ब्रह्मचर्य में अलौकिक शक्ति
पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शाह सतनाम जी आश्रम, बरनावा उत्तर प्रदेश से आॅनलाइन गुरूकुल के माध्यम से रूहानी सत्संग फरमाया, ब्रह्मचर्य में एक अलौकिक शक्ति होती है, (Spiritual Discourse) अलौकिक तेज होता है। 25 साल की उम्र, जो कहते हैं कि नींव होती है। अगर किसी मकान की नींव मजबूत होती है तो वो मकान हमेशा खड़ा रहेगा, कभी डगमगाता नहीं। हमारे पवित्र वेदों में भी इन्सान की नींव मजबूत की जाती थी। उसे दुनियावी ज्ञान, शारीरिक ज्ञान से परिपूर्ण किया जाता था। दुनियावीं वो ज्ञान जिसमें उसने विचरणा है, सिवाए गृहस्थ जिंदगी के। गृहस्थ जिंदगी का ए, बी, सी, डी भी नहीं सिखाया जाता था 25 साल तक। बच्चों को इसके बारे में पता भी नहीं होता था और ना ही कभी बच्चों को गुरूकुल में उत्तेजित करने वाला भोजन दिया जाता था। उन्हें सिर्फ सात्विक भोजन ही दिया जाता था। जिससे शरीर में पावर (शक्ति)आए, मसल बने, मजबूत हो। तभी गुरूकुल में पढ़ने वाले पुराने लोगों के शरीर मजबूत होते थे। उदारण के तौर पर महाराणा प्रताप की बात करें तो आप मानोगे नहीं कि वो 200 किलो लोहे का साजोसामान उठाकर युद्ध करने जाते थे। यह सब ब्रह्मचर्य का ही कमाल है।
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि ब्रह्मचर्य में बच्चे को हर स्थिति के लिए मजबूत बनाया जाता था। इसके लिए बच्चों को हर मुश्किल स्थिति से गुजारा जाता था। जैसे जंगलात में अकेला छोड़ देना कि कैसे वह इसमें से निकल के आएगा और इससे घबराए भी नहीं, ऐसी शिक्षा गुरूकुल में दी जाती थी। इसके अलावा पानी में तैरना सिखाया जाता था। बहुत से ऐसे गेम खिलाए जाते थे ताकि आने वाली उनकी जिंदगी में उन्हें सघर्ष ना करना पड़ें। अंधेरे में रखा जाता था, लाइट में रखा जाता था, भूखा रखा जाता था, ज्यादा खिलाया जाता था, फिर कैसे हजम करना है सब सिखाया जाता था। सारी चीजें बताई जाती थी। ताकि लाइफ में अगर कभी ज्यादा खा ले तो उसे कैसे हजम करना है, अगर ना मिले तो कैसे जीना है यानी जीने के तरीके बताए जाते थे।
गुरू और गुरू माँ के गृहस्थ क्षेत्र में जाना होता था वर्जित
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि धर्म महाविज्ञान है। ब्रह्मचर्य का जब हम पालन करते हैं तो अंदर एक ढ़ाल बनती है, जिससे शक्ति आती है। जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं उसको शिकन तक नहीं आती। बल्कि वो और उभर कर आता है और शक्ति लेकर आता है। क्योंकि ब्रह्मचर्य चीज ही ऐसी है। सो जो ब्रह्मचर्य की क्लास थी, वो अपने आप में एक ऐसी नींव थी हमारी इन्सान की जो गुरू और गुरू माँ बनाता था। गुरू और गुरू माँ का जो गृहस्थ एरिया होता था, वहां किसी बच्चे को जाने की आज्ञा नहीं होती थी। कोई मतलब नहीं होता था कि कोई वहां चला भी जाए। ये भी एक सख्त नियम था और ऐसा होना भी चाहिए। क्योंकि वो दोनों गृहस्थी होते थे।
शरीर और माइंड दोनों की बढ़ाई जाती थी शक्ति
गुरूकुल में माइंड की भी शिक्षा दी जाती थी। बहुत से पजल्स (पहेलियां) हल कराया जाता था। आज जो विज्ञान कहती है कि पहेलियां या लिखा हुआ हल करते हैं तो माइंड पावर बढ़ती है। गुरूकुल में ऐसी शिक्षा दी जाती थी। जिसमें माइंड पॉवर बढ़ाने के साथ-साथ बॉडी पावर बढ़ाई जाती थी। दोनों में परफेक्ट बनाया जाता था।
काबिलियत के अनुसार बच्चों का होता था चयन
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि गुरूकुल में घुड़सवारी कराई जाती थी, जिसे हम आज के समय में ड्राइवरी मान सकते हैं। परफेक्ट घुड़सवार सभी होते थे। गुरूकुल में सभी को एक साल एक साथ रखा जाता था। फिर देखते थे कि ये तो शूरवीर बनने के लायक है, ये एक सैनिक बनने के लायक है, ये महान योद्धा बनेगा, उनकी फिर उसी मुताबिक शिक्षा होती थी।
ज्ञान के साथ कर्मयोगी भी बनते थे
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि गुरूकुल में बच्चों को ज्ञान के साथ-साथ कर्मयोगी भी बनाया जाता था। दोनों साथ-साथ चलते थे कि ये किस कर्म में सफल होगा यानी कौन सा बच्चा किस काम में निपुण है, उसे उसी प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। इसके अलावा बेसिक शिक्षा सभी को दी जाती थी। गुरूकुल में छोटी-मोटी बीमारियों को कैसे कंट्रोल करना है वो भी सिखाया जाता था। गुरूकुल में ब्रह्मचर्य के दौरान बच्चों को अभ्यास कराया जाता था जीवन में आने वाली परेशानियों से लड़ने का, उन्हें अभ्यास कराया जाता था जीवन में आने वाले गम, दुख, दर्द, परेशानियों, चिंता को दूर करने का, उन्हें टैंशन देकर टैंशन से लड़ना कैसे है, सिखाया जाता था। वहीं गुरूकुल में भेदभाव न करने और सभी से बेग़र्ज प्यार करने की शिक्षा दी जाती थी।
फिर हो सकती है वैसी ही पहल
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि गुरूकुल में जैसी चीजें हुआ करती थी, वैसी दोबारा बनाई जा सकती हैं। हम चाहेंगे जो हमारे हिंदु धर्म का प्योर (ढवफए) गुरूकुल था। अगर हमारे लोग चाहेंगे तो ऐसी चीज भी जरूर बनाएंगे। ताकि पूरा वर्ल्ड उसे आकर देखे कि क्या था पुरातन समय में, वो बनाया जा सकता है। बिल्कुल वैसा गुरूकुल फिर से ईजाद हो सकता है।
बच्चों की गलत आदतों के पीछे माँ-बाप भी कारण
गृहस्थ जीवन की शिक्षा में साफ बताया जाता था कि जब पति-पत्नी बात करेंगे तो बच्चों को उनसे अलग रखेंगे। पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि आप बुरा ना मानना, जब आपके बच्चे गलत तरफ जा रहे हैं, उसके मास्टर आप खुद हैं। क्योंकि पहले आप इसकी तरफ ध्यान नहीं देते। उसमें चाहे आपने बच्चों को फोन देकर गलत बनाया, चाहे अपनी हरकतों से गलत बनाया। उनके सामने गलत हरकत करके आपने बच्चों में गलत आदतें डाली हैं।
शुरू से ही चल रहे हैं पवित्र वेदों के अनुसार
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि हम शुरू से पवित्र वेदों पर चल रहे हैं। हमारे दादाजी, हमारे पिता जी के पास पवित्र गीता थी, श्री गुरुनानक देव जी की जन्म साखी थी। ये दोनों हमने अपने पिता जी व दादाजी से लिए थे। पवित्र गीता को वो बहुत ज्यादा पढ़ा करते थे। हमारे दादा जी आयुर्वेदा के काफी ज्ञाता थे। कई नुस्खे वगैरह उनके पास हुआ करते थे। उन्हीं के अनुसार हमने पाँच साल लगातार माँ का दूध पीया। आयुर्वेदा तो गज़ब है और अब ब्रह्मचर्य तो फिर कहना ही क्या। ब्रह्मचर्य में ऐसा तेज, ऐसी शक्ति, ऐसा अनुभव होता है, जिसे ब्यान नहीं किया जा सकता। इसमें थकान नाम की कोई चीज नहीं होती।
लोहे के बर्तनों में बना खाना खाने से बढ़ती है सहनशक्ति
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि लोहे के बर्तन में जब खाना बनाते हंै तो उसमें आयरन मिलता है। आयुर्वेदा में बहुत जगह लिखा है कि खाने में लौह भस्म डालो, इसके लिए बहुत सारे नुस्खे होते हैं और अगर लोहे की कड़ाही में खाना बनाते हैं तो उसमें लौह भस्म ना डालो यह भी आयुर्वेदा में लिखा हुआ है। पुराने समय में लोहे के बर्तन में जो खाना बनता था तो उसमें आयरन मिलता था। आज भी डॉक्टर मानते हैं कि इससे हमारे रेड ब्लॅड सेल (लाल रक्त कण) मजबूत होते है। वहीं पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि कहीं-न-कहीं हमें लगता है कि व्हाइट ब्लॅड सेल में भी काम करता है। इसमें यह आता है कि लोहे के बर्तनों में खाना बनाने से व्यक्ति की सहनशक्ति बढ़ती है। इसलिए उनमें खाना बनता था और उसमें ही खाने को परोसा जाता था।
खाने की भी दी जाती थी ट्रेनिंग
पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि मिट्टी के तवे भी हुआ करते थे। उसमें भी बहुत से तत्व होते हैं, जैसे कोई जिंक चला गया बॉडी में। क्योंकि बॉडी के लिए कैल्शियम, जिंक, मैग्नीशियम यानी धरती में जितने तत्व हैं, सभी चाहिए। इस प्रकार उसमें खाना बनता था। फिर वो भोजन बच्चों को परोसा ही नहीं जाता था बल्कि बच्चों को इसके लिए ट्रेंड किया जाता था। यह हमने भी अपने स्कूलों में इसे शुरू किया था। जिसमें छुट्टियों में खाना बनाने का आह्वान किया था। खासकर बेटियों ने बड़ा फॉलो (अनुसरण) किया था। हमने बच्चों को सिखाया कि आपको हर चीज आनी चाहिए। चाहे करो या ना करो वो एक अलग चीज है।
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