हाल ही में सरकार द्वारा डिजिटल निजी डाटा संरक्षण विधेयक, 2022 के प्रारूप को साझा करते हुए लोगों से सुझाव मांगे। गौरतलब है कि आज लोगों की निजी जानकारी एप्स, वेबसाइट्स, सेवा प्रदाता समेत विभिन्न प्रकार से डिजिटल माध्यमों से साझा की जाती है। हम जानते हैं कि इस डिजिटल युग में जब हम किसी एप को डाउनलोड करते हैं तो हमें विभिन्न प्रकार की अनुमति देने के लिए पूछा जाता है। यदि उपभोक्ता इसके लिए मना करता है तो उस एप को इस्तेमाल ही नहीं किया जा सकता। यही बात डिजिटल समाचार पत्रों, विभिन्न सेवा प्रदाताओं की वेबसाइट पर भी लागू होती है। ऐसे में लोगों की इन निजी जानकारियों का संरक्षण, अथवा उस निजी जानकारी का बिना उनकी सहमति के, अन्य द्वारा प्रयोग प्रतिबंधित करने के लिए एक कानून की जरूरत महसूस की जा रही थी। इस विधेयक में यह प्रावधान रखा गया है कि चाहे किसी व्यक्ति ने पहले से अनुमति दी हुई हो तो भी उसे ‘कोन्सेंट मैनेजर’ के माध्यम से वापस लिया जा सकता है।
विधेयक में यह भी प्रावधान है कि 18 साल से नीचे के व्यक्तियों (किशोरों/ किशोरियों, बच्चों) द्वारा बिना अभिभावकों की अनुमति के उन एप्स अथवा सेवाओं का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इस संबंध में एक बोर्ड के गठन का भी प्रावधान रखा गया है जो इस कानून के बारे में संबंधित पक्षों को जानकारी और स्पष्टता प्रदान करेगा। सरकार द्वारा देश की एकता और संप्रभुता, सुरक्षा, अन्य देशों से मित्रतापूर्ण संबंध, या अपराधों हेतु उकसाने को रोकने जैसे मामलों के संदर्भ में, सरकार को इस विधेयक के प्रावधानों से मुक्त रखा गया है। इस विधेयक के आलोचकों का मानना है कि गूगल, फेसबुक, अमेजन और अन्य बड़ी टेक कंपनियों के व्यवसाय को देखते हुए, यह राशि कंपनियों के आकार और उनके द्वारा डाटा के दुरुपयोग के माध्यम से की जाने वाली कमाई की तुलना में बहुत कम है। जरूरत है एक ऐसे कानून की जिसके माध्यम से देश के डाटा पर देश का संप्रभु अधिकार हो।
साथ ही उस डाटा को सवंर्धित कर कृत्रिम बुद्धिमत्ता और विभिन्न प्रकार की अन्य जानकारियों पर बड़ी टेक कंपनियों, ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया कंपनियों का एकाधिकार होने से रोका जाए। हमें समझना होगा कि निजी डाटा का ही अनामीकरण और प्रसंस्करण कर उससे गैर निजी डाटा का निर्माण होता है और समाज के विभिन्न वर्गों के वित्तीय समेत आर्थिक और सामाजिक व्यवहारों के बारे में जानकारियां एकत्र की जाती हैं। हमें यह समझने की जरूरत है कि विकसित देश अपनी कंपनियों की प्रतिस्पर्धात्मकता को सुविधाजनक बनाने को डाटा का निर्बाध प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए उपाय कर रहे हैं। भारत को न केवल देश में उत्पादित डाटा का स्वामी होने की आवश्यकता है; हमारे देश की भौगोलिक सीमाओं के भीतर डाटा की गणना करने की भी आवश्यकता है।
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