गत दिवस यह खबर चर्चा का विषय बनी थी कि हाईड्रोजन से चलने वाली देश की पहली बस पूणे की सड़कों पर उतारी गई। इसके कुछ दिन पहले ही मुम्बई में भी डबल डेकर इलेक्ट्रिक बसों का परिचालन शुरू किया गया। जहां तक हाईड्रोजन बस चलने की बात है, इसकी विशेषता यह है कि अब उक्त बसें धुआं नहीं छोड़ेंगी, यानि प्रदूषण नहीं करेंगी। हाईड्रोजन की खपत से केवल पानी ही बनेगा, जिससे पर्यावरण पूरी तरह से शुद्ध रहेगा। तेल रहित वाहनों की देश को तत्काल आवश्यकता है। टाटा और इसरो ने सन् 2006 में हाईड्रोजन बस के लिए इस तकनीक पर काम करना शुरू किया था और 2013 में बसों के तैयार होने की खबरें भी सामने आई थीं। करीब 17 वर्ष गुजर गए।
मौजूदा दौर में बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण को देखते हुए नई तकनीकों को गतिशीलता से पूरा करने की आवश्यकता है। नि:संदेह इंजीनियर और वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने इस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत की, लेकिन जिस प्रकार से प्रदूषण ने देश को बेहाल किया है उसके मुताबिक तकनीक में तीव्रता से वृद्धि करनी होगी। जर्मनी ने हाईड्रोजन संचालित रेलगाड़ियां की तकनीक भी विकसित कर ली है। वास्तविकता में हमारा देश वायु प्रदूषण के मामले में सबसे अव्वल चल रहा है। दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषण वाले 20 शहरों में 18 शहर भारत देश के शामिल हैं। महानगरों के कई हिस्सों में स्वांस लेना भी बहुत मुश्किल हो रहा है। पिछले कई सालों में दिल्ली सरकार वायु प्रदूषण के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के किसानों को दोषी मानती रही। इन राज्यों के किसानों पर आरोप लगाया जाता रहा है कि किसान पराली को आग लगाते हैं, जिस कारण पराली का धुआं दिल्ली के पर्यावरण को दूषित कर रहा है।
वैज्ञानिक तौर पर यह आरोप बिल्कुल बेबुनियाद हैं। 4-5 राज्यों का धुआं केवल दिल्ली को ही कैसे प्रदूषित कर सकता है। असल में दिल्ली में यातायात के करोड़ों साधन हैं और वहीं बड़ी फैक्ट्रियों से निकल रहा धुआं ही वायु प्रदूषण का मुख्य कारण बना हुआ है। सो अब जरूरत दिल्ली सहित अन्य प्रदूषित शहरों में हाईड्रोजन सहित अन्य तेल रहित बसों को सड़कों पर उतारा जाए ताकि प्रदूषण खत्म हो जाए। इलैैक्ट्रिक बसों को भी सड़कों पर उतारा जाए। इसके साथ ही दोपहिया और चौपहिया वाहन भी तेल रहित करने होेंगे। सार्वजनिक वाहन ज्यादा होंगे तो निजी वाहनों का इस्तेमाल भी घटेगा। साथ ही साईकिल का चलन भी बढ़ाना होगा।
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