कृषि वैज्ञानिक ने किया सचेत, ठंड बढ़ने से फसल को हो सकता है दोहरा नुक्सान
- पाला बढ़ने से रुक जाती है पौधों की ग्रोथ
कुरुक्षेत्र। (सच कहूँ/देवीलाल बारना) तेजी से गिरे तापमान से अब सब्जी उत्पादक ही नहीं कृषि वैज्ञानिक भी काफी चिंतित हैं। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. सीबी सिंह के अनुसार उन्होंने कुरुक्षेत्र के कई खेतों में आलू और सब्जी की फसलों का निरीक्षण किया है लेकिन अभी तक बचाव है। इसी के साथ उन्होंने बताया कि किसानों ने आलू तथा टमाटर की फसल के पौधे दिखाए हैं। डा. सिंह ने बताया कि उन्होंने पौधों को देखा है लेकिन उनमें बीमारी इत्यादि तो नहीं है। उन्होंने देखा है किसानों द्वारा अधिक कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग करने से फसल को नुकसान हो सकता है। डा. सिंह ने कहा कि जिस तेजी से तापमान गिर रहा है, कुरुक्षेत्र का न्यूनतम तापमान 4 डिग्री पहुंच जाने के साथ पाला पड़ना शुरू हो जाता है। ऐसे में किसानों को दोहरा नुकसान हो सकता है।
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फसलों पर दिख रहा ठंड का असर
डॉ. सिंह ने कहा कि अब मौसम में बदलाव का असर फसलों पर भी दिख रहा है। पाला बढ़ने से जहां सर्दी बढ़ेगी, वहीं फूल वाली फसलों के फूल खराब हो सकती है और जिसका सीधा प्रभाव उत्पादन पर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सर्दी के चलते कोहरा एवं पाला पड़ने लगता है। कोहरे एवं पाला के कारण आलू तथा टमाटर की फसल को भी भारी नुकसान होता है जिससे उसमें पौधों की ग्रोथ रुक जाती है। आलू की फसल भी नष्ट होने लगती है और जिससे आलू की पैदावार कम हो जाती है। इसी के साथ डा.सिंह ने आलू की नई एवं उन्नत किस्मों पर चर्चा की।
नई किस्म के बीजों पर की चर्चा
डॉ. सीबी सिंह ने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा आलू की नई किस्मों और बीजों का गहन अनुसंधान के उपरांत किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सब्जी उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। यह कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों की मेहनत से संभव हुआ है। डा. सिंह के अनुसार आलू का उत्पादन अन्य फसलों के मुकाबले कई गुना है। आज किसान भी नई किस्म के आलू के बीजों के लिए हर समय प्रयत्नरत रहते हैं और विभिन्न कृषि संस्थाओं से बीजों के लिए संपर्क करते हैं। उन्होंने अधिक उत्पादन के लिए वर्तमान में नई किस्म के आलू के बीजों पर चर्चा की।
उपचार है आवश्यक
डा. सिंह ने कहा कि आलू के उन्नत बीज किस्मों के साथ उपचार भी बहुत जरूरी है। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने आलू की तीन नई किस्में तैयार की है और इनपर प्रयोग सफल रहे हैं। संस्थान के कुफरी गंगा, कुफरी नीलकंठ और कुफरी लीमा आलू की प्रजातियां मैदानी इलाकों में आसानी से पैदा होगी।
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