बरनावा। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि बच्चों की अलग-अलग आदतें होती हैं, जो बचपन से बन जाया करती हैं। माँ-बाप की अनदेखी की वजह से, माँ-बाप के ज्यादा लाड़-दुलार की वजह से, इसके कारण हैं, बच्चे की नींव जैसी रखी जाती है बड़े होकर बिल्डिंग भी वैसी बनती है। शुरूआत में अच्छे संस्कार देना भी माँ-बाप का फ़र्ज है। ये गृहस्थ आश्रम जो आपको बोला, हमारे पवित्र वेदों में बताया हुआ है, उसी का एक अंश है। माँ-बाप का फ़र्ज है बच्चों के लिए समय देना, उनको देखना, आब्जरव करना कि ये बच्चा किस मिज़ाज का है।
आप बच्चों का पालन-पोषण करते हो, आप कहते हो कि मैंने तो बढ़िया किया, सही है, अच्छा खिलाया, अच्छा पिलाया, अच्छे स्कूल में लगा दिया, अच्छे कपड़े, क्या यहीं बात समाप्त हो गई? जी नहीं, क्या आपने उसको जायज और नाजायज, सही और गलत के बारे में बताया। आपको लाडला हो जाता है, काफी देर बाद हो जाए और लाडला हो जाता है, हमारी रीत है। जल्दी हो जाए तो ठीक ठाक लाड, कई सालों बाद हो जाए तो ज्यादा लाडला और जो लाडला बच्चा होता है उससे आप हद से ज्यादा प्यार करने लग जाते हैं, उसकी गलत बातों को भी आप मानने लग जाते हैं, यहां से शुरूआत होती है गलत नींव की, गलत आधार की, बेस आपने गलत बना दिया।
कितना भी प्यारा हो आपको आपका बच्चा, उसकी गलत बात को कभी भी मानों ना और सही बात को, जहां तक संभव हो जरूर मानो। तभी स्ट्रॉन्ग नींव होगी, तभी स्ट्रॉन्ग बेस होगा। मजबूत नींव जब होती है तो भवन भी मजबूत बना करते हैं। उसको शुरूआत में पता लग जाए कि हाँ गलत तो गलत है, वो जिद्द नहीं मानी जाएगी, सही मानी जाएगी। थोड़ा बच्चा रो लिया, कई माँ-बाप साथ ही शुरू हो जाते हैं।
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