दक्षिणी चीन सागर में सैन्य अभियान करके चीन ने एक बार फिर वियतनाम, भारत, अमेरिका सहित कई देशों को चुनौती दी है। समुन्द्र में पहली बार बमबारी करके चीन अपनी ताकत का प्रदर्शन कर रहा है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि यह घटना विश्व में युद्ध के बीज बोने के सामान है। अमेरिका व अन्य देश चीन की सरगर्मियों पर संज्ञान ले रहे हैं। उधर रूस व अमेरिका के बीच राष्टÑपति चुनावों को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। विश्व की तीन महाशक्तियोंं अमेरिका, चीन व रूस का एक-दूसरे की खिलाफत करने का रूझान उस दौरान शुरू हुआ है, जब सीरिया व इराक में आईएसआईएस के खिलाफ लड़ी जा रही जंग एक निर्णायक दौर में पहुंच चुकी है, पूर्वी अले΄पो में आतंकवादियों को भागना पड़ रहा है व आमजन को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सहमति जताई जा रही है। बेकफुट पर पहुंचे आईएस अपने अंत की ओर तेजी से बढ़ रहा है, जिसे जड़ से खत्म करने की आवश्यकता है। यदि इस वक्त अमेरिका व रूस एक दूसरे के खिलाफ डट जाते हैं, तब अमन-शांति बहाल करना मुश्किल हो जाएगा। जहां तक चीन का संबंध है, वह दोहरे मापदंड अपना रहा है। एक तरफ चीन भारत खिलाफ आतंकी मसूद अजहर का समर्थन कर रहा है दूसरी तरफ अमेरिका के सहयोगी दक्षिणी कोरिया को भी डरा रहा है। चीन ने दक्षिणी चीन सागर में दक्षिणी कोरिया के नजदीक बमबारी करके यह संदेश दिया है कि दक्षिणी कोरिया उसकी मार से बाहर नहीं है। इस तरह चीन सीधे तौर पर अमेरिका को चुनौती दे रहा है। चिंताजनक बात यह है कि सीरिया, इराक सहित आधी दर्जन देशों में जारी आतंकी हिंसा के बावजूद विश्व के तीन ताकतवर देश अपने-अपने स्वार्थों व गुटबाजी को मजबूत रखने का दांव खेल रहे हैं। युद्ध व आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए बनी अंतर्राष्टÑीय संस्था संयुक्त राष्टÑ पूरी तरह नाकाम साबित हो रही है। यू.एन.ओ. ताकतवर देशों की पिछल्लगू बनकर रह गई है। रूस, चीन व अमेरिका को नया पैंतरा चलने की बजाए उन लाखों शरणार्थियों की आंखों से बह रहे आंसूओं को देखने की जरूरत है जो हाड कंपाती ठंड के बीच खुले आसमां के नीचे जीवन यापन को मजबूर हैं। पहले व दूसरे विश्व युद्ध के निशान मानवता पर आज भी ज्यों के त्यों बरकरार हैं। चीन व पाकिस्तान जैसे देश ही आतंकियों को समर्थन कर उसे आगे बढ़ा रहे हैं। वह अपनी आर्थिकता व सैन्य ताकत के अहंकार को त्यागकर, इंसानियत के लिए आगे आएं।
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