प्रेमी धर्मपाल सिंह, गांव नीलाखेड़ी, जिला करनाल (हरियाणा) से अपने प्यारे सतगुरू पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज की प्रत्यक्ष मेहर का दृष्टान्त इस प्रकार बयान करता है :-
सन् 1981 में मैं पूजनीय परम पिता जी के दर्शन करने व सत्संग सुनने के लिए डेरा सच्चा सौदा बरनावा (उत्तर प्रदेश) गया हुुआ था। मेरे पड़ोसी के घर एक अनार का बड़ा पेड़ था। उसी दिन शाम को मेरा 6 वर्षीय बेटा पड़ोसियों के घर से अनार तोड़ने के लिए अपने मकान की छत पर चढ़ गया। उसने बहुत कोशिश की, परंतु उसका हाथ अनार के पेड़ तक नहीं पहुंचा। फिर छत के बनेरे पर बैठकर आगे की और झुककर जब उसने अनार तोड़ना चाहा तो दुर्भाग्य से छत के बनेरे की ईंटें उसके पैर के नीचे से हिल गई। शरीर का वजन आगे की ओर होने के कारण वह अपने आप को संभाल न सका और धड़ाम से नीचे उनके आंगन में जा गिरा। थोड़ी देर में ही उनके पड़ोस के सभी लोग वहां इक्ट्ठे हो गए और उन्होंने आकर बच्चे को उठाया। वह सभी यह देखकर हैरान थे कि जिस जगह वह गिरा है, वहां पहले से एक तरफ ईंटें तथा दूसरी तरफ लकड़ियों का ढ़ेर लगा हुआ था।
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शोर सुनकर बच्चे की माता भी पड़ोसी के घर पहुंच गई। वह बच्चे को देखकर घबरा गई। उसने दौड़ कर अपने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया। अपने बच्चे को बिल्कुल ठीक अवस्था में पाकर उसने राहत की सांस ली तथा प्यारे सतगुरू जी का धन्यवाद किया। परम, दयालु दाता जी ने स्वयं ही बच्चे की रक्षा की है, वरना जिस जगह वह गिरा था, वहां से बचना बहुत ही अंसभव था। क्योंकि वहां एक तरफ ईंटें और दूसरी तरफ लकड़ियों का ढ़ेर था। कुल मालिक पूजनीय परम पिता जी ने बच्चे को गिरने से पहले ही अपने पवित्र कर-कमलों में ले लिया तथा उन दोनों ढ़ेरों के बीचो-बीच पड़ी खाली जगह पर बड़े आराम से इस प्रकार लिटा दिया, जैसे बच्चा सो रहा हो। घर पहुंच कर बच्चे ने अपनी माता को बताया कि सरसा वाले बाबा जी (पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज) ने उसे अपनी गोद में उठा लिया था।
कुल मालिक पूजनीय परम पिता ने बच्चे का बाल भी बांका नहीं होने दिया। पूजनीय परम पिता जी सत्संग में फरमाया करते हैं, ‘‘जो भी जीव मन का मुकाबला करके, दुनिया की लोक-लाज की परवाह न करता हुआ सत्संग में आता है तो मालिक को उसकी देखभाल करनी पड़ती है।’’ हर मुसीबत के समय मालिक खुद प्र्रकट होकर अपने जीव की पूरी सहायता करता है। यही सच्चे सतगुरू जी की महानता है।
धर्मपाल जब सत्संग सुनकर लौटा तो उसकी पत्नी ने बच्चे के बारे में सारा हाल सुनाया। यह सुनकर वह हैरान रह गया और कहने लगा कि प्यारे सतगुरू जी ने हम पर इतना बड़ा उपकार किया है कि जिसका बदला सौ जन्मों में भी नहीं चुकाया जा सकता। उसने अपने प्यारे सतगुरू पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का तहेदिल से धन्यवाद किया। इस प्रकार जो भी जीव अपने सच्चे सतगुरू पर पूरा विश्वास रखता हुआ दरबार में सेवा करता है तो कुल मालिक उस जीव के सारे काम स्वयं संवारता है और उसे अहसास तक भी नहीं होने देता।
पूजनीय परम पिता जी सत्संग में फरमाया करते हैं, ‘‘जो भी जीव मन का मुकाबला करके, दुनिया की लोक-लाज की परवाह न करता हुआ सत्संग में आता है तो मालिक को उसकी देखभाल करनी पड़ती है।’’
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