बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने फरमाया कि हम एक उदाहरण दिया करते थे, आज वो याद आ गया हमें। हम जब पढ़ा करते थे एक लड़का था, जो अपने आप को थोड़ा हाई स्टैंडर्ड मानता था। लेकिन उसके फादर साहब (पिता जी) धोती-कुर्ता पहनने वाले थे। तो एक दिन वो आ गए, हम उन्हें जानते थे अच्छे से। वो आ गए तो उसने देखा कि यार दोस्तों की जुंडली बैठी हुई है, तो वो जल्दी से उठकर चला गया, उनसे दूर जाकर मिला, उनसे पैसा लिया, सामान लिया, जो भी वो लेकर आए थे उनसे बात की, चर्चा की और वहीं से उनको वापिस कर दिया। हम लोग पीछे खड़े थे। वो वापिस पास आया तो दोस्तों ने पूछा कि ये कौन था? कहने लगा कि यार ये हमारे घर से नौकर आया था, मेरे फादर साहब ने मेरे लिए सामान भेजा है।
हमें बड़ी टीस उठी, बड़ा दर्द हुआ, जब वो अकेला हो गया तो हमने उससे कहा कि यार तेरे फादर साहब थे, तूने उसको नौकर बना दिया। कहता यार ना तो फादर को पता है, ना यार दोस्तों को पता है। तो यार दोस्तों के सामने मेरा स्टैंडर्ड डाउन हो जाता, अगर मैं ये बताता कि फटे से कपड़े पहने हुए ये मेरा फादर है। तो हमने कहा कि यार जब तू सामान ले रहा था तो तब तो तुझे शर्म नहीं आई। कहता, तभी तो नौकर बनाया उसको। अब जरा सोच लीजिये, तब से हर पल बदलता जा रहा है, बहुत पहले की बात है ये। तो आज कहां पहुंच गई होगी सुई (वक्त) ? क्या-क्या स्वार्थ के रिश्ते-नाते बन गए होंगे? हमने एक भजन में लिखा है, अभी जो आठ सौ, जो भजन बना रखे हैं, उसमें एक जगह पर लिखा है कि रिश्ते जल गए बिन शमशान। शमशानों में मुर्दे जलते हैं, पर आज हमारे कल्चर के, हमारी सभ्यता के, हमारी संस्कृति के जो रिश्ते बने हुए थे वो बिना शमशान के जलते जा रहे हैं, बुरा हाल होता जा रहा है। बुरा ना मनाना हमारे बेटो, आप चाहते हैं हमारे लिए कल्चर होना चाहिए फॉरेन का, कोई छेड़े ना, खुली खेल होनी चाहिए, कोई रोके टोके ना। लेकिन जब आपकी बात आती है माँ, बहन, बेटी पर तो आप कहते हैं कि कल्चर होना चाहिए हमारा इंडिया वाला। इंडिया का कल्चर अच्छा है। आप चाहते हैं मैं खुला खेलूं, खुला चरूं, लेकिन इधर आप चाहते हैं बेटियों की तरफ, यहां आपकी पत्नी हो, बेटी हो, माँ हो, बहन हो, कि वो तो सती सावित्री होनी चाहिए। ये दोगली नीति क्यों है? जब आप दूसरों का बुरा ताकते हैं, जब आप दूसरों के साथ बुराई का सोचते हैं, ये कैसे भूल जाते हैं कि तेरे को जन्म देने वाली माँ भी एक औरत है। क्यों भूल जाते हैं कि तेरे घर में भी एक बहन है। उसको कोई ताके तो आपको आग लगती है। आप दूसरों को ताको तो आपके आग नहीं लगती, ये कौन सा कल्चर है। इंडियन कल्चर, हमारी संस्कृति को आप अपनाना नहीं चाहते और विदेशी संस्कृति यहां फिट नहीं बैठ रही। क्योंकि आपके लिए विदेशी संस्कृति हो, इधर औरतों के लिए आप चाहते हो कि इंडियन कल्चर हो। अब बीच में लटके हुए हैं। इस वजह से हमारी संस्कृति, हमारे कल्चर का सत्यानाश करने पर तुल गए ऐसे बच्चे। बुरा ना मनाना बच्चो, हमारे मुंह से हमेशा सच ही निकलेगा, हम झूठ कभी नहीं बोलते। ये हकीकत है। ठीक है विदेशी कल्चर है, उनका अपना एक कल्चर है, वो कैसा है हम उसको बुरा नहीं कहते, कुछ गलत नहीं कहते। लेकिन हम तो अपनी सभ्यता का पहरा देने वाले एक पहरेदार हैं।
गजब है हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता
हमारे हिन्दु धर्म में, कई लोग ये सोच लेते हैं कि हम हिन्दु धर्म का नाम सबसे पहले क्यों लेते हैं? सबसे पहले पाक पवित्र ग्रन्थ इस धरती पर उतरे तो वो थे पवित्र वेद, सबसे पहले। पवित्र वेदों का यहां पर अवतरण हुआ, या यूं कह लीजिये वो प्रकट हुए या यूं कह लीजिये वो लिखे गए। इसलिए जो सबसे पहले रहे उसको जब हमने पढ़ा तो बाकी जितने भी धर्म हैं उनको पढ़ा तो वो मिलते-जुलते हैं उनसे, तो इसलिए उसका जिक्र करते हैं। तो उसमें हमारी जो संस्कृति, सभ्यता है, गज़ब है। पहले 100 साल की उम्र का उस टाइम में हर कोई होता था, जो हमने ग्रंथों से पढ़ा, क्योंकि हमने सार्इंस के नजरिए से पढ़ा। गुरू जी ने बोला था कि विज्ञान के नजरिए से धर्मों को पढ़ना। तो आप सुन रहे होंगे कई दिनों से, अब हम विज्ञान के नजरिए से धर्म को पढ़ रहे हैं, आप सुन ही रहे हैं हर रोज। तो हमने जब पढ़ा तो उसमें गजब है, 100 की उम्र हर इन्सान की लगभग-लगभग होती थी, एकाध को छोड़कर, युद्ध में हो गया उनको छोड़ दीजिये या लिखित में कोई ऐसी चीज थी। लेकिन अदरवाइज 100 साल थी। और उन्होंने चार वर्ग बांट दिये थे। 25 साल जो था वो ब्रह्मचर्य आश्रम। 25 से 50 गृहस्थ आश्रम, फिर शायद वानप्रस्थ और फिर सन्यास आश्रम। ये चार आश्रम आपको छोटी सी बात लगती है। जी नहीं, सार्इंटिफिक प्रूव किया हमने इसको। देखा, जब उन बच्चों को ऐसे वातावरण में भेजा था, जिसे गुरूकुल कहा जाता था यानि वहां जो कुछ सिखाया जाता था, कुल हर चीज। कुल का मतलब सब कुछ, सब कुछ उन्हें गुरू सिखाता था। और वहां कोई भी और बात वहां नहीं होती थी, स्वच्छ वातावरण। जैसे आप मैदानी इलाके वाले जब पहाड़ी इलाके में जाते हैं तो अच्छा लगता है, अच्छा फील होता है। क्यों? क्योंकि वहां वातावरण और शुद्ध लगता है, आसमान थोड़ा सा और नजदीक लगता है, वहां के पड़े-पौधे, वहां का मौसम बड़ा ही अलग होता है। और वो (पहाड़ी क्षेत्र वाले) मैदानी इलाके में आते हैं तो उनको मैदानी इलाका अच्छा लगता है। क्योंकि सारा ही दिन वो उतर गए, चढ़ गए, इधर ढाल पर उतरे, इधर फिर चढ़ाई आ गई और जब देखते हैं मैदान में, ये थोड़ा सा अलग फील होता है, नेचर है आदमी की। तो इस तरह आदमी की ये नेचर है, आदमी की ये आदत है। तो ये हमने पढ़ा।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।