सरसा। पूज्य गुरु संत डॉॅ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां सार्इं जी के अवतार दिवस पर साध-संगत को एक वाक्या सुनाते हुए फरमाया कि डेरा सच्चा सौदा के तो खेल निराला है, एक जगह ईंटें रखते तो दूसरी जगह ईंटें बढ़ जाती, कहने लगे सार्इं जी इससे एक मकान बनाया, दो बार ढाहाया, इससे दो बन गए, कहते बरी एक बात बताये आज जो बड़े इंजीनियर बैठे है वो भी सुन ले, तब वालों ने भी सुना था, जो इंजीनियर थे। कहते बरी इधर आओ, आपको बात सुनाये, कहते क्या, ईंटें उतनी है जितनी भट्टे से लेकर आये जी हां, मकान 10-12 का पहले था एक, अब कितने है 10-12 के, दो बन गए, कहते पता है बरी कैसा होता है, कैसा होता है सार्इं जी, अरे सच्चे सौदे की ईंटें भी बच्चे देती है। अब यहां भी पढ़े-लिखे बैठे होंगे, ना नहीं मानू, अड़ गया गेर, ऐसे कैसे, सेवा करके देख लो पता चल जाएगा। क्योंकि जब तक हाथों से करोगे नहीं तो मानोगे नहीं, तो करो जमके सेवा, देखो यहां सच्चे सौदे का सामान कैसे बच्चे देता है।
पूज्य गुरु जी ने बताई बिहार की बात | Ram Rahim
पूज्य गुरु जी आगे फरमाते हैं कि तब से लेके आज तक दे रहा और देता रहेगा उनके वचन है ये तो बढ़ते जा रहे हैं उल्टा। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि बिहार में यहां से सेवादार गए उनमे टोहाना जी यहां बैठे होंगे या कुछ सेवादार हमें ख्याल में नहीं है, टोहाना के थे या किसी इलाके के, बिहार में गए थे, यहां से चार कैंटर लेकर गए, बिहार में जब बाढ़ आई थी, तो इलाका निवासियों को बांटने लगे, लेने वाले बहुत ज्यादा, कैंटर चार, तो सबने अरदास की हे सतगुरु मौला, लाज रखना तो एक बड़े से हाल कमरे में चारो कैंटर उतार दिए, स्कूल था या जो भी धर्मशाला जहां भी, लाज रखना, लेने वाली तो बहुत दुनिया है हम तो चार ही कैंटर लेके आए हैं। इतने लोग डूबे पड़े है सामान तो थोड़ा है, बस सबने प्रार्थना की, सिमरन किया, नारा लगा दिया, चादर से ढक दिया वो सामान, निकालते रहे, रोज एक कैंटर सामान ले जाएं बांट आए, फिर एक कैंटर, दिन में दो-तीन कैंटर ले जाने लगे, 14 या 18 कैंटर बाट दिए, लेने वाले बंद हो गए सब, सामान ज्यों का त्यों। ये परेशान हो गए, इन्होंने हमसे पूछा, हमने कहा आ जाओ जब सामान बांट दिया, अब वो सामान बांट के आ जाओ, हमसे पूछते फिर पिता जी आ जाए, हमने कहा बेटा सामान बांटके आ जाओ, जीभ निकल आई गड़बड़ हो गई, ये सामान तो खत्म ही नहीं हो रहा, चार कैंटर से 16 या 14 या 18 कैंटर बन गए और फिर ज्यों का त्यों पड़ा है चादर के नीचे उतने ही ढेर, अब क्या करे, कहते करे क्या, जिससे मांगा है उससे बात करते हैं फिर से सिमरन पर बैठे, हे सतगुुरु, हे मौला, हे रहबर, हे मालिक हमारी तौबा अब इसको खत्म भी करवा दे, घर भी जाना है, परिवार भी इंतजार कर रहा है, वापिस जाना है, प्रार्थना की, सुमिरन किया, एक-दो कैंटर ही निकले बाद में सारा खाली हो गया, वापिस आ गए यहां पे नाचते फिरे, छलांगे लगाते फिरे, पिता जी वहां तो ऐसा हुआ, तो हमने कहा आपको मालूम नहीं था सच्चे सौदे का सामान बच्चे देता है। ये तो साईं जी के वचन है।
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