फीफा कप में मोरक्कों के सेमीनफाइनल में पहुंचने पर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट कर लिखा कि पहली बार अरब, अफ्रीकी और मुस्लिम देश की कोई टीम विश्व कप के सेमीफाइनल में पहुंची है। उन्हें इसके लिए और आगे के मैचों के लिए बधाई। इमरान की यह टिप्पणी निदंनीय है। यदि यह टिप्पणी कोई कट्टरपंथी करता तब अवश्य समझ आती। इमरान खान ने मोरक्कों की जीत को इस्लाम की जीत करार दिया है। यह टिप्पणी खेलों को धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश है और यही खेल भावना का अपमान है। दरअसल, मोरक्कों एक अफ्रीकी देश है, इसे अफ्रीकी देश भी कहा जाता है।
इमरान ने मुस्लिम खिलाड़ियों के सेमीफाइनल में पहुंचने की प्रशंसा की। नि:संदेह मोरक्को अफ्रीका का पहला देश बन गया है जो फीफा जैसे बड़े खेल मुकाबले मेें सेमीफाइनल खेलेगा। इमरान की टिप्पणी ने अफरीका महाद्वीप की जीत को भी किरकिरा कर दिया है जो, अपने अफ्रीकी खिलाड़ियों की जीत पर जश्न मना रहे थे। यह बात इसीलिए भी दुखद है कि विश्व में एक खिलाड़ी के रूप में प्रसिद्ध ईमरान खान खेलों की आत्मा व संदेश से कोरे हो गए हैं। वास्तव में खेलों का प्रबंध शारीरिक मजबूती, प्रतिभा व भाईचारे के साथ है। एक खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी की प्रतिभा व मजबूती का मुकाबला करता है। यह कोई धर्मों का मुकाबला या झगड़ा नहीं। ईमरान राजनीति से भी जुड़े हैं, जो हाल ही में प्रधानमंत्री का पद गंवा चुके हैं।
अधिकतर राजनेताओं का चलन यह हो गया है कि वह अपने राजनीतिक करियर के लिए हर अवसर को वोट की नजर से देखते हैं। इस बुरे चलन के कारण नेताओं ने धर्मों के नाम पर भेदभाव पैदा करने में कोई कमी नहीं छोड़ी। इमरान खान को अमेरिका के प्रसिद्ध ओलंपियन खिलाड़ी जैसीओनज के इस कथन को याद रखने की आवश्यकता है- मित्रता, एथलैटिक्स संघर्ष और प्रतियोगिता के वास्तविक स्वर्ण क्षेत्र से पैदा होती है। पुरस्कार को जंग ही खा जाते हैं लेकिन मित्रों पर धूल नहीं जमती। खेल ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है, जहां भाईचारा कायम था, लेकिन मौकाप्रस्त नेताओं ने खिलाड़ियों के धर्म की चर्चा कर खिलाड़ियों को एक दूसरे का शत्रु बना दिया।
पहले ही कट्टर व संकुचित विचारधारा वाले लोगों के नफरत भरे प्रचार के कारण कई खेलों में जीत हार के वक्त दोनों तरफ के दर्शक एक दूसरे पर हमला करने तक उतारू हो जाते हैं। जहां तक फीफा का सवाल है इस टूर्नामेंट पर पूरे विश्व की नजरें टिकी हुई हैं। गोरे दर्शक काले रंग के खिलाड़ियों के भी प्रशंसक हैं व काले दर्शक गोरे खिलाड़ियों के। बेहर हो यदि ईमरान खान जैसे नेता खेल मैदान से वोट की फसल काटने से परहेज करें। जीत-हार का किसी धर्म से कोई नाता न जोड़ा जाए।
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