प्रेमी हरी चंद इन्सां पंज कल्याणा (सचखंडवासी) सरसा। प्रेमी जी ने पूज्य मौजूदा हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की अपार रहमत का एक प्रत्यक्ष करिश्मा (अपने जीते जी) लिखित रूप में इस प्रकार बताया है:-
प्रेमी जी ने बताया कि मेरे बहनोई प्रेमी खान चंद का शुरू से ही पूज्य परम पिता शाह सतनाम जी दाता रहबर में अटूट विश्वास था। दरअसल वह कुछ भोले भाव तथा बिल्कुल निष्कपट स्वभाव का इन्सान था। वह सुबह-शाम डेरा सच्चा सौदा दरबार में रूहानी मजलिस में, पहले तो उसके पास एक रिक्शा हुआ करता दोनों जीअ (पति-पत्नी) रिक्शे पर जाते, उपरान्त वे पैदल ही आता जाता। चाहे जिस दिन पूज्य पिता जी बाहर सत्संग प्रोग्रामों में (जीवों-उद्धार यात्रा पर) गए हो तो भी दरबार में जाकर जरूर सजदा करता और मजलिस के दौरान तो वह पूज्य परम पिता जी से बहुत ही खुलकर बातें कर लिया करता (अपने निष्कपट स्वभाव करके) उसकी भोली-भाली बातें, कि पिता जी, तेरे तों मंगणा है।
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तेरे तों ही लैणा है। मैं होर किसे दे कोल किउं जावां मंगण। वह गा के भी कहा करता ‘दम दा दम, दु:ख है ना गम! देवेंगा तूं खाएंगे हम!’ सन् 1990 में जब मौजूदा पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां गुरगद्दी पर विराजमान हुए, खान चंद का अपने मालिक के प्रति प्यार और भी दून-सवाया देखा गया। वह पूज्य हजूर पिता जी को पूज्य परम पिता जी के ही स्वरूप में निहारता व आदर-सम्मान, सत्कार अपने हृदय में रखता था।
अप्रैल 1994 की बात है, एक दिन उसने पूज्य शहनशाह जी की पावन हजूरी में अर्ज की, शहनशाह परम पिता जी, अब मुझे तो घर पर ही दर्शन दे दिया करो, जिसे सुनकर पूज्य शहनशाह जी मुस्कुराए और संगत भी बहुत हंसी। इस पर सच्चे पातशाह जी ने भी उसी लहिजे में फरमाया, खानचंद, अगर तुझे घर पर ही दर्शन देने लग गए तो तू डेरे आना छोड़ देगा। फिर तू डेरे में क्या लेने आएगा? खानचंद ने अर्ज की, पिता जी, अब मैं बूढ़ा हो गया हूं। अब मेरे से पैदल डेरे में आया नहीं जाता। सर्व-सामर्थ सतगुरू पिता जी ने वचन फरमाया, अच्छा खान चंद, अब तुझे घर पर ही दर्शन दे दिया करेंगे पर किसी को बताना मत। खानचंद ने कहा सत्वचन पिता जी! इसके साथ ही उसने यह भी अर्ज कर दी कि पिता जी, मुझे यूपी (बरनावा) वाला डेरा देखना है।
पिता जी ने भी फरमाया कि खानचंद, जिस दिन बरनावा आश्रम (यूपी) जाएंगे तुझे अपने साथ कार में बिठाकर ले जाएंगे। खानचंद ने कहा कि अब पक्का वायदा हो गया यूपी वाले सत्संग का। सच्चे पातशाह जी ने भी बिल्कुल उसी अंदाज में उसे वचन दे दिया कि हां, पक्का वायदा हो गया। खानचंद ने अपने अंदर के निश्चय को दोहराते हुए फिर अर्ज कर दी कि पिता जी सारी साध-संगत सुन रही है, पक्का वायदा हो गया।’ सतगुरु सर्व-सामर्थ शहनशाह जी ने भी उसी के लहिजे में वचन दे दिया, ‘हां जी, पक्का वायदा हो गया।’
प्रेमी हरीचंद पंज कल्याणा इन्सां बताता है कि उस दिन से उसे सतगुरू मालिक के (पूज्य पिता जी के वचनानुसार) घर पर ही दर्शन होने लगे थे। वह दस दिन तक दरबार में नहीं गया। आठ दिन तक वह अपने जानकारों, सत्संगी बहन-भाईयों, रिश्तेदारों आदि जिससे भी मिलता, सरेआम सबसे यही एक बात कहता कि यह अपना आखिरी मेला है।’ यूपी दरबार शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा के सत्संग में मात्र दो दिन रहते थे, खानचंद बीमार हो गया और उधर जब पूज्य शहनशाह जी यूपी दरबार में जाने के लिए सरसा दरबार से कार में रवाना हुए और उसी पल खानचंद के प्राण-पंखेरू भी उसके पांच तत्व के शरीर से उडारी मार गए।
भाव जो पूज्य पिता जी ने वचन किया था, कि जिस दिन यूपी दरबार में गए तुझे अपनी कार में बिठा कर ले जाएंगे, बिल्कुल बेपरवाही वचनों के अनुसार खानचंद की आत्मा भी उसी समय ही तन के खाली पिंजर को छोड़कर अपने मालिक की गोद में बैठ सचखंड जा समाई। हर कोई देखने वाला हैरान कि जैसे वह ज्यों का त्यों जिंदा है, सो रहा है और अभी आंखें खोलकर नारा बोलेगा। प्यारे सतगुरू जी ने अपने बच्चे की लाज रखी और दिए वचन के अनुसार हर तरह से उसकी संभाल की। धन्य-धन्य है मेरा सतगुरू और धन्य हैं सतगुरू प्यारे की ऐसी प्यारी रूहें जो अपना अंत समय भी अपने सतगुरु प्यारे के बिल्कुल रू-ब-रू निश्चित करवा लिया करती हैं।
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