बरनावा। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि किसान की फसल तबाह हो गई, बड़ा दर्द है, छह महीने मेहनत करता है, क्योंकि हम भी किसान के घर पैदा हुए। बड़ा दर्द होता है जब पकी-पकाई फसल बर्बाद हो जाती है। एक बार ऐसा ही हुआ था कि 1983-84 की बात होगी, बरसात आ गई। गेहूं की मंडलियां बोलते हैं, ढेरियां बोलते हैं, काटकर जगह-जगह लगा देते हैं। अब वो खलिहान में लाकर रखी। बरसात आ गई, अगले दिन धूप वगैरह निकली, उसको बिखेर दिया। दो दिन धूप पड़ी वो सूखने लगी, तीसरे दिन फिर बरसात आ गई।
तो गेहूं बिल्कुल काली पड़ गई और बदबू आने लग गई। बहुत मुश्किल से थोड़ी सी गेहूं घर के लिए बची। तो इतना खर्चा किया होता है, कैसे कंट्रोल करें? पर इसका मतलब ये थोड़ी ना है कि आत्महत्या कर लो। खाने को तो मिल गया, जीने का तो है। चलो कर्जा उठा लिया उसका दर्द है। पर मरने से क्या कर्जा उतर जाएगा? क्या घर के लिए जो समस्या खड़ी हो गई वो हल हो जाएगी? जी नहीं, हे किसान भाइयों! ऐसा करने से आप ही नहीं, आप सारे परिवार को दुखी कर गए।
किसी बात को अंदर ही अंदर मत रखो। आप घर परिवार में बैठकर दु:ख सांझा करो कि भई आपां इतना कर्जा उठा चुके हैं, फसल अपनी तबाह हो गई, अब आपां ने हाथ बंद करके खर्चा करना है, मतलब कम से कम खर्चा। ज़िंदगी का जीवन यापन करना है, ऐशोआराम को तिलांजली दे दो, छोड़ दो। तो सारे परिवार में जब आप बात करोगे तो आधा बोझ तो वैसे ही उतर जाएगा। क्योंकि एक अकेला आदमी जब दिमाग में रखता है तो दिमाग में टैंशन पैदा हो जाती है, उससे आत्महत्या के चांस ज्यादा हो जाते हैं। और जब वो ही बात पूरी फैमिली में और संयुक्त परिवार में हो तो कहना ही क्या यानि बहुत अच्छा है।
फिर तो सारे परिवार वाले मिलकर लग जाएंगे कि हाँ, हमारे ऊपर कर्जा है और हमने मेहनत करनी है, यकीन मानिये रास्ते जरूर मिल जाते हैं, जब इतने दिमाग इकट्ठे सोचते हैं। पर आत्महत्या ना करो। हे किसान भाइयों! ठीक है कुदरत के कादिर ने कहर बरपा दिया, माना आप बर्बाद हो गए, पर बर्बाद हो गया… बर्बाद हो गया…गाने से क्या आबाद हो जाओगे? फिर से मेहनत के लिए तैयार हो जाओ, आप कर्मठ हैं, आप हिम्मत वाले हैं, आप योद्धा हैं, शूरवीर हैं। फिर से लग जाइए जमीन के साथ मेहनत करने और हो सकता है अगले छह महीने में आपका कर्जा भी उतर जाए और फायदा भी हो जाए।
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