सरसा(सच कहूँ/विजय शर्मा)। बड़ी उलझन में हूँ ये देखकर कि इन दिनों नवरात्रि के 9 दिन माँ दुर्गा के 9 रूपों की पूजा अर्जना तो श्रद्धाभाव से की जा रही है, महानवमी के अंतिम दिन कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजा जा रहा है, लेकिन बाकी दिनों में जन्म देने वाली माँ, बहन, बेटी, पत्नी और नारी का हर वो रूप जिसमें स्वयं दुर्गा वास करती है, उनका तिरस्कार करने में ये समाज कोई कसर नहीं छोड़ रहा। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या समाज के बुद्धिजीवी इन लोगों को सिर्फ नवरात्रों के 9 दिन ही दुर्गा अष्टमी या महानवमी को कन्या पूजन (Navratri Kanya Pujan) की याद आती है? इसके बाद इन सबके साथ क्या होता है ये सब भलीभांति जानते हैं। कोई, नवजात कन्या को कूड़े के ढ़ेर में फेंक देता है तो कोई, गला दबाकर मार देता है। और ये सब इसलिए होता है क्योंकि आज भी दुर्गा माँ की तो पूजा श्रद्धाभाव से की जाती है लेकिन, उनके रूप में जन्मी बेटियों को मां-बाप बोझ और कलंक ही समझते हैं।
दुनयावीं दिखावे के लिए जिन हाथों से कन्याओं की पूजा की जाती है उन्हीं हाथों से भू्रण हत्या, बेटियों का शोषण, दहेज हत्या जैसे जघन्य अपराध भी किए जाते हैं। समाज के इसी दोहरे चेहरे को ब्यां करने के लिए हाल ही में डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरू संत डॉ. एमएसजी ने एक गीत लिखा और गाया, जिसके बोल हैं ‘‘पाप छुपा के पुण्य दिखा, बंदा करे तेरा शैतान, देख भगवान तेरा इंसान, तुझको समझे हैं नादान’’
वाह! एक तरफ बेटियों पर अत्याचार, दूसरी तरफ आदर सत्कार
कहते हैं बेटियों के बिना कोई भी त्यौहार संपूर्ण नहीं होता। कोई भी परिवार पूर्ण नहीं होता, कोई भी रिश्ता अटूट नहीं होता। बावजूद इसके ये बातें सिर्फ सुनने में और बोलने में अच्छी लगती हैं। हकीकत क्या है ये हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा जारी आंकड़े बोल रहे हैं। बात महिला हिंसा की करें तो ये समाज सबसे आगे हैं।
गत कुछ माह में महिलाओं पर हिंसा की वारदातों में 46 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है, जिनमें दुराचार, कन्या भू्रण हत्या, बाल शोषण, दहेज हत्या के मामले सबसे ज्यादा बढ़े हैं। सवाल अनगिनत हैं, लेकिन अहम यह है कि दुर्गा अष्टमी और महानवमी के दिन ही नहीं बल्कि हर दिन, बेटियों को पूजो, उनके जन्म पर खुशी मनाओ, नारी को सम्मान दो।
बेटियों मारों मत, हमें दे दो, हम पालेंगे…
- अजन्मी बेटियों के दर्द को पूज्य गुरू जी ने किया महसूस
कहते हैं भगवान के रूप में एक संत ही हैं जो किसी की पीड़ा, दर्द, दु:ख को महसूस कर सकता है। देश में दम तोड़ती बेटियों की पुकार भी ऐसे ही एक महान संत ने सुनी। जिसे आज पूरा विश्व डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के नाम से जानता है। पूज्य गुरू जी ने सबसे पहले कन्या भू्रण हत्या को रोकते हुए लोगों को जागरूक किया। सत्संगों के माध्यम से पूज्य गुरू जी फरमाते हैं कि ‘‘जो लोग भू्रण हत्याएं करते हैं, धर्मों में ऐसे लोगों को राक्षस कहा जाता है।
जो लोग अपने आपको मर्द कहलवाते हैं और अपने हाथों से अपनी बेटी का गर्भ में कत्ल करवा देते हैं, लाहनत है ऐसी मर्दानगी पर। और जो डॉक्टर चंद नोटों के लिए किसी की बेटी का कत्ल कर देते हैं उसे धर्मों में बेरहम जल्लाद कहा जाता है। धर्मों में तो गऊ हत्या ही महापाप है। फिर कन्या हत्या तो महापाप का भी बाप है। अगर आपके पास ज्यादा बेटियां हैं तो उन्हें मारें मत, वो बेटी हमें दे देना। जहां हमारी करोड़ों बेटियां हैं अगर और दो-चार आ जाएंगी तो कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। हम और साध-संगत मिलकर उनका पालन-पोषण करेंगे’’
लुक-छुप कर जाते, हवस ये जिस्मानी होती है
काश! समझ पाते, ये दुनियां के लोग
एक वैश्या भी, किसी की बेटी होती है’
उपरोक्त चंद पंक्तियां समाज के चरित्र को दर्शाती हैं। कोई बहन, बेटी, मां जन्म से वैश्या नहीं बनती, उनके हालात व परिस्थितियां उसे मजबूर कर देती हैं। इन वैश्याओं के दर्द और पीड़ा को दूर करने पर भाषण तो आपको जरूर सुनने को मिल जाएंगे, लेकिन इनके जीवन पर लगे दंबो को किसी ने साफ करने की जहमत नहीं उठाई। क्यों कि वैश्याओं को अपनाएगा कौन? ऐसे में उम्मीद की किरण बनकर सामने आए पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां।
पूज्य गुरु जी ने कन्या भू्रण हत्या रोकने के बाद इन वेश्याओं का जीवन ही नहीं सुधारा बल्कि इन्हें अपनी बेटी बनाकर उन्हें अपना नाम दिया। पूज्य गुरू जी के एक आह्वान पर डॉक्टर, इंजीनियर, अध्यापक, उच्च पदों पर आसीन युवा पीढ़ी के नौजवान विवाह के लिए आगे आए। हैरानी हो रही है सुन कर, लेकिन ये सत्य है। पूज्य गुरू जी ने इन्हें ‘शुभदेवी’ का नाम दिया। स्वयं अपने हाथों से कन्या दान किया। सैल्यूट है ऐसे सच्चे ‘संत’ को। जिन्होंने माँ दुर्गा के रूपों को ‘नारी’ में दिखा दिया।
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