नई दिल्ली। (सच कहूँ न्यूज) मुंबई, सूरत, चेन्नई और कोलकाता के कईं हिस्से साल 2050 तक या तो समुद्र में डूब जाएंगें या फिर बार-बारु आने वाली बाढ़ से तबाह हो जाएंगें। ऐसा कार्बन उत्सर्जन के साथ-साथ समुद्र के बढ़ते जल स्तर की वजह से होगा। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में 3.1 करोड़ लोग तटीय क्षेत्रों में रहते हैं और हर साल बाढ़ के जोखिम का सामना करते हैं। साल 2050 तक यह संख्या बढ़ कर 3.5 करोड़ और सदी के अंत तक 5.1 करोड़ पहुंच सकती है। ये अनुमान, अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों पर आधारित हैं, अगर दुनियाभर में कार्बन उत्सर्जन का बढ़ना इसी रफ़्तार से जारी रहता है। फिलहाल, दुनिया भर में 25 करोड़ लोग हर साल आने वाली तटीय बाढ़ के जोखिम वाले क्षेत्रों में रहते हैं।
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दुनियाभर में तीन गुना समुद्र तट समुद्र के पानी की चपेट में ..
यह अध्ययन क्लाइमेट सेंट्रल के वैज्ञानिक स्कॉट ए.कल्प और बेंजामिन एच.स्ट्रास के नेतृत्व में किया गया था। क्लाइमेट सेंट्रल जलवायु में आ रहे विपरीत बदलावों पर काम करने वाले वैज्ञानिकों, पत्रकारों और शोधकतार्ओं का एक स्वतंत्र संगठन है। साल 2000 में आये नासा (अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी) के एलेवेशन डेटासेट के इर्दगिर्द क्लाइमेट सेंट्र ने ये अध्ययन किया है। नासा के अध्ययन में रह गई कुछ खामियों को कम करने के लिए कल्प और स्ट्रास ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का सहारा लिया। जिसके बाद नये अनुमान सामने आए। इन नये अनुमानों के मुताबिक पिछले अनुमानों के मुकाबले, दुनियाभर में तीन गुना समुद्र तट समुद्र के पानी की चपेट में है।
जलवायु परिवर्तन के शरणार्थी
भारत की तटीय इलाका 7,500 किलोमीटर लंबा है और समुद्र के स्तर में वृद्धि से जोखिम में, चीन के बाद, दूसरी सबसे बड़ी तटीय आबादी भारत में ही है। चीन में ये आबादी 8.1 करोड़ है। टीईआरआई स्कूल आॅफ एडवांस स्टडीज के रीजनल वॉटर स्टडीज में एसोसिएट प्रोफेसर अंजल प्रकाश कहते हैं, ह्लमहासागरों के गर्म होने के प्रभाव से चक्रवाती तूफान जैसी घटनाएं और बढ़ेंगी और आने वाले दशकों में ये और खतरनाक हो जाएंगीं। प्रकाश, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्न्मेन्टल पैनल आॅन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की हालिया रिपोर्ट कोर्डिनेटिंग लीड आॅथर हैं। प्रकाश कहते हैं, “भारतीय मानसून के पैटर्न में बदलाव का असर तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों की जिÞंदगी पर भी पड़ेगा।”
इन सभी कारणों से पलायन का बढ़ना भी तय है। समुद्र के खारे पानी का जमीन पर आने का मतलब है कि जमीन खेती के लायक नहीं रहेगी। इससे देश के अंदर ही पलायन बढ़ेगा। जैसा कि इंडियास्पेंड ने ओडिशा और पश्चिम बंगाल से रिपोर्ट किया था। साक्ष्य बताते हैं कि बांग्लादेश का बड़ा हिस्सा अधिक खारा होने या जलमग्न होने के कगार पर है और इससे अंतर्राष्ट्रीय पलायन भी बढ़ने के आसार है। लेकिन दुनिया भर में, बहुत से लोग अपने पुरानी जगहों पर ही रहना पसंद करते हैं। समुद्र के जल स्तर में वृद्धि वाले इलाकों में सरकारें तटों पर दीवारों का निर्माण करा रही है, जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ने की स्थिति में भी लोग अपने इलाकों में रह सकें।
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