धान-गेहूं फसल प्रणाली उत्तर पश्चिम भारतीय मैदानी इलाकों में पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों का 4.1 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र आता है और इस प्रणाली में 75 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र की कटाई कंबाइन द्वारा की जाती है। गेहूं के भूसे की तूडी बनाकर मुख्य रूप से पशुओं के चारे के रूप में उपयोग किया जाता है जबकि धान के भूसे में लिग्निन की कम मात्रा (6-7 प्रतिशत) और सिलिका (12-16 प्रतिशत) की उच्च मात्रा के कारण निम्न गुणवत्ता वाला चारा माना जाता है क्योंकि यह पाचनशक्ति को कम करता है। हर साल की तरह धान की फसल की कटाई अक्टूबर शुरू होते ही शुरू हो जाएगी। सरकार की नीतियों के विरोध के चलते या बेबस किसान अपने खेतों में पराली जलाएंगे (Stubble Burning Solution) और सरकार आगजनी करने वालों पर जुर्माना लगाएगी। जब तक इस गंभीर समस्या का पर्याप्त समाधान नहीं मिल जाता, लंबे समय तक समस्या बनी रहेगी।
तीन दशक पहले चावल के छिलके के ढेर मिलों में मिल जाते थे, मुफ्त में भी कोई नहीं लेता था, आखिरकार तकनीक विकसित हो गई, अब शेलर मालिक 5-7 किलो छिलके को भी खराब नहीं होने देते और बेचते हैं, कमाते हैं। मुकदमेबाजी किसी समस्या का समाधान नहीं है, किसानों के साथ संघर्ष को रोकने के लिए समस्या का समाधान खोजने पर जोर दिया जाना चाहिए। एक रुपये की माचिस से पराली में आग लगाने के फायदे बहुत कम होते हैं और इसके परिणाम गंभीर होते हैं। एक टन (1000 किलोग्राम) धान के अवशेष में लगभग 5.5 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फास्फोरस, 2.5 किलोग्राम पोटाश, 1.2 किलोग्राम सल्फर तथा 400 किलोग्राम कार्बन होता है जो पराली को जलाने से नष्ट हो जाता है। इन पोषक तत्वों के अलावा, मिट्टी का तापमान, पीएच, नमी, मिट्टी में मौजूद फास्फोरस और जैविक तत्व भी प्रभावित होते हैं।
पराली प्रबंधन से संबंधित दो तरीके हैं
इन-सीटू और एक्स-सीटू। इन-सीटू में पराली को उर्वरक के रूप में खेत में ही मिलाया जाता है जबकि एक्स-सीटू में भूसे को खेत से बाहर गांठों के रूप में हटाया जाता है। इन सीटू प्रक्रिया में कम्बाइन के साथ सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम का उपयोग शामिल है जो पराली को 4-5 इंच के छोटे छोटे टुकड़ों में काटता है और इसे समान रूप से खेत में फैला देता है। इस प्रणाली को 2016 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा विकसित किया गया था। स्ट्रॉ चॉपर / श्रेडर का उपयोग भूसे को छोटे टुकड़ों में काटने और सामान्य रूप से खेत में फैलाने के लिए भी किया जाता है। पुआल (तूड़ी) के लिए स्ट्रॉ रीपर/कम्बाइन का उपयोग किया जा सकता है।
मल्चर का उपयोग भी घास, झाड़ियों, गन्ने के अवशेषों, पराली और मकई के अवशेषों को छोटे टुकड़ों में काटकर जमीन पर फैलाने के लिए किया जा सकता है। प्रतिवर्ती मोल्ड बोर्ड हल का उपयोग एक ही समय में मिट्टी को काटने, पलटने और तोड़ने के लिए किया जा सकता है। रोटावेटर का उपयोग भूसे को छोटे टुकड़ों में काटकर मिट्टी में मिलाने के लिए भी किया जा सकता है, 1.5 मीटर से कम चौड़ाई वाले रोटावेटर के लिए 35 से 45 हॉर्स पावर का ट्रैक्टर और 1.5 मीटर से अधिक चौड़ाई वाले रोटावेटर के लिए 45-55 हॉर्स पावर का ट्रैक्टर चाहिए। यदि खेत में मौजूद पराली की मात्रा कम हो तो धान की कटाई के तुरंत बाद जीरो टिल ड्रिल मशीन से बिना जुताई के सीधे गेहूं की बुवाई की जा सकती है।
किसान हैप्पी सीडर का प्रयोग कर पराली युक्त खेत में सीधी बुवाई कर सकते हैं। इसमें एक शाफ्ट पर फ्लेल प्रकार के ब्लेड लगे होते हैं और उनके ठीक पीछे गेहूं बोने वाले फाले लगे होते हैं, हैप्पी सीडर के साथ उपयोग के लिए डबल क्लच ट्रैक्टरों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। सुपर सीडर की विशेषता यह है कि इसका उपयोग धान और कपास के खेतों में गेहूं की सीधी बुवाई के लिए किया जाता है, इस से एक बार चलाने से ही खेत की जुताई, मिट्टी में पराली मिलाना तथा गेहूं की सीधी बुवाई हो जाती है। इस मशीन का वजन करीब 850 से 1000 किलोग्राम होता है।
मशरूम उत्पादन आदि के लिए किया जा सकता है
पराली के गैरस्थानिक प्रबंधन में, पराली की गांठे बनाकर खेत से बाहर निकालना भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है। इन गांठों का उपयोग ब्रिकेट बनाने, बायोगैस बनाने, पावर पलांट में ईंधन के रूप में, पशुओं के चारे के रूप में, कार्डबोर्ड कारखानों में कागज बनाने, जैविक उर्वरक, मशरूम उत्पादन आदि के लिए किया जा सकता है। श्रब मास्टर/रोटरी स्लेशर, हे रेक और बेलर आदि एक्स सीटू उपयोगी मशीनें हैं। सरकार किसानों को पराली प्रबंधन मशीनों की खरीद पर सब्सिडी भी देती है।
केंद्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा पूसा डीकंपोजर तकनीक लाई गई जिसमें कैप्सूल, गुड़ और चने का आटे का घोल तैयार कर भूसे पर छिड़काव किया जाता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह छिड़काव पराली को खाद में बदल देगा, लेकिन किसानों के अनुसार इसमें अधिक समय लगता है, जबकि धान की कटाई और गेहूं की बुवाई में 20-25 दिन का कम समय रहता है। जमीन एक किसान की मां और बच्चा सब कुछ होती है और कोई भी किसान जानबूझकर इसे नुकसान नहीं पहुंचाना चाहेगा। किसानों के बीच अधिक से अधिक जागरूकता और उपयुक्त उपलब्ध साधन व उपाय ही पराली की समस्या के निदान में मदद कर सकते हैं।
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