कोटा। (सच कहूँ न्यूज) सच्चे दाता रहबर, मुर्शिद-ए-कामिल पूजनीय परमपिता शाह सतनाम जी महाराज के पावन अवतार माह की खुशी में रविवार को कड़ाके की ठंड के बीच कोटा जोन की विशाल नामचर्चा में साध-संगत का जन सैलाब उमड़ पड़ा। शाह सतनाम जी दयापुर धाम, पॉलीटैक्निक कॉलेज, ग्राउंड हवाई पट्टी के सामने कोटा में आयोजित पावन भंडारे की नामचर्चा में जहां तक नजर दौड़ रही थी साध-संगत का जनसमूह ही नजर आया। इस अवसर पर पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन सन्निध्य में चलाए जा रहे 147 मानवता भलाई कार्यों के तहत 25 जरूरतमंद को फूड किटें, 100 कंबल, 100 जर्सियां दी गर्इं, जिससे उनके चेहरों पर मुस्कान खिल उठी।
पूज्य गुरू जी का जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित रहा है: पूर्व विधायक प्रह्लाद गुंजल
मैं समझता हूँ कि इससे अच्छा लोक कल्याण का कोई और काम हो नहीं सकता। नौजवान पीढ़ी जो नशे की तरफ प्रवृति होती जा रही है। उसको रोककर नशे की दलदल से बाहर निकालना, यही मानवता की सच्ची सेवा है। हमारे यहां तो कहा गया है कि सच्चे संत का जीवन नदी, पेड़ व पहाड़ की तरह होता है, जो दूसरों के लिए जीता है। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां का जीवन समाज और राष्ट के लिए समर्पित रहा है। और जब तक ऐसा दिखता नहीं है, तब तक लोग इंस्पायर नहीं होते। ये सबकुछ है इसलिए आने मात्र से श्रवण मात्र से लोगों का जीवन बदलता है। मैं समझता हूं कि आप जो लोक कल्याण के मार्ग पर चल रहे हैं, यह महान पुण्य का काम है। आप सबको शुभकामनाएं। डेफ्थ कैंपेन में सहयोग करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये केवल गुरु जी की चिंता नहीं है। गुरु जी इसकी चिंता कर रहे हैं, ये तो बहुत बड़ी बात है। ये समुचे राष्ट्र के लिए आवश्यक चीज है। और कोई अगर राष्ट्र कार्य को अपना व्यक्तिगत काम समझ ले, भारत, राष्ट्र के जीवन में ऐसाविचार आ जाना ही भारत का मौलिक चिंतन बन जाएगा। और इस पर पूज्य गुरु जी काम कर रहे हैं तो ये बहुत बड़ी बात है।
प्रह्लाद गुंजल, पूर्व विधायक, कोटा
इस अवसर पर पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि सच्चे सौदे का मकसद क्या है? सच्चा, ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, राम है। वो सच था, सच है और सच रहेगा। वो ना बदला था, ना बदला है, ना कभी बदलेगा, जिसे ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड कहा जाता है। तो सच्चा तो हो गया परमात्मा। सौदा, बिजनेस, व्यापार, कौन सा सौदा? सौदे से लगता है सौदेबाजी चलती है, जी हाँ, जहां चलती है कौन सी सौदेबाजी, आप अपने बुरे कर्म ले आओ, अपनी बुरी आदतें ले आओ, वो जो आप नशे के आदी हो गए हैं, अपने पाप गुनाह ले आओ और ओउम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु की कृपा से, शाह सतनाम, शाह मस्तान जी की कृपा से यहां दे जाओ, बदले में अनमोल राम का नाम, अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड का नाम ले जाओ। जो घर में बैठकर जितना जाप करते रहोगे, जितना उसे लगाते रहोगे दिलोदिमाग, रूह पर उतना ही चेहरे पर नूर आएगा, घर में बरकतें आएंगी, बिजनेस व्यापार, जो भी काम-धंधा आप करते हैं।
उनमें आपको और तरक्कियां हासिल होंगी। तो ये है सच्चा सौदा। यहां पर ओर चढ़ावा नहीं, ये चढ़ावे चढ़ते हैं। क्या कोई पैसे की बात नहीं होती? जी बिल्कुल होती है, प्रेरित किया जाता है सच्चा दान करने के लिए, सच्चा दान कौन सा है? क्योंकि हमारे सभी धर्मों में दान निकालने की प्रथा है। कोई तीसरा, कोई सातवां, कोई दसवां, कोई पन्द्रहवां निकालने की चर्चा करते हैं हमारे संत-पीर, पैगम्बर, गुरु साहिबान, महापुरुष और उन्होंने सही कहा, सच कहा। समय के अनुसार रेशो (अनुपात) कम-ज्यादा होता रहा, लेकिन वो सच है।
100 में से एक रुपया निकालो, 10 निकालो, 15 निकालो, 20 निकालो, जितना आप निकाल सकते हो। उसको निकालो और अपने घर में रख लो। या तो कोई संत सतगुरु पूर्ण हो, वो कहे फलां जगह लगाओ, वो कहां लगवाता है? बेसहारों का आसरा बनवाओ। दीन-दुखियों का इलाज करवाओ, जो पढ़ नहीं पा रहे दुनियावीं ज्ञान के साथ-साथ उन्हें राम के नाम से जोड़ो, नशेड़ियों का नशा छुड़वाओ, ऐसी जगह बनाओ जहां आकर लोग राम-नाम गा सकें। इस दौरान ट्रैफिक, पेयजल, लंगर-भोजन सहित सभी समितियों के सेवादारों ने अपनी ड्यूटियों को बखूबी निभाया।
नामचर्चा की समाप्ति में भारी तादाद में आई हुई साध-संगत को सेवादारों ने कुछ ही मिनटों में लंगर-भोजन और प्रसाद बरता दिया। तत्पश्चात साध-संगत पूरे अनुशासन में सतगुरु की खुशियों को लेकर अपने घरों को लौट गई।
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