गरुडा (नेपाल)। नेपाल के झांझपुल, गरुडा में रूहानी नामचर्चा का आयोजन किया गया। जिसमें आस-पास के ब्लॉकों से बड़ी तादाद में साध-संगत ने भाग लिया। पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन शिक्षाओं पर चलते हुए स्थानीय साध-संगत की ओर से 147 मानवता भलाई कार्यो को गति दी गई। धन-धन सतगुरु तेरा ही आसरा का इलाही नारा लगाकर नामचर्चा की शुरूआत की गई। इसके पश्चात कविराज भाइयों ने सुंदर-सुंदर भजन बोलकर साध-संगत को लाभान्वित किया। नामचर्चा के दौरान अनेक डेरा श्रद्धालुओं ने पूज्य गुरुजी के वचनों पर अमल करते हुए उनके जीवन में आए परिवर्तन व अपने साथ हुए साक्षात चमत्कार साध-संगत के साथ साझा करते हुए सतगुरु पर दृढ़ विश्वास बनाए रखने के लिए प्रेरित किया।
बच्चों को बहुत ही अच्छा बनाना चाहते हैं तो उसके अंदर संस्कार भरिए: पूज्य गुरु जी
पूज्य गुरु संत डा. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने कहा कि प्यार, मोहब्बत की चर्चा जब-जब भी होती है उसका मतलब बेगर्ज, निस्वार्थ भावना से आत्मा का आत्मा से और आत्मा का परमात्मा से प्यार। यही सिखाया सतगुरु ने। आपस में प्रेम करो, लेकिन गर्ज नहीं होनी चाहिए। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि यहां गर्ज आती है वहां प्यार कमजोर पड़ जाता है। पर इस दुनिया में तो गर्ज के बिना कोई प्यार जानता ही नहीं करना। शुरू से निगाह मारिए, माँ-बेटे का प्यार। बच्चा समझदार नहीं, समझ नहीं और माँ प्यार में डूबी है। लेकिन बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो उसे समझ आने लगती है।
माँ-बाप को ये होता है कि बड़ा होकर हमारा नाम रोशन करेगा। बड़ा होकर ये तरक्की करेगा, बड़ा होकर हमें बुलंदियों पर ले जाएगा। पर क्या ऐसी शिक्षा आपने उसके अंदर भरी? क्या ऐसे संस्कार आपने उनके अंदर दिए? उसकी तरफ ध्यान नहीं है। लेकिन एक गर्ज, एक स्वार्थ मात्र है, कि हाँ ये ऐसा होगा, वैसा होगा, ये होगा। तो हम ये नहीं कहते कि ये रिश्ते कोई गलत हैं, सही हैं अपनी जगह। हमारी ये संस्कृति है कि पहले बच्चे की संभाल माँ-बाप करते हैं और बाद में बुजुर्गों की संभाल बच्चे करते हैं। लेकिन हमारा कहने का मतलब, अगर आप अपने बच्चों को बहुत ही अच्छा बनाना चाहते हैं तो उसके अंदर संस्कार भरिए।
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