पुराने नोटों के बदले नए नोटों के रूप में जिस तरह से कालेधन को सफेद धन में बदलने का काम बैंक कर रहे हैं, उससे साफ है कि नरेंद्र मोदी की इस पहल को पलीता लगाने का काम देश के सरकारी और निजि बैंक कर रहे हैं। यही वजह है कि बैंकों में कतारें थमने का नाम नहीं ले रही हैं और यह आशंका भी सच होती दिख रही है कि हजार-पांच सौ के जितने नोट रिजर्व बैंक ने नोटबंदी के पहले तक छापे हैं, लगभग उतने ही वापस आ जाएंगे। अब तक 14.5 लाख करोड़ के हजार-पांच सौ के कुल नोट छापे गए हैं। जबकि 7 दिसंबर को रिजर्व बैंक द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक 11.5 लाख करोड़ के पुराने नोट वापस आ भी गए हैं, जबकि नोट वापसी का सिलसिला 30 दिसंबर तक जारी रहने वाला है। तय है, जिस तरह से थोक में कालेधन के रूप में 2000 के नोट बरामद हो रहे है, उस गोरखधंधे को बैंक ही अंजाम दे रहे हैं।
करोड़ों में ही नहीं, अरबों में कालाधन पिछले एक स΄ताह के भीतर जब्त हुआ है। 13,860 करोड़ रुपए कालेधन के रूप में गुजरात के व्यापारी महेश शाह के पास पाए गए हैं। कर्नाटक में 4.7 करोड़ के 2000 के नोट बरामद हुए हैं। चंडीगढ़ के सेना-परिवार के भाई-बहन 3 करोड़ के नकली नोटों के साथ पकड़े गए। बैंगलुरू में दो जगह से 5.7 करोड़ की नई मुद्रा में कालाधन पकड़ा गया। रेल के शौचालय से 4 लाख रूपए बहाते तीन लोग पकड़े गए। इसी तरह होशंगाबाद में एक टीवी कलाकार से 43 लाख, चित्रदुर्ग में शौचालय से 5.75 करोड़, सूरत से 76 लाख, दंतेवाड़ा से 10 लाख, मुंबई से 85 लाख, चैन्नई से 130 करोड़, भीलवाड़ा 20 लाख, होशंगाबाद से 16 लाख, जयपुर से 104 करोड़, गाजियाबाद से 28.5 लाख, फतेहाबाद से 30 लाख, पणजी से 125 करोड़ और इंदौर से 12 लाख रुपए पकड़े गए।
इन राशियों में 90 फीसदी बेहिसाबी धन नई मुद्रा में हैं। इसीलिए रिजर्व बैंक ने 27 सरकारी बैंकों के प्रबंधकों को निलंबित और 6 का तबादला किया है। दिल्ली में ऐक्सिस बैंक के दो प्रबंधकों को नोट बदलने के आरोप में हिरासत में लिया है। इनसे साफ होता है कि कालेधन पर लगाम की इस पहल को बैंक उसी तरह से चूना लगा रहे हैं, जिस तरह से लोक कल्याणकारी योजनाओं को सरकारी मुलाजिम बट्टा लगाते हैं। यही वजह है कि जो भी योजनाएं जनहित में लागू की जाती हैं, वे भ्रष्टाचार के चलते लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाती हैं।
जनधन खातों के माध्यम से भी बड़े पैमाने पर कालेधन को सफेद बनाने का काम हुआ है। नोटबंदी के बाद 9 नबंवर को जनधन के 25.51 करोड़ खातों में 45,637 करोड़ रुपए जमा थे, लेकिन 23 नवंबर में जब इन खातों में जमा राशि का आकलन किया गया तो पता चला कि 25.67 करोड़ खातों में राशि बढ़कर 72,835 करोड़ रुपए हो गई। मसलन 27,198 करोड़ रुपए इन खातों में कालेधन के रूप में जमा हुए। इनमें सबसे ज्यादा धनराशि पश्चिम बंगाल में 25,553,85 करोड़ उत्तर-प्रदेश में, 4,287.55 करोड़ और राजस्थान में 2,574.85 करोड़ रुपए जमा हुए। यही नहीं चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने बताया है कि भारत में पंजीकृत 1900 राजनीतिक दल हैं। किंतु 400 से भी ज्यादा दलों ने कभी कोई चुनाव नहीं लड़ा। इसलिए संभव है कि ये दल काले धन को सफेद में बदलने के काम आते हो। जरूरी है कि नोटबंदी के बाद इन दलों के खातों में हुए लेन-देन को भी जनधन खातों की तरह खंगाला जाए।
इसमें कोई दो राय नहीं है अर्थव्यवस्था में नकदी, अवारा पूंजी और नकली मुद्रा की बहुलता भ्रष्टाचार और कालाधन का बड़ा सा्रेत बनते हैं। 1974-75 में जब आवारा पूंजी और नकली मुद्रा देश में न्यूनतम थी, तब सरकारी स्तर पर गठित बांटू समिति ने 7000 करोड़ रुपए कालाधन बताया था। यह इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल का दौर था। आपातकाल के बाद केंद्र में जनता दल की सरकार बनी और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने बड़े नोटों को प्रतिबंध्ति करने वाली कमाई की लगभग कमर तोड़ दी थी। 1993 में गठित चेलैया समिति ने यही धन 22000 करोड़ रुपए बताया। 2009 में लालकृष्ण आडवाणी ने 25 लाख रुपए और 2010 में ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी ने जानकारी दी कि भारत से 1947 से लेकर 2008 के बीच 462 अरब डॉलर की राशि बाहर गई है। 2011 में बाबा रामदेव ने विदेशी बैंकों में 400 लाख करोड़ रुपए कालाधन जमा होना बताया। साफ है, भाारत के भीतर और भारत से बाहर कितना कालाधन है, इसके कोई विश्वसनीय आंकड़े नहीं हैं।
भारत की कुल आधिकारिक जीडीपी काला व सफेद धन मिलाकर 225 लाख करोड़ रुपए हैं एक अनुमान के मुताबिक इसमें 75 लाख करोड़ कालेधन और 150 लाख करोड़ सफेद धन के रूप में गतिशील है। हालांकि देश में कुल कितना कालाधन है इसका आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक देश में मौजूदा कालाधन 8 प्रतिशत ही नकदी के रूप में है। मसलन 75 लाख करोड़ का 8 प्रतिशत हिस्सा यानी 6 लाख करोड़ रुपए नकदी के रूप में प्रचलन में है। हालांकि आर्थिक मामलों के जानकारों में कालेधन की राशि को लेकर मतभेद हैं, अर्थशास्त्री अरुण कुमार इसे 6.5 लाख करोड़ मानते हैं। जबकि सर्वोच्च न्यायालय को सरकार ने बताया है कि 5 लाख करोड़ रूपए नोटबंदी के चलते अर्थव्यवस्था से बाहर हो जाएंगे।
जिस तरह से नोट जमा हो रहे हैं, उससे अरुण कुमार का कथन सही होता लगता है, कि ‘जितना संचित कालाधन है, उसका बमुश्किल 1 से 2 फीसदी ही कालेधन के रूप में सुरक्षित रखा जाता है, बाकी सोना, भूमि-भवन खरीदने में खर्च कर दिया जाता है। कालेधन की बड़ी राशि जनधन खातों में भी जमा कर दी गई है।‘ यदि हमारे बैंक भ्रष्टाचार मुक्त बने रहकर कालेधन को नई मुद्रा में बदलने का काम नहीं करते तो तय था कि 5 लाख करोड़ रुपए बैंकों में वापस नहीं आते। क्योंकि नोटबंदी के बाद से अब तक जो नई मुद्रा बेहिसाबी धन के रूप में बरामद हुई है, वही 1 लाख करोड़ रुपए के करीब हो गई होगी ? साफ है, बैंकों ने भ्रष्टाचार के चलते पुराने नोटों के बदले नए नोट देकर कालाधन नए सिरे से उत्सर्जन का राष्टÑविरोधी महापाप कर दिया है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन नए पापियों को नहीं बख्शने का ऐलान गुजरात की सभा में किया है, लेकिन इन्हें कितनी सजा मिल पाती है, यह तो भविष्य ही तय करेगा।
प्रमोद भार्गव