कोटा (राजस्थान)। कोटा शहर के सुल्तानपुर कस्बे में देर रात रावण दहन के दौरान अजीबो गरीब वाक्या हुआ। करीब 40 मिनट की मशक्कत के बाद भी रावण के पुतले में आग नहीं लग पाई। बताया जा रहा है कि आखिर में पुतले को नीचे गिरना पड़ा। जैसे ही नीचे पुतला गिरा लोग उस पर टूट पड़े। रावत के पुतले के अंगो की छीना झपटी शुरू हो गई। रावण दहन नहीं हो पानी से लोगों में काफी निराशा हुई। प्राप्त जानकारी के अनुसार सुल्तानपुर में बुधवार दोपहर को झमाझम बारिश हुई जिसमें करीब 30 फीट ऊंचा रावण का पुतला गीला हो गया। करीब रात 8 बजकर 40 मिनट पर रावण के पुतले में आग लगाई गई।
आग लगने के बाद कुछ देर रावण जला थोड़ी देर में ही आग बुझ गई। उसके बाद फिर से दोबारा आग लगाई गई लेकिन हर बार प्रयास करने के बाद भी विफल रहे। इसके बाद दमकल गाड़ी बुलाई गई। पालिकाकर्मियों ने फायर ब्रिगेड पर चढ़कर रावण के पुतले पर पेट्रोल का छिड़काव किया उसके बाद आग लगाई गई इसके बाद भी पुतले ने आग नहीं पकड़ी। आखिर में 9 बजकर 20 मिनट पर नीचे गिर गया। रावण के पुतले नहीं जलने पर लोगों में काफी निराशा देखने को मिली।
पारंपारिक हर्षाेल्लास के साथ मनाया गया दशहरा पर्व
अधर्म पर धर्म और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक दशहरा (विजया दशमी) पर्व बुधवार को पूरे देश में पारंपरिक हर्षाेल्लास एवं धूमधाम से मनाया गया। दशहरा मनाने के लिए हिंदू धर्मावलंबियों ने व्यापक तैयारियां की। विजयादशमी पर ही भगवान श्रीराम ने बुरायी और अन्याय के प्रतीक लंका के राजा रावण का वध किया था। इसलिए नागरिक विजयादशमी पर्व मनाते हैं। विजयादशमी को अस्त्र-शस्त्र पूजन का भी विशेष विधान है और आज सुबह से ही अनेक स्थानों पर अस्त्र-शस्त्र की पूजा की गयी। सोशल मीडिया के जरिए नागरिकों ने एक-दूसरे को विजयादशमी की बधाइयां दीं। इस साल दशहरा यानी विजयादशमी के त्योहार पर बहुत अद्भुत संयोग का निर्माण हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार साल में विजयादशमी ऐसा त्योहार है जिसे साढ़े तीन अबूझ मुहूर्त में से एक माना जाता है यानी कि दशहरा का पूरा दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए बहुत फलदायी होता है।
विजयादशमी पर मयार्दा पुरुषोत्तम राम ने रावण और देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर बुराई पर अच्छाई के प्रतीक का संदेश दिया था। दशहरा के दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा का विधान है। मान्यता है कि विजयादशमी पर शस्त्र पूजा से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। दशहरा पर विजय मुहूर्त या अपराह्न काल में पूजा करना उत्तम माना गया है। श्रवण नक्षत्र में श्रीराम और उनकी वानर सेना ने लंका पर आक्रमण किया था और विजय का परचम लहराया था, इसलिए इस दिन प्रदोषकाल में रावण का पुतला जलाने की परंपरा है। नयी दिल्ली समेत देश के विभिन्न हिस्सों में विजयादशमी के पर्व पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले दहन किये गये।
देश में कुछ स्थानों पर बारिश होने से रावण दहन से संबंधित आयोजन प्रभावित होने की आशंका बनी हुई थी। विजयादशमी पर जहां पूरे देश मे उत्साह का माहौल रहता है। जोधपुर में रावण दहन के बाद शोक मनाया जाता है, जहाँ पूरे देश मे रावण दहन करने के बाद जश्न मनाया जाता है। जोधपुर में एक समाज ऐसा भी है, जो रावण दहन के बाद शोक मनाता है। जोधपुर रावण का ससुराल है। लिहाजा जोधपुर में रावण के वंशज रावण दहन के बाद शोक मनाते हुए। रावण के लिए पूजा-अर्चना करते हैं।
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