Litchi Orchards Plantation: बदलते समय के साथ आज कृषि का तकनीकी रूप बदलता जा रहा है। किसान परम्परागत कृषि छोड़कर बागवानी की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। ऐसे में आज सच कहूँ कृषि बेव डेस्क किसानों को लीची (Lychee) की खेती के बारे में जानकारी देगा। इसके साथ ही लीची की खेती (Litchi Farming) कहां होती है इसके बारे में भी बताएगा। तो सबसे पहले आप को बताते हैं कि लीची होती क्या है।
लीची एक मीठा स्वादिष्ट फल होता है, जिसका छिलका लाल रंग का पाया जाता है जिसके अंदर सफेद रंग का गुदा होता है जो बेहद ही मीठा होता है। इसके स्वाद के कारण ही लीची का उत्पादन व मांग भारत में बहुत अधिक हैं। इसके साथ ही लीची के फल से कई अन्य पदार्थों को भी तैयार कर किसान अच्छी आमदनी ले रहे हैं। लीची में पाए जाने वाले विटामीन की बात करें तो इसमें बी, सी, मैग्नीशियम, कैल्शियम और काबोर्हाइड्रेट की मात्रा अधिक पाई जाती है। तो आइये जानते हैं लीची की खेती कैसे की जाती है।
यहां होती है लीची की अधिक पैदावार | Litchi Cultivation
लीची पैदावार की बात करें तो पूरे विश्व में सबसे अधिक लीची चीन देश में पाई जाती है जबकि भारत में इसका दूसरा स्थान हैं भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के अनुसार, 83 हजार हेक्टेयर क्षेत्र से अधिक लीची की खेती भारत में की जाती है। जिसमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, हरियाणा, उत्तरांचल, आसाम और त्रिपुरा जैसे प्रदेश शामिल हैं। बिहार में अधिकतर किसान लीची की शाही और चाइना किस्म की खेती करते हैं।
ये होनी चाहिये जलवायु और मिट्टी
किसानों को अगर लीची की अधिक पैदावार लेनी है तो मिट्टी व जलवायु का विशेषकर ध्यान रखना होगा। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक लीची की खेती के लिए गहरी, उपजाऊ, अच्छे निकास वाली और दरमियानी रचना वाली मिट्टी अनुकूल होती है। जबकि मिट्टी का पीएच 7.5 से 8 के बीच में होना चाहिये। कृषि वैज्ञानिकों की माने तो जल भराव वाले क्षेत्र में लीची उत्पादन नहीं होगा, इसलिए जल निकास वाली मिट्टी में लीची की खेती करना सही माना जाता है।
बात जलवायु की करें तो इसके लिए समशीतोष्ण जलवायु उत्पादन है। जनवरी-फरवरी माह में मौसम साफ रहने पर जब तापमान में वृद्धि एवं शुष्क जलवायु में इसकी खेती की जाती है। इससे ज्यादा मंजर लगते हैं जिससे ज्यादा फूल एवं फल आते हैं। अप्रैल-मई में वातावरण में सामान्य आर्द्रता रहने से फलों में गूदे का विकास एवं गुणवत्ता में सुधार होता है। फल पकते समय वर्षा होने से फलों का रंगों पर प्रभाव पड़ता है।
लीची की उन्नत किस्में
- शाही
- त्रिकोलिया
- अझौली
- ग्रीन
- देशी
- रोज सेंटेड
- डी-रोज
- अर्ली बेदाना
- स्वर्ण
- चाइना
- पूर्वी
- कसबा
- चीन
- रोज सुगंधित
- कसबा
- मंडराजी
- स्वर्गीय बेदाना
- प्रारंभिक बेदाना
- त्रिकोलिया
- अर्ली लार्ज रेड
- अर्ली बेडाना
- लेट लार्ज रेड
- लेट बेडाना
- कुल्कटिया
- पियाजी
ये रहेगा बिजाई का उपयुक्त समय | Litchi Farming
लीची की खेती की बिजाई मानसून के तुरंत बाद अगस्त सितंबर के महीने में की जाती है। कई बार पंजाब में इसकी बिजाई नवंबर महीने तक की जाती है। इसकी बिजाई के लिए दो साल पुराने पौधे चुने जाते हैं। बिजाई के दौरान किसान इस बात का ध्यान रखें कि इनके बीच का फासला 8-10 मीटर होना चाहिये।
बड़े स्तर पर लीची उगाने के लिए ‘एयर लेयरिंग’ तरीका अपनाएं
कृषि विशेषज्ञों की के अनुसार अगर किसान बड़े स्तर पर लीची उगाना चाहते हैं तो उसके लिए ‘एयर लेयरिंग’ तरीका अपनाना होगा। बीज बनाना एक आसान तरीका नहीं है इस क्रिया के लिए पौधा लंबा समय लेता है। एयर लेयरिंग के लिए पौधे की टहनियां कीड़े और बीमारियां रहित होनी चाहिए जिनका व्यास 2-3 सैं.मी. और लंबाई 30-60 सैं.मी. हो। चाकू की मदद से टहनियों के ऊपर 4 सैं.मी. चौड़ा गोल आकार का कट लगाएं। उस कट के ऊपर दूसरी टहनी लगा कर लिफाफे से बांध दें। चार सप्ताह के बाद जड़ें बांधनी शुरू हो जाती हैं। जब जड़ें पूरी तरह बन जाएं तो उसे मुख्य पौधे से अलग कर दें। इसके तुरंत बाद पौधे को मिट्टी में लगा दें और पानी देना शुरू कर दें। एयर लेयरिंग मध्य जुलाई से सितंबर महीने में की जाती है।
अच्छी पैदावार के लिए किसानों इन खाद व उर्वरकों को करें इस्तेमाल
- 1 से 3 साल की फसल के लिए 10-20 किलो गली सड़ी हुई खाद के साथ यूरिया 150-500 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 200-600 ग्राम और म्यूरेट ऑफ पोटाश 60-150 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।
- 4-6 साल की फसल के लिए गली सड़ी हुई खाद की मात्रा बढ़ाकर 25-40 किलोग्राम, यूरिया 500-1000 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 750-1250 ग्राम और म्यूरेट आॅफ पोटाश 200-300 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।
- 7-10 साल की फसल के लिए गली सड़ी रूडी की खाद की मात्रा बढ़ाकर 40-50 किलोग्राम, यूरिया 1000-1500 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 1000 ग्राम और म्यूरेट आॅफ पोटाश 300-500 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।
- जब फसल 10 साल की हो जाए तो गली सड़ी रूडी की खाद की मात्रा बढ़ाकर 60 किलोग्राम, यूरिया 1600 ग्राम, सिंगल सुपर फासफेट 2250 ग्राम और म्यूरेट आॅफ पोटाश 600 ग्राम प्रति वृक्ष लगाएं।
लीची में लगने वाले रोग एवं उपचार
रोग उपचार
टहनी छेदक रोग पौधों पर सायपरमेथ्रिन या पाडान का छिड़काव करें।
लीची बग रोग पौधों पर फॉस्फोमिडॉन या मेटासिस्टाक्स का छिड़काव करें।
फल बेधक रोग फल पकने से एक माह पूर्व सायपरमेथ्रिन का पौधों पर छिड़काव करें।
फलों का झड़ना प्लानोफिक्स की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करें।
फलों का फटना बोरिक अम्ल या बोरेक्स की उचित मात्रा का छिड़काव पौधों पर करें।
लीची की फल गिरने से बचाने के लिए ये करें उपाय
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार लीची के बाग में नमी की कमी होने पर हल्की सिंचाई करने के साथ ही जमीन को सूखी पत्तियों या घास फूस से ढकने की सलाह दी गई है। फूल लगने के समय किसी प्रकार के छिड़काव कि सलाह नहीं दी गई है। बिहार, उत्तर प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में लीची की फल को गिरने से बचाने के लिए प्लानोफिक्स का छिड़काव लाभदायक होगा। प्लानोफिक्स दो एमएल रसायन को पांच लीटर पानी में मिलाकर पेड़ पर छिड़काव करना चाहिए।
सिंचाई दौरान इन बातों का रखें ध्यान | Litchi Farming
एक बार जब फल की सेटिंग खत्म हो जाती है और फल 1 सेमी आकार के हो जाते हैं, तो प्रति सप्ताह प्रति पेड़ 1350 लीटर की दर से पानी देना चाहिये। लीची के पौधों में पानी लगाने के चार मुख्य तरीके हैं: (1) सतही सिंचाई, (2) छिड़काव सिंचाई, (3) ड्रिप सिंचाई और (4) उप-सिंचाई। गर्मियों की ऋतु में नए पौधों को 1 सप्ताह में 2 बार और पुराने पौधों को सप्ताह में 1 बार पानी दें। खादें डालने के बाद एक सिंचाई जरूर करें। फसल को कोहरे से बचाने के लिए नवंबर के अंत और दिसंबर के पहले सप्ताह में पानी दें। फल बनने के समय सिंचाई बहुत जरूरी होती है। इस पड़ाव पर सप्ताह में 2 बार पानी दें। इस तरह करने से फल में दरारें नहीं आती और फल का विकास अच्छा होता है।
लीची फसल की कटाई
किसान ध्यान दें कि जब लीची का फल का हरे रंग से गुलाबी रंग का होने लगे और फल की सतह समतल होने लगे तो फल पक गया है। जिसके बाद फल तोड़े जा सकते हैं लेकिन इस दौरान इस बात का भी ध्यान रखें कि फल को गुच्छों में तोड़ा जाए और तोड़ते समय इसके साथ कुछ टहनियां और पत्ते भी साथ हो, इससे लीची का फल ज्यादा लंबे समय तक आप स्टोर कर सकते हैं। आप को बता दें कि लीची का विकसित एक पौधा 100 किलो फलों का उत्पादन एक वर्ष में देता है। एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन 150 से अधिक पौधों को किसान लगा सकते हैं।
कटाई के बाद
लीची की तुड़ाई के बाद फलों को इनके रंग और आकार के अनुसार अलग अलग करना चहिए। प्रभावित और दरार वाले फलों को अलग कर देना चाहिए। लीची के हरे पत्तों को बिछाकर टोकरियों में इनकी पैकिंग करनी चाहिए। लीची के फलों को 1.6-1.7 डिगरी सैल्सियस तापमान और 85-90 प्रतिशत नमी में स्टोर करना चाहिए। फलों को इस तापमान पर 8-12 सप्ताह के लिए स्टोर किया जा सकता है।
लीची में होती है रोग प्रतिरोधक क्षमता | Litchi Farming
लीची न केवल रोग प्रतिरोधक बल्कि कई पौष्टिक तत्वों से भरपूर और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर गुणवत्तापूर्ण फल है और कोई भी व्यक्ति एक दिन में 9 किलो तक लीची खा सकता है। लीची जो जल्दी ही देश के बाजारों में दस्तक देने वाली है, यह काबोर्हाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन सी का खजाना और कई अन्य पोषक तत्वों से परिपूर्ण है तथा इसका ए ई एस (चमकी बुखार) से कोई लेना देना नहीं है। भाभा परमाणु केंद्र मुंबई, राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केन्द्र पुणे और केंद्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र मुजफ़्फरपुर ने लीची से चमकी बुखार को लेकर जो शोध किया है, उसमें इस बीमारी से उसका कोई संबंध नहीं बताया गया है। केंद्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक विशाल नाथ ने बताया कि लीची के फल पौष्टिक होते हैं जो जग जाहिर है। लीची के गूदे में विटामिन-सी, फॉस्फोरस और ओमेगा 3 जैसे तत्व रोग प्रतिरोधक क्षमता पैदा करते हैं जिससे मानव स्वस्थ होता है।
देश में सलाना लीची उत्पादन में बिहार की हिस्सेदारी 45 प्रतिशत | Litchi Farming
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक विशाल नाथ का कहना है कि हमारे भारत देश में हर वर्ष लीची की पैदावार 6 लाख टन के करीब होती हैं। जिसमें बिहार की हिस्सेदारी की बात करें तो 45 प्रतिशत मानी जाती है। बिहार लीची फल के उत्पादन में भारत देश का अग्रणी राज्य माना जाता है। मौजूदा समय में बिहार में 32 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल से लगभग 300 हजार मीट्रिक टन लीची का उत्पादन किसानों द्वारा किया जा रहा है।
बिहार का देश के लीची के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत का योगदान है। लीची के महत्व को देखते हुए वर्ष 2001 को राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की गई। इसको अधिक से अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सके इसके लिए भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र एवं राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने लीची फल को उपचारित करके और कम तापमान पर 60 दिनों तक भंडारित करके रखने में सफलता पाई हैं। इसका एक प्रसंस्करण संयंत्र भी विकसित किया गया है।
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