महात्मा गांधी का जीवन परिचय | गांधी जयंती विशेष
पवन कुमार।
महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास कर्म चन्द गांधी (Mahatma Gandhi) था। इनका जन्म 2 अक्तुबर सन 1869 में गुजरात के पोरबन्दर में हुआ। इनके पिता करम चन्द गांधी पंसारी जाति से सम्बन्ध रखते थे व माता पुतली बाई परनामी वैश्य समुदाय से थी। पुतली बाई करमचन्द गांधी की चौथी पत्नी थी क्योंकि इनकी तीन पत्नियों की प्रसव के दौरान मौत हो गई थी। माता-पिता के धार्मिक विचारों का गांधी जी पर बचपन से ही प्रभाव था। मात्र साढ़े तेरह वर्ष की आयु में ही गांधी जी का विवाह 14 वर्षीय कस्तूर बाई मकन जी से हुआ जिनको कस्तुरबा नाम से पहचान मिली और लोग प्यार से उन्हें ‘बा’ कहकर बुलाते थे।
महात्मा गांधी के बेटे का नाम
गांधी जी के चार पुत्र हुए हरीलाल गांधी, मणीलाल गांधी, रामदास गांधी और देवदास गांधी।
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यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से इन्होंने कानून की पढ़ाई की
गांधी जी सम्पन्न परिवार से थे। इनके पिता करमचन्द गांधी ब्रिटिश राज के समय पोरबंदर रियासत के दीवान (प्रधान मंत्री) थे। इनकी प्रारम्भिक पढ़ाई पोरबन्दर, राजकोट व भावनगर से हुई। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से इन्होंने कानून की पढ़ाई की। कुछ समय मुम्बई व राजकोट में वकालत करने के बाद गांधी जी एक भारतीय फर्म से अनुबंन्ध पर वकालत के लिए दक्षिण अफ्रीका चले गए। दक्षिण अफ्रीका भी उस समय अंग्रेजी साम्राज्य का हिस्सा होता था।
महात्मा गांधी निबंध
दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी को भारतीयों के साथ हो रहे भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार उन्हें प्रथम श्रेणी की टिकट होने के बावजूद रेलगाड़ी से उतार दिया गया। अफ्रीका के कई होटलों व रेस्त्रां से बाहर निकालने जैसी कई घटनाओं ने गांधी जी के मन में अंग्रेजी साम्राज्य द्वारा भारतीयों के साथ किए जा रहे भेदभाव के प्रति आक्रोश भर दिया।
‘भारतीय राष्टÑीय कांग्रेस’ में सक्रिय भूमिका
1915 में गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आए। भारत लौटकर उन्होंने ‘भारतीय राष्टÑीय कांग्रेस’ में सक्रिय भूमिका निभाई और खुलकर स्वराज्य पर अपने विचार व्यक्त किए। गांधी जी को पहली ख्याति चम्पारण सत्याग्रह व खेड़ा सत्याग्रह में मिली जब उन्होेंने छोटे किसानों के हक में अंग्रेज सरकार के खिलाफ सत्याग्रह किया जिससे मजबूर होकर अंग्रेज सरकार ने छोटे किसानों से राजस्व वसूलने का फरमान वापिस लेना पड़ा।
1 अगस्त 1920 में गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया
1 अगस्त, 1920 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया। गांव के किसान मजदूर से लेकर शहरों तक में इस आन्दोलन को जबदस्त समर्थन मिला। इस आन्दोलन के तहत सरकार के स्कूल, कॉलेज, दफ्तर, न्यायालयों का बहिष्कार किया गया। सरकार इस आन्दोलन से पंगु हो गई थी लेकिन फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरी चौरा में किसानों के एक समूह ने पुलिस थाने को आग लगा दी जिसमे कई पुलिस कर्मी जिन्दा जल गए। गांधी जी इस घटना से विचलित हो गए और असहयोग आन्दोलन को वापिस लेने का ऐलान कर दिया। गांधी जी के इस कदम की सुभाष चन्द्र बोस व मोती लाल नेहरु समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने आलोचना की। गांधी जी ने कहा कि आन्दोलन को हिंसा से बचाने के लिए मैं किसी भी प्रकार के तिरस्कार, यातनापूर्ण बहिष्कार यहां तक कि मौत को भी स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ।
जब देखते ही देखते जन आंदोलन बना | Mahatma Gandhi
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांगे्रस समिति के अधिवेशन में गांधी जी ने भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा की। जो देखते ही देखते एक जन आंदोलन बन गया। गांधी जी समेत अनेक युवाओं को जेल में डाल दिया गया।
15 अगस्त 1947 का दिन था खास
जून 1944 में जब विश्व युद्ध समाप्ति के कगार पर था तो गांधी जी को अंग्रेजों ने जेल से बाहर निकाल दिया। फरवरी 1947 में लॉर्ड माऊंट बेटन को वायसराय नियुक्त किया गया। लॉर्ड माऊंट बेटन ने ही भारतियों को सत्ता हस्तांतरण का ऐलान किया लेकिन विभाजन के साथ। जिसके लिए 15 अगस्त, 1947 का दिन निश्चित किया गया। देश में कोने-कोने में खुशियां मनाई गई।
महात्मा गांधी की मृत्यु कब हुई
जब दिल्ली में 15 अगस्त को उत्सव मनाया गया जा रहा था तो गांधी जी कलकता में थे वहां पर भी उन्होंने किसी उत्सव में भाग नहीं लिया। वे देश के बंटवार हिन्दु-मुश्लिम के बंटवारे और हिंसा से दु:खी थे। 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में एक प्रार्थना सभा के दौरान नत्थुराम गोडसे ने महात्मा गांधी को गोली मार दी। ‘हे राम’ गांधी जी के मुख से निकले आखिरी शब्द थे।
जानिए, महात्मा गांधी के जीवन की रोचक घटनाएं
गांधी जी के एक बहुत ही निकटतम मित्र थे- रुस्तम | Mahatma Gandhi
जो एक प्रसिद्ध व्यापारी थे। मित्रता के साथ-साथ वो गांधी जी के मुवक्किल भी थे। उनका मुम्बई व कलकता में व्यापार था। व्यापार में वे चुंगी फीस की चोरी करते थे इस बात को उन्होंने गांधी जी से छुपाया हुआ था। एक दिन उनकी यह चोरी पकड़ी गई और उन्हें जेल जाने की नौबत आ गई। वे दौड़े-दौड़े गांधी जी के पास आए और मदद करने का आग्रह किया। गांधी जी चोरी की इस बात पर बहुत नाराज हुए और इस केस में कोई मदद करने से साफ इन्कार कर दिया। गांधी जी ने उसे डांटते हुए कहा कि जाओ और चुंगी अधिकारी के पास अपना गुनाह कबूल करो भले ही तुम्हें जेल हो जाए। वह व्यापारी गांधी जी की सलाह मानकर चुंगी अधिकारी के पास गया और साफ-साफ सब सच बता दिया। अधिकारी ने उनकी स्पष्टवादिता से प्रसन्न होकर मुकदमा का विचार त्याग दिया और जुमार्ना लगाकर व्यापारी को छोड़ दिया। व्यापारी गांधी जी की इस सीख से बहुत प्रभावित हुआ और भविष्य में किसी प्रकार की टैक्स चोरी से तौबा की।
रेलगाड़ी में सफर: | Mahatma Gandhi
एक बार गांधी जी चम्पारण से बतिया रेलगाड़ी में सफर कर रहे थे। रेलगाड़ी में बहुत कम सवारियां थी काफी सीटें खाली पड़ी थी। गांधी जी एक सीट पर लेट गए। जब अगले स्टेशन पर गाड़ी रूकी तो वहां से एक किसान गाड़ी में चढ़ा, वो गांधी जी को लेटा देखकर गुस्से में बोला कि उठो, क्यों पसरे पड़े हो। यह सोने की सीट नहीं है। गांधी जी उसे बिना कुछ कहे बैठ गए और सीट के एक ओर बैठ गए। जब बतिया स्टेशन आया तो गांधी जी उतरने लगे, किसान भी गांधी जी के पीछे ही था। किसान ने देखा कि स्टेशन पर बहुत भारी भीड़ फूल मालाएं लिए खड़ी है और जैसे ही गांधी जी उतरे सभी उन्हें फूल मालाएं डालने के लिए उमड़ पड़े। किसान यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया जब उसे पता चला कि जिन महानुभाव को उन्होेंने डांटा था वे महात्मा गांधी थे। सबसे रोचक बात यह कि किसान बेशक महात्मा गांधी को पहचान नहीं पाया था लेकिन किसान अपने गांव से बतिया महात्मा गांधी को ही मिलने के लिए आया था। किसान स्टेशन पर ही महात्मा गांधी के पांव में गिर पड़ा और क्षमा याचना की। गांधी जी ने उसे छाती से लगाते हुए कहा कि आप ने मुझे बहुत बड़ी सीख दी है कि मुफ्त की चीज का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
गांधी जी को सबसे पहले ‘राष्टÑपिता’ कहकर सम्बोधित करने वाले सुभाष चन्द्र बसे थे। 4 जून 1944 को सिंगापुर से एक रेडियो संदेश में उन्होंने गांधी जी को राष्टÑपति कहकर सम्बोधित किया। गांधी जी को महात्मा की उपाधि नोबेल पुरस्कार विजेता सर रविन्द्र नाथ टैगोर ने दी। 15 अगस्त, 1947 के दिन गांधी जी बंगाल के नोआखली में थे। इस दिन गांधी जी ने 24 घण्टे का उपवास रखा क्योंकि इस दिन देश को आजादी तो मिली थी लेकिन बंटवारे के साथ। जिस कारण हिन्दु-मुस्लिम के बीच काफी खून खराबा हुआ जिससे गांधी जी बहुत दु:खी थे।
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