सन् 1989 की बात है। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने सेवादारों को पानी वाली डिग्गी में पानी निकालकर वृक्षों को देने का वचन फरमाया। उस समय कल्याणनगर और सरसा शहर की कुछ बहनें भी सेवा करने लग गई शाम की मजलिस के बाद शहनशाह जी सेवा कर रही माता-बहनों के पास आए और फरमाने लगे, ‘‘बेटा, आपने बहुत ही सेवा की है।’’ पूजनीय परम पिता जी ने उन्हें प्रसाद दिया। सेवादार बहनों ने पूजनीय परम पिता जी से अपने साथ फोटो खिंचवाने की प्रार्थना की। सभी बहनें पूजनीय परम पिता जी के पावन चरण-कमलों में बैठ गई व फोटो खिंचवाई।
कुछ दिनों बाद पता चला कि फोटो सही नहीं खींची गई। यह सुनकर पूजनीय परम पिता जी के पास आकर बहनें रोने लगीं। तब पूजनीय परम पिता जी ने वचन फरमाया,‘‘बेटा, तुम्हारी फोटो तो आगे सचखंड पहुंंच गई है।’’ यह बात सुनकर सभी बहनें बहुत ही खुश हो गई। श्रीमती शांति देवी, सरसा (हरियाणा)
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‘‘बेटा, गुरू तो प्रेम का ही भूखा होता है न कि खाने-पीने का।’’
एक दिन सरसा शहर के एक सत्संगी ने पूजनीय परम पिता जी से अपने घर पावन चरण कमल डालने की प्रार्थना की। पूजनीय परम पिता जी ने उसकी तड़प को देखते हुए उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और अगले ही दिन उसके घर चले गए। अपने प्यारे सतगुरू को अपने घर आए देखकर उस सत्संगी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। वह सत्संगी इतना गरीब था कि पूजनीय परम पिता जी को खिलाने के लिए उसके घर में कुछ नहीं था। वह पूजनीय परम पिता जी के पास आकर रोने लगा और कहने लगा, ‘‘पिता जी, मेरे पास आपको खिलाने के लिए कुछ भी नहीं।’’
इस पर पूजनीय परम पिता जी ने वचन फरमाया, ‘‘बेटा, गुरू तो प्रेम का ही भूखा होता है न कि खाने-पीने का। तू चिंता मत कर। हमें किसी भी चीज की जरूरत नहीं है।’’ फिर पूजनीय परम पिता जी ने उसे अपने पास बिठाकर उससे खूब बातचीत की और अत्यंत खुशियां बख्शकर वहां से आश्रम के लिए रवाना हो गए। इस प्रकार उस सत्संगी की इच्छा को पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पूरा किया।
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