भारतीय सभ्यता जैसी सभ्यता पूरी दुनिया में कहीं नहीं: पूज्य गुरु जी
- बैक्टीरिया भगाने को हर घर दीप जला रही है साध-संगत
कुरुक्षेत्र। (सच कहूँ, देवीलाल बारना) पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने 40 दिन की रूहानी यात्रा के दौरान ऑनलाईन गुरुकुल के माध्यम से साध संगत को भारतीय संस्कृति को अपनाने व ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार करने का पाठ पढाया और साध संगत ने पूज्य गुरु जी के वचनों पर अमल करते हुए साथ ही कई बातों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लिया। पूज्य गुरु जी ने ऑनलाइन गुरुकुल के माध्यम से फरमाया कि हम सभी को गर्व करना चाहिए कि हम भारतीय है। क्योंकि हमारे जैसा कल्चर जो हमारे सारे धर्मों और वेदों ने बताया, ऐसी सभ्यता, ऐसा कल्चर पूरी दुनिया में कहीं भी नही है। तो हमें गर्व होना चाहिए। पूज्य गुरु जी ने कहा कि हमें बेइंतहा गर्व है कि हमने उस देश में जन्म लिया जिसकी संस्कृति नंबर एक पर है। हमने उस देश में जन्म लिया जिसमें पाक-पवित्र वेद पढ़े जाते है, सिखाए जाते है और जहां सारे धर्मो के पवित्र ग्रंथों की रचना हुई है।
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खुशी से मनाने चाहिए त्योहार
संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने हमारे तीज-त्योहारों को पाक साफ और स्वच्छ तरीके से मनाने के बारे में आह्वान किया। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि यह त्योहार के दिन बड़ी खुशियां व उमंग लेकर आते है लेकिन इन्सान इनके मतलब को नहीं समझ पाता। दीपावली का शब्द दीपा व अवली से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ दीपों की अवली अर्थात दीयों की कतार या पंक्ति से है। दीवाली हर कोई मनाता है, लेकिन हमने देखा है कि रामजी के पदचिन्हों पर चलने वालों की कमी है और रावण सबके अंदर जागा हुआ है।
दीपावली में रोशनी जगाई जाती है और यह सबको पता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत का वो दिन जब रामजी अयोध्या वापिस आए थे, घर-घर दिये जले, खुशी मनाई गई तो उसी त्यौहार को दीपावली के रूप में मनाया जाता है। लेकिन बड़े दुख की बात है कि आज लोग इन दिनों में जुआ खेलते है, नशे करते है, बुरे कर्म करते है और मनुष्य इसी को कहता है कि हम त्योहार को इंजॉय कर रहे है, त्योहार को मना रहे है। त्योहार जिस लिए बने थे, आज कलियुगी इन्सान उससे बहुत दूर हो चुका है। इन्सान को समझ ही नहीं आ रही कि कैसे त्योहार को मनाया जाए।
त्योहारों के नाम पर पर्यावरण का संदेश देने वाले लोगों को दिया संदेश
पूज्य गुरु जी ने बताया कि हम दीपावली पर्व पर घी के दीये जलाते थे और पटाखे वगैरहा भी बजाते थे। लेकिन आज का दौर, जिसमें जनसंख्या बहुत बढ़ गई है, आज के समय में पेड़ बहुत कट गए है, पानी बहुत नीचे चला गया है, इसलिए हो सकता है पहले पेड़ बेइंतहा हो और जो पटाखे चलते थे, उनसे जो प्रदूषण होता था, वो जल्दी खत्म हो जाता था। पर आज प्रदूषण पहले ही बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है। इतनी फैक्ट्रियां हैं, इतनी गाडिय़ां चलती है, यानि आगे से कई गुणा ज्यादा ये सब कुछ हो चुका है, तो नेचुरली जब आप पटाखे चलाओंगे तो थोड़ा प्रदूषण तो बढ़ता ही है।
लेकिन हमें आज तक यह समझ कभी नहीं आई कि जब पटाखे चलाते है तो उन्हें रोका जाता है। मगर जिन फैक्ट्रियोंं का धुंआ सारी सारी रात और दिन प्रदूषण फैलाता है, उनका फिल्ट्रेशन करने की कोई बात नहीं करता। पूज्य गुरु जी ने कहा कि होली और दीवाली पर ही लोगों को प्रदूषण की याद आती है। पूज्य गुरु जी ने यह भी कहा कि हम इस हक में भी नहीं है कि आप पटाखे चलाकर प्रदूषण फैलाए, लेकिन हम इस हक में भी नहीं है कि इन त्योहारों में खुशी ना मनाए।
पूज्य गुरु जी ने कहा कि पटाखों से तो सिर्फ एक दिन की प्रदूषण होता है, लेकिन फिर भी जो मीटर है पॉल्यूशन वाले वो रोजाना ही 300, 500, 1000 तक पहुंचे रहते है। लेकिन तब तो कोई नहीं रोकता प्रदूषण फैलाने वालों को रोकने से। डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने कहा कि अब धनतेरस चली गई, लेकिन आप बुरा ना मनाना, हमने कहीं पढा और सुना है कि इसमें सोना, चांदी खरीद लो, गाडिय़ा खरीद लो। लेकिन हमने जहां तक पढा है इस दिन योगा करना चाहिए, शरीर को स्वस्थ रहने के लिए काम करना चाहिए तथा साथ में देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए। ताकि आपके घरों में स्वछता आए, तंदरूस्ती आए।
पूज्य गुुरु जी ने की घर घर दीप जलाने की शुरूआत
पुराने समय में हर घर रोजाना घी या तेल का दिया जलाया जाता था। इससे अपने आस पास पनपने वाले बैक्टिरिया खत्म हो जाते थे। पूज्य गुरु जी ने आॅनलाईन गुरुकुल के दौरान इस मुहिम की शुरूआत की और फरमाया कि सभी साध संगत अपने अपने घरों में घी या तेल के दीप जलाएं। रोजाना दीप जलाने से अपने आस पास बैक्टीरिया नही पनपेंगें। इस मुहिम को अपनाते हुए करोड़ों लोगों ने पहले ही दिन अपने घरों में घी व तेल के दीप जलाए। वहीं पूज्य गुरु जी ने खाने को किस प्रकार खाना चाहिए, के बारे में समझाते हुए फरमाया कि जब आप खाना खाते हैं,
पहली कौर मुंह में चबा-चबा कर खाएं, आपने कभी बंदर देखा है, नहीं देखा है तो देखना वो खाना खाएगा तो पहले अपने गलाफ में ले जाता है, अंदर नहीं लेकर जाता कभी भी, वो चैक करता है कि मैंने कोई जहरीली चीज तो नहीं खा ली। क्योंकि जीभा के संपर्क में आने से पूरी बॉडी पर असर जल्द होता है। तो उसी तरह पहली कौर जो आप तोड़कर खाते हैं तो पूरा ध्यान केंद्रित रखें। हमारे ब्रह्मचर्य में सिखाया जाता था कि पहली कौर भगवान के लिए रखो और फिर प्रार्थना करके खाओ, ताकि ध्यान केन्द्रित रहे।
दो घंटे मोबाईल से हटकर परिवार को देने का लिया वायदा
आधुनिकता की इस दौड़ में ओर मोबाईल युग में हर कोई अपने हाथ में पकड़े मोबाईल में मस्त नजर आता है। ऐसे में व्यक्ति अपने परिवार को पीछे छोड़ देता है। इतना ही नही मोबाईल का शरीर पर भी बहुत बुरा असर हो रहा है। पूज्य गुरु जी ने आॅनलाईन गुरुकुल के तहत साध संगत से वायदा लिया कि शाम 7 बजे से लेकर 9 बजे तक का समय परिवार को दें और मोबाईल का प्रयोग न करें। इस प्रयोग से लाजमी ही बहुत बदलाव आने वाला है और भारतीय संस्कृति में जो परिवार की एक कड़ी है वह बहुत मजबूत होगी।
साध संगत भारतीस सांस्कृतिक धरोहरों से हुई रूबरू
बेपरवाह साईं शाह मस्ताना जी महाराज का पावन अवतार दिवस धूमधाम के साथ मनाया गया। आॅनलाईन गुरुकुल के दौरान इस शुभ अवसर पर करोड़ों लोग भारत की गौरवशाली समृद्ध सांस्कृति धरोहरों से रूबरू हुए। इस अवसर पर राजस्थान, हरियाणा, पंजाब व अन्य प्रदेशों की संस्कृतियों से करोडों लोग रूबरू हुए और विभिन्न संस्कृतियों को जाना। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि हमे अपनी संस्कृति को नही भूलना चाहिए।
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