बहन Honeypreet Insan ने वीर पुत्र ‘राजगुरु’ के जन्मदिन पर किया ट्वीट

Honeypreet Insan

 वीर पुत्र राजगुरु, जिसकी दहाड़ से कांप गई थी ब्रिटिश सरकार की नींव

चंडीगढ़ ( एमके शायना) । भारत को आजादी दिलाने के लिए बहुत से सुरवीरों का खून बहा है। उन्हीं योद्धाओं में से आज हम बात करेंगे एक ऐसे भारत के सच्चे सपूत की, जिन्होंने महज 22 साल की उम्र में हमारे देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए और भारत माता के सम्मान के खातिर अपने प्राणों की आहुति दे डाली। जी हाँ हम बात कर रहे हैं शहीद शिवराम हरी राजगुरु की जिनका आज यानी 24 अगस्त को जन्मदिन भी है। आज उनके जन्मदिन पर उनकी कुर्बानियों को याद करते हुए ट्वीट कर बहन हनीप्रीत इन्सां ने लिखा, “श्री शिवराम हरि राजगुरु जी की जयंती पर कोटि-कोटि नमन। विदेशी शासन के अत्याचारों के खिलाफ लड़ने के लिए उनका बलिदान और देश की आजादी के लिए क्रांति लाने में असाधारण प्रतिबद्धता काबिले तारीफ है”। बहन Honeypreet Insan युवाओं को देश के लिए अच्छा करने के लिए हमेशा प्रेरित करती रहती हैं ताकि वह भी देश को फिर से सोने की चिड़िया बनाने में सहयोग करें। शहीद शिवराम हरी राजगुरु का जीवन कैसा था और उन्होंने देश की आजादी के लिए क्या किया आइए जानते हैं…

प्रारंभिक जीवन | Rajguru

इतिहास की बात करें तो राजगुरु का जन्म महाराष्ट्र, के पुणे जिले के खेडा गाँव में 24 अगस्त, 1908 को हुआ था। इनके पिता जी का नाम श्री हरि नारायण और माता जी नाम पार्वती बाई था। इनके पिता श्री हरि नारायण जी का जब निधन हुआ तब राजगुरु की उम्र सिर्फ 6 वर्ष की थी। तब से इनका पालन पोषण और शिक्षा की जिम्मेदारी इनकी माता जी और बड़े भैया ने निभाई। राजगुरु बचपन से ही निडर और साहसी स्वभाव के थे। वे हमेशा खुशमिजाज थे।

चन्द्रशेखर आजाद से जुड़ाव | Rajguru

वैसे तो बचपन से ही राजगुरु के अंदर जंग-ए-आजादी में शामिल होने की भयंकर ललक थी। इसी तरह वाराणसी में विद्याध्ययन करते हुए राजगुरु का सम्पर्क अनेक क्रान्तिकारियों से हुआ। लेकिन चन्द्रशेखर आजाद से वे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी पार्टी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी से तत्काल जुड़ गए, उस वक्त उनकी उम्र मात्र 16 साल की ही थी। इस दल में इनका और उनके साथियों का मुख्य मकसद था ब्रिटिश अधिकारियों के मन में अपना खौफ पैदा करना। इसके साथ ही वे घूम-घूम कर लोगों को जागरूक करते थे और जंग-ए-आजादी के लिये जागृत भी करते थे।

बात करते हैं 19 दिसंबर 1928 की जब राजगुरू ने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर ब्रिटिश पुलिस आॅफीसर जेपी साण्डर्स की हत्या की थी। दरअसल यह वारदात लाला लाजपत राय की मौत का बदला थी, जिनकी मौत साइमन कमीशन का विरोध करते वक्त लाठीचार्ज में हुई थी। इसके साथ ही 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली में हुए सेंट्रल असेम्बली में बम हमला में भी राजगुरु का बड़ा हाथ था। राजगुरु, भगत सिंह और सुखदेव का खौफ ब्रिटिश प्रशासन पर इस कदर चढ़ चूका था था कि, इन तीनों को ही पकड़ने के लिये पुलिस को विशेष अभियान भी चलाना पड़ा था।

23 मार्च 1931 को आजादी के मतवालों को मिली फांसी | Rajguru

साण्डर्स की हत्या के बाद राजगुरु महाराष्ट्र के नागपुर में जाकर छिप गये। वहां उन्होंने फरर कार्यकर्ता के घर में शरण ली। इसके बाद वहीं पर उनकी मुलाकात डा.के.बी हेडगेवार से हुई, जिनके साथ राजगुरु ने आगे की एक बड़ी योजना बनायी। लेकिन अफसोस की इससे पहले कि वे अपने इस आगे की योजना पर चलते, पुणे जाते वक्त पुलिस ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया। इसके बाद इन्हें भगत सिंह और सुखदेव के साथ 23 मार्च 1931 को फांसी पर लटका दिया गया। इन तीनों का ही दाह संस्कार पंजाब के फिरोजपुर जिले में सतलज नदी के तट पर हुसैनवाला में किया गया। इस प्रकार आजादी का ये मतवाला अपने दोस्तों के साथ ही भारत माता के लिए हँसते हँसते कुर्बान हो गया।

आज के युवाओं को आवश्यकता है इतिहास से सीखने की

इतनी कम आयु में देश के लिए जान देने वाले इन सपूतों की जीवनी आज के युवाओं को जाननी चाहिए। राजगुरु ने बहुत कम उम्र में ही संस्कृत पढ़ते हुए धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन प्रारम्भ कर दिया था। विचारणीय तथ्य है कि यदि ये सपूत नशे, और पाश्चात्य संस्कृति की ओर भागने जैसी संकीर्ण मानसिकता के गुलाम होते तो देश हित में कुछ न कर पाते। आज युवाओं को ये गांठ बांध लेने की आवश्यकता है कि जिस नशे, पार्टी और धर्म से दूर भागने के ‘ट्रेंड’ के पीछे वे भाग रहे हैं वे उनके लिए नरक का रास्ता है।

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