भारतीय रिजर्व बैंक ने नोटबंदी के दौरान 5000 रुपए से ज्यादा के पुराने नोट एकदम से जमा नहीं करने के अपने निर्णय को तीव्र विरोध के बाद एक दिन बाद वापिस ले लिया। जबकि नोटबंदी के पहले सप्ताह में ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देशवासियों से एक नहीं कई बार वायदा किया था कि वह 30 दिसम्बर तक यानि पूरे पचास दिनों तक अपने पुराने नोट जमा करवा सकते हैं और बैंकों में भीड़ से आमजन घबराए नहीं, धैर्य से अपनी राशि जमा करवाएं। अत: आमजन, व्यापारी सभी ने राहत की सांस ली थी और बारी-बारी से अपनी रकम जमा करवाने लगे। यह सत्य है कि हर देशवासी ने केन्द्र सरकार के नोटबंदी के निर्णय का भरपूर समर्थन किया। लोग खुशी-खुशी अपना काम-धन्धा छोड़, बिना खाये-पीये कई घंटों, यहां तक कि दिनों तक भी बैंक की कतारों में खड़े हुए। यहां सरकार भी सहमत है कि नोटबंदी से आमजन को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा है। इस दौरान कई लोगों की तो बैंक कतार में जान भी चली गई। लोगों ने कतारों में अपने ही पैसों के लिए पुलिस, सुरक्षा गार्डों के हाथों अपमान भी झेला। ऐसी परिस्थितियों में भारतीय रिजर्व बैंक ने आए दिन नए-नए फरमान कर भी आमजन को सदैव भ्रम की स्थिति में डाले रखा। रिजर्व बैंक की इन घोषणाओं से सरकार की नोटबंदी की योजना भारी विरोध का कारण भी बनती रही है। इस कारण विपक्षी दलों ने संसद को भी ठ΄प रखा। अत: जब सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि 30 दिसम्बर तक किसी को भी कोई दिक्कत नहीं आने दी जाएगी, तब आखिरी दिनों में आकर रिजर्व बैंक क्यों सरकार के निर्णय पर अपनी शर्तें थोप रहा है? नि:संदेह आरबीआई के 5000 की शर्त थोपने व वापिस लेने से सरकार की साख प्रभावित हुई है। नोटबंदी एक क्रांतिकारी व्यवस्था परिवर्तन होती है। इसमें एक चाक-चौबंद योजना को चरणबद्ध पूरा करना होता है। थोड़ी सी चूक होने पर पूरे देश की आर्थिक व्यवस्था, आर्थिक चक्र गड़बड़ा जाता है। भारत की तरह दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला ने भी नोटबंदी को लागू किया था, लेकिन पूरी योजना व उससे संबंधित निर्णय सही तरह लागू न हो पाने के चलते एक सप्ताह बाद ही वहां सरकार को अपना निर्णय वापिस लेना पड़ा। वेनेजुएला में इस दौरान आगजनी, हिंसा, लूटपाट हुई वह अलग। अत: भारतीय रिजर्व बैंक को गर्व करना चाहिए कि कैसे सवा सौ करोड़ लोगों ने बैंकिंग व्यवस्था में भ्रष्टाचार, रिजर्व बैंक की करंसी स΄लाई की लेटलतीफी के बावजूद भी देश में नोटबंदी को सफल बनाया। शादी का कार्ड दिखाकर अढ़ाई लाख रुपए, एकमुश्त प्राप्त कर सकने की व 2005 से पहले के पांच सौ के नोटों को बैंकों द्वारा स्वीकार नहीं कर सकने की अफवाहों पर रिजर्व बैंक ग्राहकों को पूरी नोटबंदी दौरान समझा पाने में असफल रहा। लेकिन आमजन ने रिजर्व बैंक की अनेकानेक खामियों का कोई तीव्र विरोध नहीं किया। 5000 रुपए की आखिरी दिनों में थोपी शर्त देशवासियों के साथ घोर नाइन्साफी व रिजर्व बैंक का तुगलकी फरमान ही कहा जाएगा। खासकर तब, जब आरबीआई, वित्त मंत्रालय, आयकर विभाग के पास हर दिन की जमा की गई पुरानी करंसी का हिसाब है, अत: इस शर्त को लाना बेहद मूर्खता पूर्ण था। भविष्य में मुद्रा नियंत्रण की अपनी नीतियों को लागू करने से पहले रिजर्व बैंक को चाहिए कि वह अपनी नीति व योजना को अच्छी तरह परखे। वित्त मंत्रालय व सरकार को वह नीति अच्छी तरह स्पष्ट करे, तब व्यवहारिक तौर पर लागू करे।
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