संत इन्सान को सच से जोड़ते हैं : पूज्य गुरु जी

बरनावा। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा (यूपी) से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से फरमाया कि संत सच्चा कौन सा होता है? संतों का काम क्या होता है? संत किसलिए दुनिया में आते हैं? संतों का मकसद क्या होता है इस समाज में आने का, इस धरती पर आने का? संत-जिसके सच का कोई अन्त ना हो, सन्त-जो सच से जुड़ा हो, संत, जो सदा सबके भले की चर्चा करे, सन्त-जो सबकुछ त्याग कर सिर्फ और सिर्फ ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम की औलाद का भला करे, सन्त-जो सच्ची बात कहे, चाहे कड़वी लगे या मीठी लगे, सन्त-जो सच से जोड़ दे और सच क्या है, ये भी सन्त बताए, कि भाई ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, गॉड, ख़ुदा, रब्ब सच था और सच ही रहेगा।

उसको छोड़कर चन्द्रमा, सूरज, नक्षत्र, ग्रह, पृथ्वी जितना भी कुछ नज़र आता है, जो कुछ भी आप देखते हैं सबने बदल जाना है और जो बदल जाता है, उसे सच नहीं कहा जा सकता। सच तो वो ही है जिसे एक बार सच कह दो तो हमेशा सच ही रहता है। तो सन्तों का काम सच से जोड़ना होता है। सन्त हमेशा सबका भला मांगते हैं। ‘‘सन्त ना छोड़े संतमयी, चाहे लाखों मिलें असन्त’’ सन्तों का काम सन्तमत पर चलना होता है, सबको बताना कि ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम, वो ओउम वो दाता आपके अन्दर है, उसको देखना चाहते हो तो आप भला करो, मालिक के नाम का जाप करो तो आपके अन्दर से ही वो नज़र आ जाएगा।

पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि लोग परमपिता-परमात्मा को, उस ओउम, हरि, अल्लाह, गॉड, ख़ुदा, राम को पाने के लिए, उसे ढूंढने के लिए जंगलों, पहाड़ों, उजाड़ों में जाते हैं, शायद अज्ञानवश या कोई रिद्धि-सिद्धि के लिए, शायद वैराग्य में, त्याग में भगवान के लिए जाते हों तो कितनी हैरानीजनक बात है कि आप उसे बाहर ढूंढ रहे हो और वो आपके अन्दर बैठा राम आवाज दे रहा है कि अरे मैं तो कण-कण में रहता हूँ तो तेरा शरीर भी उसी कण में आ गया, मैं तेरे अन्दर हूँ, अन्दर से ढूंढ तुझे जरूर मिल जाऊंगा। पर अन्दर उस परमपिता परमात्मा को पाने के लिए अपने विचारों का शुद्धिकरण करना होगा। अपने ख्यालों का शुद्धिकरण करना होगा।

पाखंडवाद, ढोंगे, ढकोसले कभी भी इन्सान को परमात्मा से नहीं मिलाते। बहुत सारे पाखंड हैं, बहुत सारे ढोंग हैं, जिसमें समाज उलझकर रह गया है। दिनों का चक्कर पड़ गया। कोई कहता है फलां दिन अच्छा है, कोई कहता है कि नहीं, फलां दिन अच्छा है। अरे भगवान ने, परमात्मा ने दिन-रात बनाए हैं, ताकि इन्सान कहीं लोभ-लालच में आराम ही ना करे और इसका दिमाग रूपी पुर्जा हिल जाए, इसलिए दिन-रात बना दिए, समय बना दिया और हमारे ही पूर्वजों से समय की गणना करवाकर ये बता दिया कि 24 घंटे हैं, आठ पहर हैं, जो भी उन्होंने बताया। ताकि सही समय पर आदमी सो जाए और सही समय पर उठकर काम-धंधे पर लग जाए।

तो परमपिता परमात्मा ने कोई दिन, कोई तारीख बुरी नहीं बनाई है। जैसे कर्म करोगे फल लाजमीं भोगेगे। संत, दया-कृपा की बात करते हैं, क्योंकि भगवान कृपा निधान है, दया का सागर है, रहमत का मालिक है। इसलिए जो संत, पीर-फकीर होते हैं, वो परमपिता परमात्मा से जुड़े होते हैं, वो भी यही बात कहते हैं। कोई भी उनसे कहेगा कि जी, मैं गलत कर्म कर बैठा, उनका काम होता है माफ कहना, क्योंकि जब तक वो वचन करते हैं कि ये एक हद है, कि आज के बाद मत करना, आप फिर भी वो ही चीज दोहराते हैं, तो संत तो माफ कर देंगे, लेकिन वो राम हो सकता है कर्मों का लेखा-जोखा लेगा। क्योंकि संत कभी किसी को बुरा कहते ही नहीं, ये तो इन्सान की मनघडंत बातें होती हैं, कितने भी संत, पीर-फकीर, गुरु साहिबान, महापुरुष आए हैं उन्होंने सच लिखा था, आज भी सच है और आने वाले समय में भी वो सच रहेगा।

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पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कई पढ़ लिखकर कढ़ जाते हैं लोग यानि बेहद पढ़ जाते हैं तो वो भगवान को मानना बंद कर देते हैं। हम तो जी नास्तिक हैं, ऐसा कहने में उनका मज़ा आता है। कई लोगों से हमारा वास्ता पड़ा और लगभग ज्यादातर लोगों ने कहा कि हम तो इतिहास को मानते हैं। हम तो विज्ञान को मानते हैं। भगवान या ओउम, हरि, अल्लाह, राम को नहीं मानते। इतिहास को भी मनुष्य ने लिखा है। इतिहास के साथ-साथ विज्ञान के प्रयोग मनुष्य कर रहा है। और धर्म को भी लिखने वाला पहले मनुष्य, फिर सन्त बना, ऋषि-मुनि, पीर-पैगम्बर, गुरु, महापुरुष बने। यानि दोनों को लिखने वाले मनुष्य हैं। पर देखने वाली बात ये है कि इतिहास या विज्ञान के प्रयोग जिन्होंने किए, ज्यादातर उनमें शादीशुदा, बाल-बच्चे, परिवार वाले हैं और हमारे संत, पीर-फकीर, ऋषि-मुनि, महापुरुष, जिन्होंने धर्मों को लिखा, सारी ज़िंदगी त्याग दी, सिर्फ धर्म को बनाने के लिए, समाज को बचाने के लिए, अब सोचने वाली बात है कि दोनों में गलत कौन लिख सकता है।

हालांकि गलत कोई लिखता नहीं, पर फिर भी शक की सुर्इं किस तरफ जा सकती है। अब एक है सन्त, जिनको किसी से कोई मतलब नहीं, जो सब कुछ त्याग देते हैं। चाहे वो घर-गृहस्थ में रहते रहे हों, चाहे वो बाल-ब्रह्मचारी रहते हों, पर उन्होंने समाज के सारे सुख को त्याग दिया, एक तो वो हैं। और दूसरे वो जो सारे सुख भोग भी रहे हैं और प्रयोग कर भी रहे हैं। तो कहीं न कहीं कोई झूठ बोल सकता है तो दूसरे वाला, क्योंकि वो बाल-बच्चे, परिवार में वो खोया हुआ है, उनके लिए पैसा कमाने के लिए, उनके लिए ज्यादा आ जाए, मान-बड़ाई के लिए। हमारे पाक-पवित्र वेद, जितने भी पवित्र सभी धर्मों के पवित्र ग्रन्थ हैं सारे के सारे सच थे, सच हैं, सच रहेंगे।

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