बरनावा। पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि बड़ा दर्द होता है, बड़ा दु:ख होता है जब इन्सान प्रभु की बनाई इन स्वर्ग जन्नत जैसी चीजों को बर्बाद कर रहा है, तबाह कर रहा है और वहां पर अपने नए-नए डिजाइन के मकान बनाता जा रहा है, कंकरीट के महल-मालिया बनते जा रहे हैं। आपजी ने फरमाया कि कुदरत ने जो भी चीजें बनाई हैं वे बिना वजह नहीं बनाई हैं। सबकी अपनी-अपनी वजह होती है, सबका अपना-अपना कारण होता है। पर ये इन्सान दखलंदाजी कर रहा है, उसको बर्बाद करने पर तुला हुआ है आज का इन्सान। जीने का सबसे बड़ा स्रोत पानी और हवा है। महानगरों में जाइए अगर कोई गाँव से पहली बार जाएगा उसे खींच-खींच कर साँस लेनी पड़ेगी, कारण, इतना प्रदूषण बढ़ गया है कि कहने-सुनने से परे।
हवा में जहर घुलता जा रहा है, शरीर में लगभग 70 प्रतिशत पानी ही होता है, वे स्रोत नीचे चले जाते जा रहे हैं, कोई फिक्र नहीं आप लोगों को, बिना वजह पानी की बर्बादी करते चले जा रहे हैं, बिना वजह आप उस पानी का खात्मा करते जा रहे हैं जो शरीर के लिए अति, अति जरूरी है। तो ये ख्याल तभी आएंगे जब थोड़ा सा समय मालिक की याद में लगाएंगे, वरना किसको ख्याल है? पूज्य गुरू जी ने फरमाया कि आपको पता है, महानगरों में पड़ोसी को पड़ोसी का पता नहीं, उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। सारी सृष्टि का सोचना, बेचारे सोचने वाले परेशान हो रहे हैं। आप मजे में हैं, मस्ती मना रहे हैं।
उन वैज्ञानिकों से पूछकर देखो जो डर रहे हैं कि पानी का स्रोत खत्म हो गया तो कहीं पानी के लिए विश्व युद्ध ना हो जाए। क्योंकि उनको पता चल रहा है, पर कुदरत के कादिर को कौन समझा सका है। समझता तो भूकंप से नुक्सान कभी होते ही नहीं। अगर कोई कुदरत के कादिर के उसूलों को पकड़ पाता तो कभी समुद्री तूफान आते ही ना, कभी दुर्घटनाएं होती ही नहीं, प्राकृतिक आपदाएं आती ही नहीं, ये तभी संभव था जब इन्सान प्रकृति से छेड़छाड़ ना करता।
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