‘‘ऐसा बब्बर शेर बनाएंगे, जिसका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं होगा ….

Shah-Satnam-Singh-Ji-Mahara

‘‘ऐसा बब्बर शेर बनाएंगे, जिसका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं होगा जो कम से कम 50-60 साल तक काम करेगा’’

पूजनीय परम पिता जी ने मोहन लाल को उदास देखकर उसकी कुशलता पूछी। तक मोहन लाल ने दुखी स्वर में सारा वृतान्त कह सुनाया। इस पर पूजनीय परम पिता जी (Param Pita Shah Satnam Singh Ji Maharaj) ने मुस्कुराते हुए पूछा कि क्या तुमने हमारा नाम लेकर बताया था कि हम उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते हैं। तत्पश्चात् मोहन लाल को फिर से पूज्य हजूर पिता जी के पास जाने का हुक्म फरमाया। मोहन लाल सतवचन कहकर फिर से श्री गुरूसर मोडिया के लिए रवाना हो गया।

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अब मोहन लाल की दशा बहुत ही अजीब हो गई थी क्योंकि एक तरफ पूजनीय परम पिता जी का हुक्म था और दूसरी तरफ पूज्य हजूर पिता जी का अपने मुर्शिद के प्रति सच्चे प्रेम का वह रूप जिसमें पूज्य हजूर पिता जी अपने आप को अपने गुरू के बराबर लाने की बात को सुनना भी पसंद नहीं करते थे। इसी दुविधा में वह श्री गुरूसर मोडिया जा पहुंचा। वह, पूज्य हजूर पिता जी के सामने जाकर बुत की भांति चुपचाप खड़ा हो गया। इस पर पूज्य हजूर पिता जी ने उसकी कुशलता पूछते हुए कहा कि क्या बात है? आप कुछ बोलते क्यों नहीं? तब हिम्मत करके मोहन लाल ने कहा कि मैं पूजनीय परम पिता जी के हुक्मानुसार आपके पास आया हूं। वे आपको उत्तराधिकारी का कार्यभार सौंपना चाहते हैं। यह सुनकर पूज्य हजूर पिता जी ने कहा, ‘‘यह तुमने पहले क्यों नहीं बताया था कि यह पूजनीय परम पिता जी का हुक्म है। पूजनीय परम पिता जी के लिए तो हम अपने शरीर के बंद-बंद (शरीर का जोड़-जोड़) कटवाने को तैयार हैं।’’

इतना कहकर जब पूज्य हजूर पिता जी पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महराज के चरणों में पहुंचे तो प्रार्थना की कि हे सतगुरू जी मैं इस काबिल नहीं हूं। आप हमेशा युगों-युग तक अटल रहो जी, यूं ही प्यार बख्शते रहो जी। यह सुनकर पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘तुम फिक्र मत करो हम थे, हम हैं, हम ही रहेेंगे। तुम जाओ और अपना काम संभालो, कराहा इत्यादि लगाओ हम तुम्हें बब्बर शेर बनाएंगे।’’ कुछ समय उपरांत ही पूजनीय परम पिता जी ने पूज्य हजूर पिता जी को अपना भावी उत्तराधिकारी मानते हुए हुक्मनामा तैयार करवाया। 21 सितंबर 1990 दिन शुक्रवार शाम को पूजनीय परम पिता जी ने आश्रम में रहने वाले सत् ब्रह्माचारी सेवादारों को तेरावास में बुला लिया तथा असली बात का खुलासा करते हुए फरमाया, ‘‘प्यारे बच्चों! जो आप साल भर बैठकें करते रहे हो उसका उद्देश्य पूरा हो गया है। परसों 23 सितंबर को सभी बातें सामने आ जाएंगी। जैसा-जैसा हम चाहते थे, बेपरवाह सार्इं शाह मस्ताना जी महाराज ने उससे भी कई गुणा ज्यादा बढ़िया उत्तराधिकारी ढूंढ कर दिया है।’’

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जिस प्रकार एक माली पौधे की प्योंद (कलम चढ़ाना) करता है। प्योंद किया हुआ पौधा दूसरे पौधे से अधिक और बढिया किस्म का फल देता है। इसी प्रकार हम भी उसे (पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां) उस पौधे की तरह प्योंद करके ऐसा बब्बर शेर बनाएंगे, जिसका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं होगा और जो कम से कम 50-60 साल तक काम करेगा। क्योंकि रोज-रोज गद्दी नहीं बदलती। किसी ने किसी प्रकार की कोई चिंता नहीं करनी है और हमारे वचनों पर सभी ने फूल चढ़ाने हैं। यह वचन पूजनीय परम पिता जी ने तीन-चार बार दोहराये। उपरोक्त वचनों को सुनकर कई सत्-ब्रह्माचारी सेवादारों को वैराग्य आ गया और वे रोने लगे।

इस पर पूजनीय परम पिता जी ने उन्हें अपना भरपूर प्यार देते हुए पावन वचन फरमाया, ‘‘बेटा रोना नहीं है। किसी ने भी दिल छोटा नहीं करना है, हम कहां जा रहे हैं, हम तो तुम्हारे साथ ही हैं और सदा तुम्हारे साथ ही रहेंगे।’’ इसके बाद पूजनीय परम पिता जी ने मोहन लाल को सबकुछ समझाते हुए कहा कि श्री गुरूसर मोडिया वाले काके (लड़के) गुरमीत सिंह व उनके परिवार को हमारे पास बुला लाओ। पूजनीय परम पिता जी के हुक्मानुसार मोहन लाल व सेवादार श्री गुरूसर मोडिया के लिए रवाना हो गए।

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