रोजाना 1200 होनहार खिलाड़ी दिखाते हैं मुक्के का दम, एक साथ करते हैं प्रैक्ट्सि
- राजीव गांधी खेल रत्न व पद्मश्री अवॉर्ड प्राप्त कर किया गौरवान्वित
- जिले के नाम 23 अर्जुन अवॉर्ड, 28 भीम अवॉर्ड, 4 द्रोणाचार्य अवॉर्ड, ज्यादातर मुक्केबाजी में
भिवानी (सच कहूँ/इन्द्रवेश)। भिवानी देश का वह जिला है, जिसे मुक्केबाजी की फैक्ट्री कहा जाता है। पूरे विश्व में एक ही समय पर सबसे अधिक संख्या में मुक्केबाजी की प्रैक्ट्सि खिलाड़ी जहां करते हैं, वह स्थान भिवानी हैं। यहां एक समय में 1200 के लगभग मुक्केबाज अंतर्राष्ट्रीय पदकों के लिए प्रैक्ट्सि करते हुए नजर आते हैं। भिवानी जिले को जहां खेल नगरी व मिनी क्यूबा के उपनामों से जाना जाता रहा है, अब वह पूरे विश्व में मुक्केबाजी का गढ़ बन गया है। हरियाणा की मिट्टी मैडल उगलती है। यह बात हाल ही में हुए कॉमनवेल्थ खेलों व इससे पूर्व अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में साबित हो चुकी है। वर्ष 2008 में हुए बीजिंग ओलंपिक में जब बिजेंद्र सिंह ने देश के लिए बॉक्सिंग में पहला मैडल प्राप्त किया था, उसके बाद से एकाएक भिवानी में मुक्केबाजी का क्रेज बढ़ा।
भिवानी की उपलब्धियों की बात करें तो भिवानी जिले के बिजेंद्र सिंह को देश को सबसे बड़ा राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार व पदम श्री पुरस्कार मिल चुका है। इसके अलावा भिवानी जिला के खिलाड़ी अब 23 अर्जुन अवॉर्ड, हरियाणा सरकार द्वारा दिए जाने वाले 28 भीम अवॉर्ड भी प्राप्त कर चुके हैं। खेल प्रशिक्षण के क्षेत्र में 4 द्रोणाचार्य अवॉर्ड भी भिवानी जिला के नाम दर्ज है। भिवानी जिले में अब तक लगभग 3 हजार के लगभग राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी विभिन्न खेलों में अपनी पहचान बना चुके हैं। यही कारण है कि भिवानी को खेल नगरी की उपाधि मिली हुई हैं।
जिले में हैं 22 अकेडमी
भिवानी के द्रोणाचार्य अवॉर्डी कोच जगदीश सिंह का कहना है कि भिवानी न केवल भारत, बल्कि दुनिया का वह शहर है, जहां एक समय में 1200 के लगभग मुक्केबाज एक्शन में होते हैं तथा मुक्केबाजी की प्रैक्ट्सि विभिन्न अकादमियों में कर रहे होते हैं। भिवानी शहर में 12 मुक्केबाजी अकादमी है तथा ग्रामीण क्षेत्र में लगभग 10 अकादमी है। इस प्रकार कुल 22 मुक्केबाजी अकादमी जिले में हैं।
हवासिंह के मुक्के से हुई थी शुरूआत
कोच जगदीश सिंह ने बताया कि भिवानी में मुक्केबाजी की शुरूआत कैप्टन हवा सिंह व आर.एस. यादव ने की थी। भिवानी जिले से पहले ओलंपियन मुक्केबाजी खिलाड़ी संदीप गोलन ने 1992 में हुए बर्सिलोना ओलंपिक में भागीदारी की थी। उसके बाद मुक्केबाज राजकुमार सांगवान ने एशियन चैंपियनशिप में देश को गोल्ड मैडल दिलाया था। उनके बाद जितेंद्र सीनियर ने दो बार ओलंपिक में हिस्सा लिया तथा कॉमनवेल्थ में देश के लिए मैडल प्राप्त किया।
ओलंपिक में बिजेन्द्र के कांस्य पदक ने बढ़ाया क्रेज
इसके बाद वर्ष 2008 में बिजेंद्र बॉक्सर का दौर शुरू हुआ। जिसने ओलंपिक में मुक्केबाजी में देश का पहला ब्रांज मैडल हासिल किया। उनके समकालीन दिनेश, अखिल, विकास कृष्णनन, पूजा बोहरा, जितेंद्र जूनियर ने देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अनेक मैडल बटोरे तथा मुक्केबाजी में भारत का नाम ऊंचा किया। इनके बाद दिलबाग, सुनील, नीतू घणघस, कविता चहल, साक्षी, सचिन, जैस्मिन, सोनिका जैसे खिलाड़ी अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर रहे है। हालही में भिवानी की नीतू घणघस व जैस्मिन ने कॉमनवेल्थ खेलों में एक बार फिर से देश को मैडल दिलाने का काम किया है। देश के लिए मैडल प्राप्त करने के पीछे हरियाणा की खेल नीति को भी इसका श्रेय जाता है।
दूसरे प्रदेशों के खिलाड़ियों की भी पहली पसंद
भिवानी में मुक्केबाजी की प्रैक्ट्सि कर रहे मधुबीन बिहार के मुक्केबाज कृष्णा, हिसार से मुक्केबाज अक्षत बेनिवाल, गुरूग्राम की मुक्केबाज रेणुका ने बताया कि उन्होंने गूगल से जब सर्च किया तो मुक्केबाजी का गढ़ भिवानी दिखाया गया था। इसीलिए उन्होंने हरियाणा के भिवानी की तरफ अपना रूख किया तथा यहां स्थायी तौर पर हॉस्टल में रहकर अपनी प्रैक्ट्सि शुरू की। उन्हें उम्मीद है कि उनका भविष्य उनकी मेहनत व परिश्रम तथा बेहतर प्रशिक्षण के बल पर उन्हें अंतर्राष्ट्रीय पदक तक पहुंचाएगा।
रोजाना करते हैं 4 से 6 घंटे प्रैक्ट्सि
भिवानी में प्रैक्ट्सि कर रहे मुक्केबाजों का कहना है कि वे प्रतिदिन 4 से 6 घंटे कड़ी प्रैक्ट्सि करते है। दिन में अपने स्कूल-कॉॅलेज की पढ़ाई करते है तथा शाम को फिर एक लंबा सत्र प्रैक्ट्सि का रहता है। बेहतर डाईट व प्रशिक्षण के बल पर उन्हे साथी मुक्केबाजों से अच्छी प्रतिस्पर्धा मिल रही है जो उन्हे अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाज बनाने में सहायक होगी। भिवानी के सीनियर मुक्केबाजों की अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धियों को देखकर उन्हें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
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