पंजाब के चौहला साहिब में एक परिवार के बुरी तरह से नशे की चपेट में आने का समाचार चर्चा में आया। पहले नशे के कारण बड़े पुत्र की मौत हुई, जिसके भोग की रस्में पूरी नहीं हुई थी कि छोटे पुत्र की भी नशे के कारण मौत हो गई। सबसे चिंताजनक बात यह है कि ऐसी घटनाएं वहां हो रही हैं जहां नशे की रोकथाम एक राजनीतिक मुद्दा बना रहा है व नशे को खत्म करने के लिए समय-समय की सरकारों द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। चौहला साहिब जैसी घटनाएं कुछ दिन बाद अन्य जगहों पर भी घटित होती रहती हैं। राजनीतिक पार्टियों की बयानबाजी व सरकारी स्तर पर प्रयासों के बावजूद नशे का जारी रहना कई सवाल खड़े करता है। सवाल यह भी उठता है कि सरकारें नशे की समस्या को गंभीरता से क्यों नहीं लेती? यह सवाल भी उठता है कि सरकारें जो कदम उठाती हैं, क्या वह तर्कसंगत, वैज्ञानिक व निर्णय सही हो सकते हैं लेकिन उतनी गंभीरता से लागू नहीं होते। सबसे बड़ी विकट समस्या यह है कि नशे की रोकथाम के लिए कोई एक कमी नहीं बल्कि ऊपर जिक्र की गई सभी कमियों के अलावा और भी कई सिद्धांतिक व व्यवहारिक गलतियां हो सकती हैं।
सरकारों के लिए नशे की रोकथाम का मामला स्वास्थ्य विभाग या पुलिस तक सिमट रह गया है। स्वास्थ्य विभाग शिविर भी लगाता है व नशेड़ियों को नशा छोड़ने की दवाइयां भी मुहैया करवाता है। हालांकि यह भी देखना चाहिए कि दवाइयां लेकर वह व्यक्ति बाद में नशा करता है या नहीं। होना तो यह भी चाहिए कि नशा छोड़ने वाले को कुछ दिन स्वास्थ्य विभाग अपनी निगरानी में रखे। सरकार को इस कार्य के लिए खर्च भी करना चाहिए। सरकारी स्तर पर व्यवस्था नहीं होने के चलते कई निजी नशा छुड़ाऊ केन्द्र मोटी कमाई कर रहे हैं। दूसरी तरफ पुलिस विभाग छुटपुट नशा तस्करों की गिरफ्तारी कर लेता है लेकिन विगत 30 वर्ष से हेरोइन व अन्य नशों की सप्लाई बंद नहीं हो सकी। यदि नीतियां सही होंगी, फिर ही नशा तस्करों का नेटवर्क तोड़ पाना संभव है।
नशे का मुद्दा चुनावों के आसपास ही चर्चा में आता है। इस समस्या का समाधान करने की योजना राजनीतिक विशेषज्ञों से निकल सामाजिक दायरे का अंग ही नहीं बन सकी। पुलिस बड़े नशा तस्करों को पकड़ती नहीं, निर्दोष लोगों को नशा तस्करी के झूठे आरोपों में फंसाना, धमकाना व रिश्वत लेने के मामले रोजाना सामने आ रहे हैं। नशे की रोकथाम केवल मीडिया में बयानबाजी से नहीं होगी बल्कि नशे को खत्म करने के लिए इसके परिवारिक, सामजिक व धार्मिक पहलूओं पर भी नजर डालनी होगी। सबसे पहले नेताओं में इच्छा शक्ति की जरूरत है केवल अधिकारियों पर सारा काम छोड़कर कोई देश तरक्की नहीं कर सकता। इस मामले को समय रहते एक स्वस्थ समाज के निर्माण का संकल्प लेकर इसका समाधान निकालना होगा। मामले से जुड़े अन्य पहलूओं कमजोर अर्थव्यवस्था, मनोरंजन, सांस्कृतिक परिवर्तन, शिक्षा प्रबंधों की कमियों व राजनीति में समाज के प्रति बढ़ रहा गैर-जिम्मेवार रवैया जैसे तत्वों की समीक्षा व सुधार यकीनी बनाना होगा।
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