सरसा (सकब)। पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने शाह सतनाम जी धाम में आयोजित सोमवार को सायंकालीन रूहानी मजलिस के दौरान फरमाया कि इन्सान मालिक का जितना शुक्राना करे, कम है। हकीकत यह है कि जब-जब इन्सान, भगवान का शुक्राना करता है, वो शुक्राना लेता नहीं, बल्कि बदले में दया-मेहर, रहमत से झोलियां भर दिया करता है। लेकिन वो देखता जरूर है कि कौन-सी आत्मा उसके लिए तड़पती, व्याकुल है, शुक्राना कर रही है! उसी पर ही मालिक की रहमत होती है। इसलिए परमपिता परमात्मा का शुक्राना करना चाहिए।
आप जी ने फरमाया कि इन्सान को नमक हलाली बनना चाहिए, नमक हरामी नहीं। हमने देखा है शुक्राना बहुत कम लोग करते हैं मालिक का, ज्यादातर लोग उस मालिक में कमियां निकालते रहते हैं। यह इन्सान की अपनी खुद के कर्मों की मार होती है, जो उसे झेलनी पड़ती है। मालिक कभी गलत नहीं करता। वो जो भी करता है, वो सही होता है।
पुराने समय की एक सच्ची बात है। एक राजा का वजीर था। वो हर बात पर शुक्राना करता था। कोई भी बात होती, तो वह यही कहता कि मालिक जो करता है, सही करता है। एक दिन राजा शिकार खेलने गया। उसने इतनी जोर से तलवार या तीर चलाया कि उसकी उंगली कट गई। वजीर साथ में था, उसके पट्टी बांध रहा था। अचानक अपनी आदत के अनुसार वह बोला कि मालिक जो करता है, सही करता है। राजा को बहुत गुस्सा आया और उसने वजीर को जेल भिजवा दिया कि यहां मेरी उंगली कट गई और तू कहता है कि मालिक जो करता है, सही करता है। उसको जेल में डाला, तो भी वह यही कहता रहा कि मालिक जो करता है, सही करता है। काफी दिन गुजर गए। बादशाह फिर शिकार पर गया। उसे शिकार मिला नहीं और हवा का एक चक्रवात आया, जिसमें राजा रास्ता भूल गया, साथी सब बिछुड़ गए। जब चक्रवात रूका, तो बादशाह ने अपने-आपको आदिवासियों के इलाके में पाया। उन्होंने राजा को पकड़ लिया। वहां बलि चढ़ाई जाती थी। जो भी बाहर का आदमी मिलता था, उसकी बलि चढ़ा देते थे। राजा के हाथ-पांव बांध लिए और बलिवेदी पर गर्दन रख दी। उनके मुखिया ने सिर से लेकर पांव तक उसे चैक किया, जब हाथ देखे, तो राजा को छोड़ दिया कि इसकी तो उंगली कटी हुई है। बलि देने का मतलब होता था, जिसका सम्पूर्ण शरीर हो। तो राजा हैरान रह गया। तलवार गले तक आते-आते बच गई। राजा समझ गया कि वाकई, उंगली कटी तो मैं बच गया। वह बड़ी स्पीड से घोड़ा दौड़ाता हुआ आया, वजीर को जेल से बाहर किया, उससे क्षमा मांगी। कहने लगा कि मैं मान गया आपकी बात। मेरे साथ तो अच्छा हुआ, लेकिन आपके साथ क्या अच्छा हुआ? वजीर ने कहा कि राजन, अगर आप मुझे जेल में न डालते, तो मैं आपके साथ होता। आपकी तो उंगली कटी थी, लेकिन मेरी तो सही थी। उन्होंने आपको छोड़कर मुझे बलि पर चढ़ा देना था। इसलिए मालिक जो करता है, अच्छा करता है।
आप जी ने फरमाया कि इन्सान हमेशा डिमांड करता है और कहता है कि मेरी मांग जायज है। लेकिन आपको क्या पता कि आपकी जायज सही है। जैसे कोई कहता है कि मैंने दसवां द्वार खुलवाना है। लेकिन भाई, आपने भक्ति करी नहीं, और कहते हो कि दसवां द्वार खुलवाना है। अगर ऐसा हो गया, तो पागल हो जाएंगे, भागते फिरोगे, लोग कहेंगे कि गुरू जी ने पागल बना दिया। इसलिए अपने-आपको दसवां द्वार के काबिल तो बनाओ सुमिरन करके। इसलिए जायज-नाजायज के बारे में मालिक जानता है, आप अंतर्यामी मत बना करो।
आप जी ने फरमाया कि मालिक हमेशा सही करता है। आज की कलियुगी मां का तो पता नहीं, पहले ये होता था कि मां कभी अपने बच्चे को विष (जहर) नहीं देती थी। तो जब भगवान की बनाई हुई मां अपने बच्चे को जहर नहीं देती, तो भगवान कैसे दे देगा? भगवान आपका गलत कैसे कर देगा? आप तो उसकी औलाद हैं। तो आप सुमिरन क्यों नहीं करते? सुमिरन-सेवा आप नहीं करते, सत्संग आप नहीं सुनते, वचनों पे अमल नहीं करते, तो मार तो पड़ेगी। आप ऐसा क्यों करते हो। एक बार माफी, दो बार माफी, तीन बार माफी लेकर बड़े जेंटलमैन तरीके से आप निकल जाते हो। वो ख़सम सब हिसाब रखता है, फकीर तो सब हां जी, हां जी करके छोड़ देते हैं।
आप जी ने फरमाया कि भगवान के साथ मजाक मत किया करो। वो सबकी जानता है, सबकी मानता है, लेकिन जो मालिक की मानते हैं, वो मालिक उन लोगों की जल्दी मानता है, ये सच है। कई लोग कहते हैं कि मैं गुरु को मानता हूं, लेकिन हम आपसे नहीं पूछते कि गुरु को कितना मानते हो, लेकिन गुरु की कितनी मानते हो ये बताओ? गुरु ये तो कहता नहीं कि आजा बेटा, पांव दबा! बाजू दबा! सिर दबा! नहीं, ऐसा नहीं कहता। फिल्म में तो अलग चीज है, वो तो एक नाटक होता है। बाकी वैसे सवाल ही पैदा नहीं होता कि संत, पीर-फकीर किसी से ऐसा करवाते हों। वो तो अपना काम भी स्वयं करते हैं, हम तो यही कहते हैं कि हर किसी को अपना काम स्वयं करना चाहिए।
आप जी ने फरमाया कि इन्सान जब अपना काम खुद नहीं करता और दूसरों का गुलाम बन जाता है, दूसरों से उम्मीद लगा लेता है, तो गड़बड़ हो जाती है। उम्मीद तो एक से ही रखी जा सकती है, और वो है सतगुरु, मौला। हम यह नहीं कहते कि बाकियों से उम्मीदें नहीं रखनी चाहिए! रखो, हम रोकते नहीं, लेकिन जायज रखो, नाजायज नहीं। इन्सान को ज्यादा इच्छाएं नहीं रखनी चाहिए। ज्यादा इच्छाओं का मक्कड़जाल इन्सान को कहीं का नहीं छोड़ता।
…तो इन्सान अपने कर्म नहीं देखता और दोष मालिक को देता है। इन्सान जितना मालिक को दोष देता है, उतना ही उससे दूर, दूर और बहुत दूर होता चला जाता है। वो न्याय करना जानता है, किसी की लिहाज नहीं करता। जो उसके सही रास्ते पर चलता है, वो मालिक उसकी इतनी लिहाज करता है कि आने वाली कुलों का भी सोच लेता है। लेकिन कोई मालिक का मजाक उड़ाए, तो वो मालिक तो न्याय करता है।
इस कलियुग में छल, कपट बहुत कुछ चल रहा है। हम इस युग की बात नहीं करते, लेकिन उस भगवान, एक भगवान की बात कर रहे हैं कि वो सबकी सुनता है। …तो उसको सुनाया करो, उसके गुणगान गाया करो और जितना हो सके, ज्यादा से ज्यादा लोगों की बुराइयां, नशे, गलत काम छुड़वाया करो, ताकि आपको भी खुशियां मिलें आपका परिवार भी खुशियों से लबरेज रहे।