Param Pita Shah Satnam Ji Maharaj
मास्टर दर्शन सिंह मिड्डूखेड़ा तहसील लम्बी, जिला श्री मुक्तसर साहिब ने पूजनीय परम पिता जी की अपार रहमत का वर्णन करते हुए कहा कि मेरे मन में हमेशा एक प्रश्न उठता था कि पूर्ण गुरू कौन है? और उससे किस तरह भेंट होगी। मैं डरता था कि कहीं अधूरे गुरू के घेरे में न आ जाऊं। मास्टर दर्शन सिंह की अक्ल इस बात का निर्णय नहीं कर सकती कि पूरा गुरू कौन है? क्या ठीक है और क्या गलत है? जो भी हस्ती (ताकत) उसका कल्याण कर सकती है तथा उसे मुक्ति दिला सकती है, वह हस्ती (रब्बी जोत) मुझे अंदर से स्वयं दर्शन दे। चार रात्रि गुजर गई, दर्शन न हुए। अंत में उसने मन में यह सोचा कि अगर सपने में ही दर्शन हो जाएं, फिर भी वह उनको पूरा गुरू मान लेगा और उससे वह नाम-दान प्राप्त कर लेगा। इसी तरह चार महीने और गुजर गए, परंतु उसकी इच्छा पूरी न हुई।
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कुल मालिक की मेहर से अगस्त 1967 में गांव हाकूवाला में डेरा सच्चा सौदा के पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज का सत्संग मंजूर हुआ। नियत तिथि पर शहनशाह जी ने सत्संग फरमाया। मास्टर जी ने मन में सोचा कि यह कोई सत्संग है? क्योंकि उसने तो इससे काफी बड़े-बड़े जनसमूह देखे थे। मुश्किल से लगभग एक हजार का इक्ट्ठ था। दो स्पीकर, दो गैस व दो ही छायावान थे। लंगर हाथों पर ही छकाया गया। एक टब से सेवादार साध-संगत को पानी पिला रहे थे। उसने गांव मिड्डूखेड़ा की साध-संगत को यह कहकर वापिस भेज दिया कि फकीर अधूरे हैं। इनसे नाम-दान नहीं लेना
उसी गांव में रात का सत्संग भी होना था। सत्संग रात्रि के डेढ़ बजे समाप्त हुआ। पौने तीन बजे मास्टर जी अपने नियमानुसार जाग गए और अपना जाप शुरू कर दिया। अपनीं आंखें थोड़ी सी बंद की, तो क्या देखता है कि शहनशाहों के शहनशाह वाली दो जहान पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज कुल मालिक के नूरी स्वरूप, पाठी और भजन मंडली सहित दर्शन होने लगे। उसकी हैरानी की सीमा ही टूट गई। जब उसने पलकें खोली तो वह उसी घर में उसी चारपाई पर बैठा था।
दूसरी बार फिर कहा कि अगर अब इन फकीरों के दोबारा दर्शन हो जाएं तो वह जरूर इनसे नाम प्राप्त कर लेगा। उसने अपनी आंखें बंद की। बिस्तर का सहारा लेकर पलाथी (चौकड़ी) मार कर बैठ गया, तो क्या देखता है कि पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज मुस्कुरा रहे हैं। भजन की अंतिम कड़ी से पहले वाली कड़ी बोली जा रही है। फिर उसकी व्याख्या का एक-एक शब्द सुना जो पूजनीय परम पिता जी ने अपने पवित्र मुखारबिंद से उच्चारण किया। प्यारे सतगुरू जी के कमर तक तो सफेद चादर लपेटी हुई थी वह आज भी दूध से कहीं सफेद आंखों के सामने है। जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।
जबकि दो बार पूजनीय परम पिता जी के प्रत्यक्ष रूप में दर्शन हुए, फिर भी यह जालिम मन माना नहीं। फिर प्रश्न किया कि अगर अब तीसरी बार दर्शन हों तथा स्वयं आकर कोई बातचीत करें तो फिर वह उन्हें पूरा गुरू मानेगा। यह खुदी का फाना उसके मन ने लगा दिया तथा साथ-साथ मन यह भी कह रहा था कि अभी दर्शन न भी हो तो अच्छा है। क्योंकि आज तक तो इन फकीरों की मैं निंदा किया करता था, बुरा-भला कहने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। अब किस मुख (जुबान) से इनकी उपमा करूंगा। यह तो मेरे लिए शर्म की बात है।
मन की यह बातें सुनकर उसने फिर पलाथी लगाकर अपनी आंखें बंद कर ली। तुरंत पहले की तरह ही पूजनीय परम पिता शाह सतनाम सिंह जी महाराज अपने कर-कमलों में लाल पैन पकड़े हुए नूरी स्वरूप में प्रकट हुए। नूरी चेहरे से दाढ़ी के दूध जैसे सफेद बाल चमक रहे थे। पूजनीय परम पिता जी के सफेद लिवास (वस्त्र) तथा हाथ में वही लम्बी लाठी थी। पूजनीय परम पिता जी का इलाही-जलाल उनके पूरे सुंदर चेहरे पर प्रत्यक्ष झलक रहा था और बहुत ही प्यारा लगा रहा था और उनके चेहरे से खुशियों भरी महक उस वायुमंडल को सुगंंधित कर रही थी। वह बुरा सोचने वाला मन उस नूरी दर्शन को पाकर बस नहीं कह रहा था।
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने अपने नूरी मुख से फरमाया,‘‘मास्टर जी, हुन जद तेरा जी भर जाएगा, असीं फिर ही साहमणियों हटागें’’ मन ने नाक से सात लकीरें निकाली और तौबा की। भला शेर के आगे गीदड़, लोमड़ी आदि कैसे ठहर सकते हैं। सवेरा होते ही साईकिल में हवा भरकर दो-दो सवारी साईकिल पर चढ़ाकर गांव हाकूवाला में पूजनीय परम पिता जी के सत्संग में छोड़ आया। इस तरह उसने 6 जीवों को नाम की दात के लिए पूजनीय परम पिता जी कुल मालिक के चरण-कमलों में ले जाकर छोड़ दिया। इस प्रकार उसने और भी कई जीवों को नाम दिलवाया और खुद भी प्यारे सतगुरू जी से नाम की अनमोल दात प्राप्त की। फिर उसने कान पकड़कर और नाक रगड़कर अपनी गलतियों की पूजनीय परम पिता जी से माफी मांगी। धन हैं मेहरां के सार्इं, बख्शणहार दातार, कृपालु दाता अन्तर्यामी, कुल मालिक जी आप दोषियों, पापियों, निदंकों पर भी मेहर करके हंसकर अपने गले लगाकर अपने पावन चरण कमलों में जगह देते हैं।
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