रूहानी मजलिस
बरनावा। (सच कहूँ न्यूज) सच्चे, दाता रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने वीरवार शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा (यूपी) से आॅनलाइन गुरुकुल के माध्यम से अपने पावन वचनों के द्वारा घमंड, अहंकार को त्याग कर दीनता, नम्रता से जीवन यापन की शिक्षा दी। आपजी ने सबसे नि:स्वार्थ प्रेम भाव और मीठा बोलने का भी आह्वान किया।
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आॅनलाइन गुरुकुल में पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि संत, पीर, फकीर इस दुनिया में सच की राह दिखाने आते हैं। सच की बात बताते हैं। सबका भला करना उनकी ज़िदगी का मकसद होता है। कभी भी किसी को किसी भी तरह दुखी देखकर अगर संत, पीर, फकीर के अंदर तड़प पैदा नहीं होती तो वो संत ही नहीं हो सकता। रूहानी संत, सूफी संत का मतलब ही ये है, आत्मिक संत कह लें, आत्मिक मंथन करता है। समाज में चल रही बुराइयां, कुरीतियां और बुराई को बढ़ावा देने वाली चीजों को रोकने के प्रयास करता है। संत का काम परमपिता परमात्मा की ड्यूटी निभाना होता है। वो इस धरा पर आकर धन-दौलत, जमीन-जायदाद, अपने लिए ऐसा कुछ अर्जित करने की नहीं सोचते।
अगर वो कर्मयोगी होते हैं तो वो जो भी पैसा अर्जित करते हैं वो समाज की भलाई में लगा देते हैं। यही उनका मकसद होता है। कर्मयोगी वो होते हैं, ज्ञानयोगी होते हैं। जो खुद कर्मयोगी होगा वो दूसरे को ज्ञान की बात बताएगा। तो जैसे हम पिछली बार आप लोगों को बताया करते थे कि ब्रह्मचर्य आश्रम में जो संत, पीर, फकीर होते थे, उनमें बहुत सारे ऐसे भी होते थे, जो खुद कर्मयोगी होते थे। क्योंकि ब्रह्मचर्य में यह सिखाया जाता है, कर्म करना धर्म है और धर्म पर अमल करना ज्ञान है। सिर्फ सुनना ज्ञान नहीं है, सुनकर अमल करना असली बात है। आप संत, पीर, फकीर के सामने बैठो, जितनी मर्जी वाह-वाह करते रहो, जितना मर्जी कुछ कहते रहो, लेकिन अगर कर्मों से बुरे हो तो भोगना आज नहीं तो कल पड़ेगा।
सेवादारों को मिला प्यारा नाम ‘प्रेमी सेवक’
सच्चे दाता रहबर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने वीरवार को फरमाया कि प्यारी साध-संगत जीओ अभी तक जिन सेवादारों को ‘भंगीदास’ कहा जाता था, उन्हें अब ‘प्रेमी सेवक’ कहा जाया करेगा। पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज ने डेरा सच्चा सौदा के मुरीदों को प्रेमी नाम से नवाजा था। प्रेमी का मतलब भगवान से प्यार करने वाला, इन्सानियत से प्यार करने वाला, प्रकृति से प्यार करने वाला है। आगे से आप गाँव का प्रेमी सेवक, ब्लॉक का प्रेमी सेवक बोला करें। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि पहले सैक्टरी होता था, फिर भंगीदास हुआ और अब प्रेमी सेवक किया गया है।
संतों से अपने गुनाह नहीं छुपा सकते: पूज्य गुरु जी
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि संत कभी किसी की मान-बड़ाई में नहीं आते। आप उपमा के शब्द कह दोगे, वाहवाही कर दोगे तो इसका मतलब ये नहीं है कि आपने अपने गुनाह छुपा लिए और संत को बेवकूफ बना दिया। बुरा ना मानना, आप ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु की किसी पाक-पवित्र जगह पर जाते हो या किसी संत, पीर, फकीर के सामने और कहीं आप ये सोच लेते हो कि आप अपनी बातों से संतों को खुश करके कोई नयामत खरीद लोगे तो आपका भ्रम है। इस भ्रम में मत जीओ। कर्म करो और ज्ञान योगी बनो।
संत जो ज्ञान बताएं, धर्मों के पाक-पवित्र ग्रन्थ, गुरु साहिबान, पीर-पैगम्बर, ऋषि-मुनि, जो ज्ञान बताया उन्होंने, जो उन पर अमल करता है वो ही पवित्र जगहों पर जाकर खुशियां हासिल कर सकता है। वो तो अपने घर में रहकर भी खुशियां ले सकता है, फिर संतों के पास जाना क्यों? आदमी माने या ना माने जब संतों के रूबरू होते हो ना आप, पवित्र जगहों के पाक-पवित्र ग्रन्थों के सामने नतमस्तक होते हो ना आप तो एक पॉजीटिव वेवस, किरणें आती हैं, स्वस्थ किरणें, जो आपको उकसाती हैं कि अच्छे कर्म करो और अपनी बुराई को निकाल डालो या मार डालो।
पवित्र स्थानों पर खुले दिल से जाइये
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि जो बुरा कर्म करता है, उसके पास जाओगे तो नेगेटिव एनर्जी आती है। गलत सोच आती है, गलत भावना आती है और गलत ही विचार आते हैं। और जब आपको पता है कि पवित्र जगहों पर आप जाओ पवित्रता के साथ, ग्रहण करने के लिए, नैरो माइंड (संकीर्ण सोच) के साथ नहीं, तंगदिली के साथ नहीं, खुले दिल के साथ जाइये। तो संत, पीर, फकीरों के यहां से आप हर बार बहुत कुछ नया लेकर जाओगे, हर बार खुशियों के खजाने पाओगे। पर घमंड नहीं होना चाहिए, अहंकार नहीं होना चाहिए।
आत्मा से बजाओ मन की टल्ली
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि क्या आप सोचते हैं सिर्फ टल्ली, शंखनाद या बाजा बजाने से आप संत, पीर, फकीर या राम को खुश कर लोगे। तो, हवा तो रोज टल्लियां बजाती है। तेज चलती है। गऊ के गले में टल्ली बाँध देते हैं, वो भी रोज बजाती है। और पशु, पक्षी होते हैं, जो पालतु होते हैं, कई हमने देखा है, बकरी के गले में बाँध दी पुराने टाइमों में, भेड़ के गले में बाँध दी, वो तो कब के बैकुंठ चले जाते, क्योंकि इतनी टल्ली तो आप बजा ही नहीं सकते। वो जब-जब चलते हैं, तब-तब टल्ली बजती है। टल्ली बजानी है तो पहले मन की बजाओ और आत्मा से बजाओ। तो आप खुशियाँ हासिल कर पाएंगे, तो दया, मेहर, रहमत के लायक बन पाएंगे।
चापलूसों से बचकर रहो
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अपनी भावना का शुद्धिकरण करो। कड़वी बातें होती हैं। लेकिन सच हमेशा कड़वा होता है। कड़वी कुनैन होती है लेकिन शुगर कोटिड कर दी गई। कहते हैं वो बहुत फायदा करती है बुखार वगैराह में। उसी तरह सच्ची बातें कड़वी तो जरूर लगती हैं, लेकिन आने वाले टाइम में आपके कर्म सही करके, आपको ज़िंदगी के परमानंद की तरफ ले जाती हैं। नाटक करके आप उसको खुश कर सकते हो, जिसको चापलूसी पसंद है, ऐसे होते हैं। कहते हैं ना कि ये तो फलां का चम्मचा है। कई चम्मचा होते हैं, कोई थोड़ा सा बड़े वाला हो गया, कोई कड़छा भी होता है। वो दूसरों की महिमा गाता है। बचो ऐसे चापलूसों से। सबको कह रहे हैं हम।
क्योंकि जो आपके सामने ज्यादा उछलता, कूदता है, बहुत सारी चीजें वो अपनी छुपा रहा होता है। अपने आप को एक स्वस्थ करेक्टर बताता है। इसलिए हमेशा ध्यान दिया करो। कोई भी आपकी चापलूसी ना करे और सच्चा दोस्त, मित्र वो होता है, जो सच्ची बात जुबान से कहकर आपके सामने आपको गाइड कर दे। अब आप गलत कर्म कर रहे हैं। कई सज्जन ऐसे होते हैं, हमने देखे हैं जो कहते हैं कि जी, मुझे कोई राय नहीं देता। देगा कैसे कोई? आपको किसी की राय पसंद ही नहीं आती। राय वहां दी जाती है जहां ग्रहण करने की शक्ति हो, जब आप अपने आप को ये कह देते हो कि मेरे से बड़ा ज्ञानी कोई दूसरा है ही नहीं, तो फिर आपको कोई राय क्यों देगा।
दीनता-नम्रता वाले को जीवन में कोई कमी नहीं रहती
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि अगर कुछ हासिल करना है तो श्री राम जी, ख़ुद विष्णु जी के अवतार, लक्ष्मण जी शेषनाग के अवतार, फिर भी श्रीराम जी ने कहा लक्ष्मण, रावण कोई छोटी-मोटी चीज नहीं है, और आपको कितनी बार बताया कि वाकयी जो श्रीराम जी ने कहा वो सत्य है कि ये बहुत विद्वान, बहुत गुणवान है, इसमें कोई कुरीति आ गई और दूसरे शब्दों में इसने मुक्ति का मार्ग ही ये तय करवा रखा था। तो तू जा इससे ज्ञान ले ले। तो, लक्ष्मण जी उनके सिर की तरफ खड़े हो गए। तो श्रीरामजी मुस्कुराए, रावण कुछ बोला नहीं।
श्रीराम जी फिर बोले, लक्ष्मण जब गुण ग्रहण करना हो तो गुरु के चरणों की तरफ खड़े होते हैं, सिर की तरफ नहीं। जब वो घूम कर चरणों की तरफ आए और हाथ जोड़कर कहा कि आप मुझे शिक्षा दीजिये तो फिर रावण ने वो बातें बोली जो हमारे पवित्र ग्रन्थ रामायण में दर्ज हैं। सो कहने का मतलब जब भी आप संत, पीर, पैगम्बरों की जगह पर जाओ या हमारे सभी धर्मों के पवित्र स्थानों पर जाओ तो अहंकार त्याग कर जाओ। दीनता, नम्रता से जाओ, मालिक के चरणों में ध्यान रखकर जाओ, ना कि सिर पर चढ़कर कूदो। जो दीनता, नम्रता का पल्ला नहीं छोड़ते वो ज़िंदगी में कभी भी किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं कर सकते।
ख़ुदी, अहंकार आदमी को डुबो देता है
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि संत, पीर, पैगम्बर ओउम, हरि, अल्लाह के बहुत ज्यादा करीब होते हैं। वो परमपिता परमात्मा के वो नुमाइंदे होते हैं और जन-जन के सेवादार होते हैं। जो पीर, फकीर सेवादार हैं तो उसकी औलाद को मालिक बनने के लिए नहीं सोचना चाहिए। इसमें हम ये नहीं कहते कि कंपनियों के मालिक ना बनो, हमारा यहां कुछ और मतलब है, कि जिसके गुरु, संत, पीर-पैगम्बर में दीनता नम्रता हो, उसके भक्त में अहंकार नाम की चीज तो आसपास भी नहीं फटकनी चाहिए।
अगर आप में आ रही है तो अपने आप को लाहनत दिया करें थोड़ी देर के लिए, ताकि वो चीज आपसे दूर हो जाए। क्योंकि ख़ुदी, अहंकार आदमी को डुबो देता है। मन जालिम, इतना जालिम है कि आदमी को कभी भी गड्ढे में गिराकर चारों खाने चित्त कर देता है। सार्इं जी ने एक जगह लिखा हुआ है, स्वामी जी महाराज ने ‘गुरु कहे करो तुम सोई, मन के मते चलो मत कोई, ये भव में गोते खिलवावे, ये गुरु से बेमुख करवावे’। नफ्Þज, शैतान, मन जो आपके अंदर रहता है, नैगेटिव थॉट्स (नकारात्मक विचार) जो माइंड को देता है। वो मन है, नफ्ज, शैतान है। जो पॉजीटिव थॉट्स देती है, सकारात्मक सोच देती है वो आत्मा है, वो रूह है, तो उसकी सुनो। अहंकार ना करो।
अहंकार रावण को भी ले बैठा
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आज घर में लड़ाइयां हैं इगो की वजह से। गाँवों में लड़ाई है इगो की वजह से, देशों में लड़ाइयां हैं इगो की वजह से और कोई क्षेत्र इससे बचा नहीं है। कोई भी क्षेत्र, चाहे वो राम-नाम का क्यों ना हो। यहां भी लोगों के अंदर इगो आ जाती है। मैं उससे कम नहीं, मेरे में क्या कमी है, उसमें क्या है ऐसा। जी नहीं, भक्तजन तो दीनता, नम्रता के पुजारी होते हैं, कि नहीं भाई, मैं तो सबसे दीन हूँ, नम्रता रखने वाला हूँ। अहंकार को ऊपर हावी होने ना दो। क्योंकि अगर ये हावी हो गया तो परमपिता परमात्मा को नहीं पा सकोगे। इसलिए नम्रता धारण करो।
ये पुरातन समय से बताया गया है, पर आदमी के अंदर बहुत तरह के अहंकार हैं। कुछ तो ऐसे होते हैं, जिनको कोई समझा भी नहीं सकता। राज-पहुँच का अहंकार, धन-दौलत का अहंकार, जमीन-जायदाद का अहंकार, थोड़ा शरीर अच्छा है, शरीर का अहंकार, चंद लोग देखने लग गए उसका अहंकार, अपनी सोच का अहंकार, कि मेरे जितना चतुर-चालाक कोई है ही नहीं, मैं ही सारी दुनिया से समझदार हूँ, बाकी तो पैदल घूम रहे हैं। उसके कहने का मतलब होता है कि दिमाग भगवान ने मेरे को दे दिया, बाकियों का तो खाली डिब्बा है। तो ये भी एक अहंकार है। और क्या लिखा है हमारे धर्मों में, अहंकार को मार जरूर होती है, आज नहीं तो कल होती है। अहंकार मत किया करो।
रावण से बड़ा आज तक, अभी तक कोई इन्सान नहीं आदमी के रूप में। सर्वश्रेष्ठ साइंटिस्ट था, जिसके कंधे पर एटम, परमाणु रहता था और दिखता तक नहीं था। इतनी शोध थी, इतनी अदृश्य शक्तियां उसने प्राप्त कर रखी थी। उसके पास पुष्पक विमान कह लीजिये, आज की भाषा में बोलें तो क्या बोलें, शायद ऐसे तो कोई लैंडिंग करता ही नहीं जैसे वो करता था। चलो हवाई जहाज या जहाज कह देते हैं समझाने के लिए। पुष्पक विमान सिर्फ रावण के हाथों की, विभीषण के हाथों की और एक उनके भाई, जिनसे वो पुष्पक विमान लेकर आए थे उनके हाथों की पकड़ से और उनकी प्लस रेट से, उनकी सोच से ही वो उड़ता था। जैसे वो हाथ रखते थे और अंदर दिमाग में सोची कि इतना किलोमीटर ऊपर जाना चाहिए, वो उतने किलोमीटर ऊपर जाता था, कि भई इतने माइल्स(मील), इतने कोस की स्पीड होनी चाहिए, उतनी ही स्पीड पकड़ता था। आज के रोबो क्या ऐसा नहीं कर रहे। क्या आप ही फन्नेखां हैं, आपसे पहले कोई जिंदा नहीं हुआ दुनिया में विज्ञान को मानने वाला।
क्या कर लिया आपने? एक रोबो, सुपर कंप्यूटर बना लिए हैं तो आपके अकोर्डिंग कंप्यूटर आदमियों की तरह काम करने लगे हैं तो आपसे पहले कोई ऐसा नहीं हो सकता, जिसने इतनी साधना कर ली हो, विज्ञान को इतना पा लिया हो कि विमान उसकी वो प्लस रेट (धड़कन) से, उसके थॉटस से चलता था। हो सकता है आज भी आने वाले समय में ऐसा कुछ हो जाए। पर अभी तक तो हुआ नहीं। कितना बड़ा साइंटिस्ट था वो (रावण)। और आज तक किसी में ऐसा गुण नहीं आया। चन्द्रमा की रोशनी से भी वो काम लेता था। पूरी लंका जगमगाती थी। सूरज की रोशनी सौर ऊर्जा उस टाइम में भी उसके पास थी। जब चाहे बरसात करवाता था, जहां चाहे बरसात करवा लेता था। और वो जहाज की चर्चा कर रहे थे, कहीं भी लैंड करवा लेता था। उसके लिए हेलीपैड नहीं बनाने पड़ते थे। तो ग़जब था ना वो। चलो अभी तो उसके थोड़े से गुण बताए हैं। भक्ति में अव्वल था। शिवजी, जो महादेव जी हैं हमारे, उनका बहुत बड़ा भक्त था। बहुत वरदान थे उनके पास।
तो ये थोड़ी बात है, इनमें से एक भी बात आपमें हो, चलो माना थोड़ा सा अहंकार आ सकता है। अगर नहीं है तो किस बात का अहंकार। उसने भी अहंकार किया कि मैं मौत को हरा दूंगा, क्योंकि बाकी चीजें वो जीत चुका था। क्योंकि उसको लगा कि मेरी नाभी में अमृत का कुंआ है। यहां तक कि उसकी लाइफ का जो चक्र था, वो खत्म नहीं होने वाला था। स्वासों पर नियंत्रण कर लिया था, लेकिन वो स्वांस थे तो उतने ही, जितने लिखे हुए थे। पर उसको लगता था कि अमृत मेरे अंदर है, नाभि में है, इसको प्रयोग करके मैं भक्ति के द्वारा कभी नहीं मरूंगा। तो मौत से भी टक्कर ले लूंगा। इसी अहंकार में उसने सीता माता को उठाया और फिर आप जानते हैं, ‘इक लख पूत, सवा लख नाती, तै रावण घर दीया ना बाती’। क्या है आपमें जो अहंकार कर रहे हो। कौन सी ऐसी चीज है जो रावण के पैर की बराबरी करते हो आप।
चंद नोट आ गए, चंद पैसे आ गए, थोड़ी ऐश कर ली और चार लोगों ने हाथ जोड़ लिए, अच्छा जी। ये नहीं सोचा कि मेरे को नमस्कार क्यों होती है। सोचा नहीं, बस कहता अच्छा मेरे में कुछ स्पेशल हो गया। अरे भाई कभी शीशे में मुंह देखना, ख़ुद ना डर जाना कभी देखकर। बुरा ना मनाना भाई, कई सज्जन ऐसे भी होते हैं, उनको भी लगता है कि नहीं, मेरे में कुछ अलग है। दस लोगों ने नमस्कार कर दिया। अलग हो गया कोई रूतबा, अलग हो गया अगर आप आॅफिसर हैं, अलग हो गया अगर कोई राज-पहुँच है, तो लोग थोड़ा सा मिलने-जुलने ज्यादा लगते हैं।
कोई पीर, फकीर है उसको भी सलामें होने लगती हैं। पर फिर भी अहंकार का तो कोई मतलब नहीं होना चाहिए। क्योंकि अगर सलामें अगर संत, पीर, फकीर को हो रही हैं तो उस ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु के नाम के लिए। अहंकार किस चीज का? किस बात का? क्यों? ख़ुदी जो करते हैं वो ख़ुदा से दूर रहते हैं। अहंकार जो करते हैं वो दूर रहते हैं राम से। दीनता, नम्रता धार कर पा लेते हैं राम को। दीनता, नम्रता एक भक्त के गहने हैं, इन्सान के गहने हैं। जो इसे पहन लेता है, वो सही रास्ते पर चल पड़े तो बहुत खुशियां हासिल कर लेता है और गलत रास्ते पर चल पड़े तो ठग्गियां भी बहुत मार लेता है।
मीठी छुरी से बचकर रहें
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आपने देखा होगा गाँवों-शहरों में कई लोग होते हैं, जिनको मीठी छुरी कहा जाता है, हमने तो देखा है भाई, पक्का आजमाया हुआ है। आप जाओ, तो आओ जी, आओ जी, आओ जी, बैठो जी, बैठो जी, कैसे आए जी? और क्या हालचाल हैं आपके। यूं लगता है कि यार अच्छा, कहीं किसी रिश्तेदारी में तो नहीं आ गया, आया दुकान पर सामान लेने है। फिर आओ जी चाय पीओ जी, बिस्किट मंगाओ, फलां मंगाओ। मंगाना नहीं होता, बातों-बातों से घर पूरा। उनके इशारे बड़े अजीब होते हैं। हाथ हिलाते हुए अरे दो कप चाय ले आना, दो कप चाय ले आना, कि मत लाना, मत लाना(इशारा करना)। थोड़ा लेट देखेंगे। इतने में ग्राहक उठकर चला जाता है। अरे अच्छा, तू चाय नहीं लाया, तू चाय नहीं लाया, चाय नहीं लाया। हाथ ना करते हुए चल रहा होता है। हमने कहा अच्छा बेटा। देखा होगा आपने भी।
कहीं ना कहीं जरूर देखा होगा, पर समझे नहीं होंगे, ये अलग बात है। तो मतलब ये कलाकारी है, कलाकारी। अब पहले शुरू में हमने ख़ुद सुना है कि अच्छा दो चाय ले आना, अच्छा दो बटे चार कर देना। किसका ध्यान होता है। अब ग्राहक का ध्यान तो अपने सामान में है। दो बटे चार का मतलब दो कप चाय होने चाहिए बाकी चाहे पानी डाल देना। पैसे दो कप के दूंगा, उसको चार कप में डाल लाना। तो आदमी आराम से बैठा होता है और उसने अपना काम कर दिया। तो इस तरह से है तो मिट्ठी छूरी। दस वाली चीज 50 में या 100 में दे दी। 100 वाली चीज 700 में दे दी। नहीं जी, नहीं जी, घर में नहीं पड़ती इतने की तो। तो दुकान इतनी बड़ी कैसे बना ली भाई। अगर घर में नहीं पड़ती, तूं कुछ कमा ही नहीं रहा, पर जुबान मिट्ठी है और जो कड़वा बोलते हैं, सब कुछ गंवा बैठते हैं।
कड़वी जुबान वाले सब गंवा बैठते हैं
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि बात आपको सुनाते हैं, कई बार सुनाई, बेपरवाह जी (पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) सुनाया करते थे। कोई व्यापारी था और वो पशुओं को खरीदने-बेचने का काम करता था। शाम का समय हो गया, सामान अपने साथ रखते थे, भई थोड़े पशु इस गाँव से लिए, वहां रुक गए जंगल में, फिर उस गाँव से लिए। ऐसे व्यापार, किसी को पशु दे दिया, किसी से पशु ले लिया। तो वहीं कहीं रुक गए और कहने लगा कि यार मैं सब्जी कहीं से बना लाता हूँ। जुबान आपको आगे बताते हैं कैसी थी। तो उसके पास आलू थे और वो एक घर में चला गया। देखा घर में अकेली माता है तो बोला माता मैं ये सब्जी बना लूं। तो माता कहने लगी कि भई चूल्हा चल रहा है बना ले बेटा।
सब्जी बनाने लगा और बातें करने लगा। व्यापारी कहने लगा माता आपके पास कितने पशु हैं। माता कहती बेटा, तूने क्या करना है? कहता नहीं…नहीं… फिर भी माता। माता कहती, भैंस और गाय है। तो कहने लगा अच्छा…अच्छा…। व्यापारी कहने लगा माता आपके घर का गेट बहुत छोटा है। माता कहने लगी कि बेटा तूने गेट से क्या लेना है? कहता नहीं…नहीं…मैंने तो क्या लेना है, पर माता अगर आपकी भैंस मर गई तो निकलेगी कैसे इस गेट में से बाहर। माता कहती कि तूं सब्जी बना ले, सब्जी बनाने आया है बना। फिर चल पड़ा, जुबान का कड़वा, बोलना कड़वा। कहता बेटे कितने हैं आपके? कहती एक बेटा है, भगवान की कृपा है, बढ़िया है। कहता शादीशुदा है। माता कहती, हाँ। सब्जी बन गई थी इतने में, तैयार हो गई थी। तो कहने लगा कि एक ही बेटा है।
कहती कि हाँ, बढ़िया है भाई, तेरे को क्या? कहता कि नहीं…नहीं… मेरे को कुछ नहीं है, शादीशुदा है और इतने में सब्जी तैयार हो गई और देख ही रहा था कि किसमें डालूं, साथ में बोल पड़ा, कहता माता अगर आपका बेटा मर गया तो आपकी बहू किसको करेगी (अपनाएगी), वो तंदूर तपाने वाला पंजाबी में कुढ़ण कहते हैं, लकड़ी होती है, माता कहती खड़जा (रुक) जा….दो-तीन गालियां दी और लट्ठ उठाया जैसे ही, अब सब्जी तैयार थी, तो उसने और तो कुछ देखा नहीं, परना रखा करते थे पुराने टाइम में, आज भी रखते हैं कोई ना कोई, तो सब्जी परने में डाली और भाग लिया और पीछे पीठ पर एक-दो लगी होंगी। निकल लिया इतने में। वो माता ने छोड़ दिया कि चलो निकल गया। वो भागता जा रहा है, उसको लगता है कि माता पीछे लगी होगी।
चौपाल में कुछ लोग बैठे थे और वो कहते ओ रुक-रुक व्यापारी कहता क्यों? वो लोग बोले यार तेरा कुछ गिरता जा रहा है, क्या गिरता जा रहा है? व्यापारी कहता ये जुबान का रस है, वो गिरता जा रहा है। तो हो सकता है आपका भी पहले जिंदगी में गिरा होगा, राम-नाम से जुड़ गए तो बच गए। तो इस रस को गिराया मत करो, इस रस से जोड़ा करो, तोड़ा ना करो समाज में किसी को। मतलब मीठा बोलना सीखो। दीनता, नम्रता और मीठा अच्छे कर्म के लिए बोलो। मीठा बोलने से, बेग़र्ज प्यार करने से, नि:स्वार्थ भावना से, जो अच्छे कर्म करते हैं, भक्ति करते हैं, भगवान उनको जल्दी मिल जाया करते हैं। तलवार का जख्म भर जाता है और कड़वी बोली का जख्म नहीं भरा करता। जब भी वो सामने आता है, उसकी कही हुई बात याद आ जाती है। इसलिए याद रखो मीठा बोलना और दीनता नम्रता के साथ चलना सीख लो। क्योंकि दीनता, नम्रता ही एक ऐसी सीढ़ी है, जिसके द्वारा चढ़ते हुए आप राम को पा सकते हैं, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु को पाया जा सकता है।
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