Sirsa: पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि इन्सान दिन-रात भौतिकतावाद में ऐसा उलझा है कि उसे उस मालिक की या अपनी आत्मा का कोई ख्याल, होश, समझ नहीं है जिससे वह दुखी, परेशान होता है, चिंताओं में डूब जाता है। अगर वह मेहनत करता है, कोशिश करता है तो कई बार चिंताओं से निकल जाता है, लेकिन दूसरी चिंताएं और तैयार हो जाती हैं। चिंता, टेंशन जीते-जी इन्सान को जलाने वाली चिता है। एक चिता वो होती है जो मरने के बाद इन्सान को जलाकर राख कर देती है। वो एक बार में काम-तमाम कर देती है लेकिन गम, चिंता, टेंशन ऐसी चिता है जो जीते-जी इन्सान को जलाती रहती है। इन्सान कभी मर जाता है, फिर जी उठता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि इन्सान के साथ ये चिंताएं, परेशानियां जुड़ी रहती हैं क्योंकि इन्सान को अपना आत्म-विश्वास जगाना नहीं आता। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने यह रिसर्च किया है। जर्मनी के वैज्ञानिकों ने भगवान को मानने वाले और न मानने वाले लगभग 14000 लोगों पर सर्च किया। उन्होंने रिजल्ट यह निकाला कि जो राम का नाम नहीं लेते वो जल्दी पेरशान हो जाते हैं और आत्महत्या तक भी पहुंच जाते हैं और वे टेंशनों से भरे रहते हैं। जो राम का नाम लेने वाले हैं वो जल्दी से उत्तेजित नहीं होते। जो वास्तव में राम-नाम का जाप करने वाले हैं। यह नहीं कि राम-नाम ले लिया और जाप किया ही नहीं। जो सुबह-शाम जाप करते हैं वो जल्दी से पेरशान नहीं होते और आत्महत्या की भावना कभी आ भी गई तो उस पर अमल करने का तो सवाल ही नहीं होता। उन वैज्ञानिकों ने रिजल्ट निकाला कि जो लोग प्रेयर (भगवान को याद करते हैं) करते हैं उनके ऊपर ब्रह्मांड से एक अदृश्य शक्ति की किरणें टकराती हैं और उनके टकराने से इन्सान का आत्म-विश्वास बढ़ जाता है जिससे वे गम, चिंता, टेंशनों से जल्दी मुक्त हो जाते हैं। आप जी फरमाते हैं कि हमारे धर्मों में यह लिखा है कि भगवान, अल्लाह, वाहेगुरु, राम है। कोई साधक उसे याद करता है तो उससे किरणें टकराती हैं जो इन्सान का आत्म-विश्वास बढ़ाती हैं और आत्म-विश्वास बढ़ने से आदमी सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला जाता है। यह बात वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि यह सही है कि अगर कोई मालिक का नाम लेता है, उन्हें एक अलग शक्ति, ताकत, हिम्मत मिलती है ताकि वो बुराइयों से लड़ सके, अपने अंदर की बुरी आदतों को बदल सके। आप जी फरमाते हैं कि सुमिरन के बिना आत्म-विश्वासी नहीं बन पाओगे, नेक कामों में तरक्की नहीं कर पाओगे। जगह-जगह रूकावटे हैं, बुराई के नुमाइंदें जाल बिछाए बैठे हैं। ज़रा सी बात हुई नहीं कि उनका जाल आप पर आ पड़ता है और आप उनकी मीठी-मीठी, लचकदार बातों में उलझ जाते हैं और ऐसे उलझते हैं कि अपनी असलियत से दूर हो जाते हैं। तो भाई, सुमिरन करो। सुमिरन करने में कोई जोर नहीं लगता। इसके लिए कोई अलग से कपड़े नहीं पहनने। जो आपको अच्छे लगते हैं वो कपड़े पहनो। यह रूहानियत में कहीं भी नहीं आता कि भगवान कपड़ों पर मोहित होता है या किसी अलग तरह की वेशभूषा से खुश होते हैं। किसी भी धर्म में रहो, जो मर्जी कपड़े पहनो। अपने अंदर के विचारों को स्वच्छ करो। अगर अंदर के विचार शुद्ध हैं, अंदर का शुद्धिकरण आप कर लेते हो तो मालिक की मुसलाधार रहमत बरसती हुई आपको नज़र भी आएगी और आप उसका आनंद भी उठा पाएंगे।
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