिए। अच्छे-बुरे का ज्ञान हो और अच्छे-बुरे की पहचान हो तभी आप कर्म करें। कर्म, कोई भी कार्य तो आप गलत भी कर सकते हैं। अगर आपको ज्ञान नहीं, तो इसलिए ज्ञान होना जरूरी है। जब तक ज्ञान नहीं होता तब तक मालिक की कृपा दृष्टि के काबिल आप नहीं बन सकते। ज्ञान के बिना कर्म सही नहीं है।
ज्ञान जब होता है, पता चलता है, कौन सा कर्म सही है, कौन सा कर्म गलत है। तो ज्ञान योगी होना कैसे संभव है? मान लीजिये आप कोई काम-धंधा करते हैं, आप गाड़ी चलाते हैं, खेती-बाड़ी करते हैं, आप बिजनेस व्यापार करते हैं तो उसमें यह जरूरी है, काम-धंधा करते रहिये, हाथों-पैरों से कर्म करने हैं और जीभा से, ख्यालों से प्रभु का नाम जपना है। आप गाड़ी चला रहे हैं, हाथों से स्टेयरिंग, देखना सामने है, पैरों से क्लच, ब्रेक या एक्सीलेटर दबाते हैं, जीभा से तो कोई क्लच, ब्रेक नहीं दबाते। चलाते जाइये गाड़ी और जीभा से ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम का नाम लेते जाइये, तो ये है ज्ञानयोगी का ज्ञानयोगी और कर्मयोगी के कर्मयोगी। जहां जाना चाहते हो वहां भी पहुंच गए और प्रभु का नाम भी होता जा रहा है। इसी तरह खेती-बाड़ी में आप ट्रैक्टर चला रहे हैं तो राम-नाम के गीत गाइये और ट्रैक्टर हाथों-पैरों से चलाते रहिये। हल जोतते रहिये, आपको करके भी दिखाया था पिछली बार।
तो ज्ञानयोगी के ज्ञानयोगी और कर्मयोगी के कर्मयोगी। तो ये तालमेल बैठाना है आपने। आप पैदल जा रहे हैं, वॉकिंग करते हैं, सुबह सबेरे दौड़ना, भागना, वॉकिंग करना अच्छी चीज है अगर आप कर पाओ तो। पर जीभा तो खाली होती है, उससे तो भागना नहीं, विचारों में तरह-तरह के विचार आ जाते हैं, वो तो सही नहीं। इसलिए आप अपने विचारों से सुमिरन करें, भक्ति करें और जीभा से भी प्रभु का नाम लें और काम-धंधा करते रहिये। वॉक कर रहे हैं, लेटे हुए हैं, बैठे हुए हैं, फुर्सत के क्षण हैं, सोने जा रहे हैं, यकीन मानों कि अगर आप लेटे-लेटे भी राम-नाम जपोगे तो बहुत जल्दी नींद भी आएगी, बढ़िया नींद आएगी और हो सकता है सपनों में भी भगवान आपके कोई कर्म काट दें। तो इस तरह घर-गृहस्थ में रहते हुए प्रभु का नाम लिया जा सकता है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि क्या समाधि में भी बैठा जा सकता है? सुन्न समाधि कहते हैं, जी हाँ, आप संयम बरतेंगे तो समाधि में भी बैठकर मालिक के नूरी स्वरूप के दर्शन कर लेंगे। संयम यानि काम-वासना, विषय-विकार, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया पर कंट्रोल। चलते, बैठके, लेटके, काम-धंधा करते सुमिरन करते हुए आप कर सकते हैं। और उसके बाद जैसे ही आलथी-पालथी मारकर बैठेंगे, ध्यान यहां (दोनों आँखों के बीच में ललाट) पर जमाएंगे तो उससे क्या होगा, समाधि की तरफ आप बढ़ने लगेंगे। तो समय लग सकता है, लेकिन आप ये अभ्यास अगर लगातार जारी रखेंगे तो यकीनन आप सुन्न समाधि में भी नूरी स्वरूप के दर्शन कर सकते हैं। तो घर-बार छोड़ना कोई जरूरी नहीं है। घर-बार छोड़कर, परिवार त्यागकर जंगलों में जाना, उजाड़ों में, पहाड़ों में रहना को जरूरी नहीं है। घर-परिवार में रहते हुए कर्मयोगी होते हुए भी ज्ञानयोगी बनिए तो यकीन मानिए, ऐसा करने से घर में सुख-शान्ति भी आती है और खुशियां भी मिलती हैं। घर-गृहस्थ में या ब्रह्मचर्य में, किसी भी आश्रम में रहते हुए अगर आपका आत्मबल बढ़ जाता है तो इम्युनिटी आॅटोमैटिकली बढ़ जाती है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि बीमारियों से लड़ने की शक्ति कैसे बढ़ाई जाए? बहुत सारी चीजें खाने-पीने की आ गर्इं हैं, जिसमें बड़े-बड़े लेवल, जब से ये कोरोना महाबिमारी आई थी, उसके बाद तो इम्युनिटी छोटे-छोटे बच्चे भी सीख गए कि ये भी कोई चीज होती है, पहले नहीं पता होता था। तो अब उसके लिए प्रोडक्ट बड़े बन गए हैं। ये ले लो जी, ये बूस्ट कर देगा, वो ले लो बूस्ट कर देगा। करता होगा, हम नहीं कहते कि नहीं करता, करते हैं। जड़ी-बूटियां चीजें ऐसी होती हैं जो अंदर की लड़ने की शक्ति को बढ़ा देती हैं। पर हमारे आदिकाल से महापुरुषों, ऋषि-मुनियों ने ये कहा कि अगर आप मेडिटेशन करते हो, ध्यान में बैठते हो तो आपके अन्दर की शक्ति खासकर लड़ने की शक्ति बहुत ज्यादा बढ़ जाती है, बीमारियों से लड़ने की शक्ति, बुराइयों से लड़ने की शक्ति। क्योंकि राम-नाम से, आपको रोज ही बताते हैं, कि डीएनए के सैल पावरफुल होते हैं। डीएनए पावरफुल होते ही दिमाग को मैसेज करता है और दिमाग सारे शरीर को कंट्रोल करता है, सारा खेल ही दिमाग का है। 40 साल के बुजुर्ग भी देखे हैं और 80 साल के जवान भी देखे हैं। ये सब दिमाग का खेल है। सोच लिया कि ओ…हो…बूढ़े हो गए, हिला नहीं जाता, बस साथ की साथ ही बूढ़े होने शुरू हो जाते हैं। और अगर अंदर ये धारण कर लिया कि नहीं… वो शायद किसी ने फिल्म में बोला होगा, पता नहीं सुना है कि ‘बूढ़ा होगा तेरा बाप’। तो अंदर भावना एक ऐसी, ज़ज्बा एक ऐसा रखो, कि हाँ मेरा शरीर तंदुरुस्त है, मैं सही हूँ, एक्सरसाइज करो, सही काम-धन्धा करो और साफ में राम का नाम जपो।
ये धर्मों में लिखा है कि प्रभु के नाम का सुमिरन और शारीरिक मेहनत, योगा या कोई भी कड़ा परिश्रम आप करते रहिये तो यकीन मानों आपके अन्दर की जो बीमारियों से लड़ने की क्षमता है वो बढ़ती जाएगी, आप शक्तिशाली होते जाएंगे और बीमारियों से आप जीत हासिल कर पाएंगे। तो ये ब्रह्मचर्य में और गृहस्थ में रहते कर सकते हैं। इसके लिए कुछ अलग से करना नहीं होता। जीभा, ख्यालों से मेडिटेशन, गुरुमंत्र का जाप करना है। जैसे-जैसे आप जाप करते जाएंगे, वैसे-वैसे आपकी आत्मिक शक्ति बढ़ती जाएगी। जैसे-जैसे राम-नाम की भक्ति करते जाओगे, वैसे-वैसे आपका चेहरा नूर से भरता जाएगा, शरीर में शक्ति आती जाएगी और अचंभित हो जाता है इन्सान, दंग रह जाता है कि ये कैसे पॉसीबल है? कि आदमी की शक्ति ज्यों की त्यों रहे। ब्रह्मचर्य, ब्रह्मचर्य का पालन ज्यादा करो। घर-गृहस्थ में रहते हुए भी ब्रह्मचर्य का पालन करो। बुरा ना मानना, हमने आमतौर पर देखा, पवित्र वेदों में संतों ने, महापुरुषों ने भी लिखा और हमने प्रैक्टिकली भी देखा कि पशु जो होते हैं वो तभी आपस में मिलते हैं जब बच्चा लेना हो। आदमी तो पशुओं से इस मामले में बहुत ही, बुरा ना मानना, पिछड़ा हुआ है। तो संयम, इसे कहते हैंसंयम। वो संयम ही रखते हैं सारी उम्र। बस ये है कि कुदरत ने जब चाहा, कि भई वंश आगे बढ़ाना है, तभी वो आपस में मिलते हैं। लेकिन इन्सान ने ख़ुदमुखत्यारी की वजह से नए-नए खेल बना रखे हैं, नए-नए पैंतरे बना रखे हैं।
इन्सान भी अगर संयम बरते, घर-गृहस्थ में रहता हुआ ओउम, हरि, अल्लाह, राम, गॉड, ख़ुदा, रब्ब की भक्ति करे तो यकीन मानो वो बेइंतहा सुखी रह सकता है, बेइंतहा खुशियां हासिल कर सकता है, तंदुरुस्ती हासिल कर सकता है। तो ये अपने विचारों को काबू करना, अपने पर कंट्रोल करना आ जाता है राम-नाम से। इसलिए भाई, ये अंदर की जो शक्ति है, आत्मिक शक्ति है, जैसे-जैसे बढ़ती जाएगी, बीमारियों से लड़ने की, ख़ुद की बुराइयों से लड़ने की, ख़ुद की बुरी आदतों से लड़ने की शक्ति आपमें आती जाएगी और जैसे-जैसे ये बुराइयां, आदतें बदलती जाएंगी, वैसे-वैसे आप मालिक की कृपा दृष्टि के लायक ही नहीं बनोगे बल्कि घर-परिवार में भी आपके खुशहाली आएगी, तरक्की होगी।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि घर-गृहस्थ में रहना, पर संयम हो। संयम पति-पत्नी दोनों में होना चाहिए। अदरवाइज पारिवारिक ढांचा बिगड़ सकता है। अदरवाइज झगड़े हो सकते हैं। अदरवाइज रिश्तों में खटास, शक और पता नहीं क्या-क्या चीजें आ जाएंगी और रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच जाएंगे। हाँ, दोनों में संयम हो, जोकि सुमिरन से ही हो सकता है, राम-नाम, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, ख़ुदा, रब्ब की भक्ति से ही संयम आता है और संयम एक ऐसी चीज है, जो इन्सान को बेइंतहा खुशियां देती है। तो घर-गृहस्थ में रहते हुए संयम होना ही चाहिए। ब्रह्मचर्य में तो ये परफैक्ट होता है, अगर कोई ब्रह्मचर्य का पालन करे। पर घर-गृहस्थ में सुमिरन के द्वारा, भक्ति के द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है अपने विचारों को, अपने ख्यालों।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आदमी का दिमाग विचार शून्य नहीं होता। कुछ न कुछ अंदर चलता ही रहता है, चलता ही रहता है। और हर आदमी की मन की इच्छा पूरी नहीं होती। ये नहीं होता कि आपने जो सोच लिया वो पूरा ही होगा, ऐसा संभव नहीं है। हाँ, जो आपके लिए अच्छा है वो तब पूरा होगा जब आप संयमी बन जाओगे, जब आप प्रभु के नाम का सुमिरन करोगे, तब आप मानने लगोगे कि प्रभु ने जो किया ठीक था, जो कर रहा है ठीक है और आगे जो होगा ठीक होगा, ऐसा सोच लिया समझो भक्त बन गए। अदरवाइज, अगर आप तरह-तरह के विचारों की, प्रश्नों की दवार खड़ी करते रहते हो भगवान के सामने, उससे होता कुछ नहीं, लेकिन आपके भक्ति मार्ग में बाधाएं आना शुरू हो जाती हैं, तो भाई सुमिरन कीजिये, कर्मयोगी, ज्ञानयोगी बनिए, चलते, बैठके, लेटके, काम-धंधा करते हुए सुमिरन किया करो। और कई बार, जैसे बच्चों ने कहा था कि गुरु जी वो कौन सा तरीका है, जो दौड़ने से वजन कम होता है, आज हमने वो आपके लिए डाला भी है फोन पर, कि कैसे वो दौड़ना चाहिए, कैसे वो स्पीड होती है, ना वॉकिंग है, ना दौड़ना है, बीच का थोड़ा सा। वो जंप लेकर चलने का एक तरीका होता है, बाकी आप फॉलो कीजिये, ये तो हमारा ख़ुद का आजमाया हुआ परफैक्टली असरदार है, करना तो आपने है, आपके हाथ में है। उससे वजन लाजमी उड़ता (घटता) है। लेकिन ये थोड़ा ही ना है कि सिर्फ ये करने से वजन उड़ (घट) जाएगा।
वो करके पाँच-चार पीजें रगड़ दिये, वजन तो दोगुना हो जाएगा। तली चीजें खा गए, घी-दूध का ज्यादा सेवन कर लिया। तो खाने-पीने पर कंट्रोल करना बेहद जरूरी है। भूखे मत रहो, चेहरे की रौनक उड़ जाती है। ये नया सा एक वर्ड आया है डायटिंग, हम डायटिंग पर हैं और मुंह सूखकर वो, मतलब क्या कहें, बुरा लगता है, बच्चे बुरा मनाएंगे। अजीब सा हो जाता है। जैसे आम का ऊपर का सारा चूस लिया जाए और नीचे गुठली सी रह जाती है। अजीबोगरीब सा हो जाता है, फिर कहते हैं कि ये क्या हो गया? तो बच्चों भूखे रहकर आप क्यों अपने आप को सजा दे रहे हो? खाओ, खाकर कम करो। जितना मर्जी सलाद खा लो, बॉडी वेट इनटू टैन ग्राम आप फ्रूट खाओ। तो इस तरह से अगर खाकर कम हो जाए तो ज्यादा अच्छा नहीं। आपके मिनरल्स भी पूरे हों, चेहरे पर भी कोई फर्क ना पड़े और वजन भी कम हो जाए। तो इस तरह से, बात घूम घुमाकर वहीं पर आती है कि संयम, खाने-पीने में भी संयम रखना होगा।
सामने सामान देखा टूट पड़ते हो। फिर आगे से पूछो, कई भारी बेटे-बेटियां आते हैं हमारे, पूछते हैं उनसे कि बेटा मोटा कैसे हो गया? कहता पता नहीं गुरु जी। अरे ज्यादा खाता होगा, तो कहता है कि ना जी, मेरे तो पानी भी लगता है। हमने कहा पानी लगता है, बेचारे गरीब पानी पीते हैं ज्यादा उनके तो नहीं लगा। असली सामान तो बताना नहीं है ना कि क्या-क्या खा जाते हैं सोने के बाद माँ-बाप के। या जागते हुए भी दांव लगा जाते हैं, देखा कि कोई है तो नहीं, मुंह में सीधा ही पार, ऊँट की तरह अंदर ही सीधा। कई तो चबाते ही नहीं, कब्जी हो जाती है फिर अलग चक्कर पड़ता है। पवित्र वेदों में लिखा है कि भोजन जो है खाने-पीने की चीज उसको पीओ, यानि उसको इतना चबा दो कि वो पानी की तरह हो जाए। और पानी को खाओ, सिप-सिप करके आराम से पानी पीया करो, जल्दबाजी ना किया करो। तो भाई हमारा काम बताना है, मानना आपने है। मानोगे तो भगवान जी, संत, पीर-पैगम्बरों ने जो लिखा उनके द्वारा बताई गई बातों से खुशियां जरूर मिलेंगी।
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