मुझे बेटे के खोने का गम नहीं बल्कि कोई राजनेता या उच्चाधिकारी के ना पहुंचने का मलाल: शहीद के पिता
सच कहूँ/मनोज सोनी
भट्टूकलां। गुवाहटी आसाम में शहीद हुए गांव पीलीमंदौरी के जवान मनोज कुमार दहिया का पार्थिव शरीर गांव लाया गया। गांव लाने से पहले सेना का वाहन भट्टूकलां रुका। जहां हजारों की संख्या में लोगों ने पहुंचकर शहीद को नम आंखों से नमन किया। इसके बाद एक काफिले के रूप में शहीद के पार्थिव शरीर को गांव लाया गया। पूरे गांव के लोग अपने गांव के लाल के अंतिम दर्शनों के लिए रास्ते पर खड़ा रहा।
शहीद विकास की तरह ही शहीद मनोज का अंतिम संस्कार भी गांव के स्टेडियम में राजकीय सम्मान के साथ किया गया। साढ़े 3 वर्ष की बेटी हेजल ने सलामी देकर अपने पिता को मुखाग्नि दी। इस अवसर राज राइफल आसाम से 6 सदस्यी टुकड़ी पहुंची। उनके साथ सूबेदार राधाकृष्ण व धनीराम ने भी सलामी दी। इस अवसर पर सरपंच धर्मवीर गोरछिया, जिप पार्षद प्रतिनिधि भाल सिंह जांगड़ा, मेहूवाला के शहीद खेत्रपाल की धर्मपत्नी बिरबला सहित हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे।
मात्र 15 दिनों में दूसरा बेटा खोने वाला गांव पीलीमंदौरी शोक में फिर से शोक में डूब गया है। शहीद का पार्थिव शरीर उनके रुपाणा रोड स्थित निवास पर पहुंच गया तो परिवारजनों का रो-रोकर बुरा हाल था। शहीद के धर्मपत्नी एवं परिजनों ने उन्हें सेल्यूट किया। साढ़े तीन वर्ष की बेटी को अंतिम दर्शन करवाए। इसके बाद शरीर को स्टेडियम ले जाया गया।
जानकारी के अनुसार मनोज कुमार पुत्र बलवंत सिंह गुवाहाटी आसाम में तैनात थे। सुबह 8 बजे वे अपने कैबिन के अंदर अचेत मिले। उन्हें तुरंत ट्रॉमा सेंटर ले जाया गया। जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। वे बीते दिनों बटालियन के साथ कोलकाता में एक कार्यक्रम में गए थे। जहां से आकर वे सो गए थे। लेकिन रविवार सुबह वे नहीं उठ पाए। मनोज कुमार का जन्म 2 अक्टूबर 1993 को हुआ था। वर्ष 2011 में मनोज फौज में भर्ती हुए थे। उनका विवाह 11 दिसंबर 2018 को सूली खेड़ा में संजूबाला से हुआ था। उनकी साढ़े 3 वर्ष की बेटी हेजल है। अंतिम बार वे 30 दिनों की छुट्टी लेकर 18 नवंबर को गांव आए थे। 17 दिसंबर को वापस ड्यूटी पर चले गए थे। आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही गांव का एक और जवान विकास सिक्किम में हुए हादसे में शहीद हो गया था।
‘‘गरीब का बेटा
शहीद मनोज दहिया के अंतिम संस्कार में सांसद, विधायक, डीसी, एसपी नहीं पहुंचे। इस पर शहीद के पिता बलवंत सिंह और ससुर ने रोष प्रकट करते हुए कहा कि गरीब का बेटा गया है, किसी को क्या लेना है। पूरा परिवार सेना से जुड़ा हुआ है, क्या पौती को भी सेना में भेजेंगे। इस सवाल पर बलवंत सिंह ने दुख प्रकट करते हुए कहा कि सेना में क्या फायदा है। मेरे दादा सूबेदार थे, पिता हवलदार रहे हैं। 1939 से 44 तक वे छह साल तक सिंगापुर जेल में रहे, कोई किसी ने सुध तक नहीं ली कि वे जिंदा हैं या नहीं। मेरे छोटे भाई कृष्ण भी सूबेदार रिटायर हुए, मेरा बेटा भी सैनिक था, छोटे भाई का बेटा भी सेना में है।
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