चरण दास गांव कबरवाला, जिला फिरोजपुर निवासी ने बताया कि सन् 1958 में डेरा सच्चा सौदा धाम, मलोट पंजाब में बन रहा था। जब शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज मलोट आश्रम में आए तो मैं अपने साईकिल पर सेवा करने के लिए मलोट दरबार में जा रहा था। जब मैं मलोट के रेलवे फाटक पर पहुंचा तो फाटक बंद था क्योंकि रेलगाड़ी आ रही थी। मैंने अपना साईकिल फाटक के पीछे खड़ा कर दिया और पैदल ही रेलवे लाईन पार करके डेरे पहुंच गया और सेवा करनी शुरू कर दी। मुझे दरबार में सेवा करते-करते चार दिन बीत गए परन्तु मुझे इस बात का बिल्कुल भी ध्यान न रहा कि मैं अपना साईकिल फाटक पर खड़ा करके आया हूँ। चौथे दिन शहनशाह जी ने मुझे बुलाया और वचन फरमाया, ‘‘अपने साईकिल का ध्यान करो, हम तुम्हारे नौकर तो नहीं लगे।’’ शहनशाह जी के डाँटने पर मुझे होश आई कि ओह! मेरा साईकिल तो फाटक पर ही खड़ा है। मैंने सोचा कि उसे कोई उठाकर ही न ले गया हो। मैं अपनी गलती का पश्चात्ताप भी कर रहा था और शहनशाह जी से क्षमा भी माँग रहा था। फिर मैं तुरन्त फाटक पर पहुँचा। जहाँ पर मैंने साईकिल खड़ा किया था उसे उसी जगह खड़ा देखकर मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही। मैं मन ही मन पश्चात्ताप कर रहा था कि मेरी गलती के कारण शहनशाह जी को मेरे साईकिल की निगरानी करनी पड़ी।
एक बार सेवा करते समय मेरे मन में विचार आया कि पूजनीय शहनशाह जी कई बार सेवादारों को अपने पावन कर-कमलों द्वारा प्रसाद देते रहते हैं लेकिन क्या कभी मुझे भी शहनशाह जी अपने पावन कर-कमलों द्वारा प्रसाद देंगे? सतगुरु तो अर्न्तयामी होते हैं। उसी दिन शहनशाह जी ने हुक्म फरमाया, ‘जाओ! अपने घर का काम करो। फिर आ जाना।’ फिर अन्तयार्मी दातार जी ने मुझे पास बुलाकर आम का प्रसाद दिया। वह प्रसाद खाकर मैं अपनी मस्ती में साईकिल पर सवार होकर अपने गाँव की ओर चल पड़ा। रेलगाड़ी का फाटक पार करता हुआ मैं अभी करीब एक किलोमीटर ही गया था कि पीछे से मिल्ट्री वाली गाड़ी आई और साईकिल में टक्कर मारकर आगे निकल गई। मुझे पता नहीं कि मेरे सतगुरु ने कैसे मुझे उठाकर सड़क के एक किनारे रख दिया और शहनशाह शाह मस्ताना जी महाराज की दया मेहर से मुझे कोई भी चोट नहीं लगी। गाड़ी ने मेरे साइकिल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इतने में मिल्ट्री वाले गाड़ी रोककर मेरे पास आए और कहने लगे कि तू कैसे बच गया !
गाड़ी की टक्कर इतनी भयंकर थी कि तू बच ही नहीं सकता था। फिर पूछने लगे कि तू कहां से आ रहा है? मैंने उनको बताया कि यहां डेरा सच्चा सौदा मलोट में बेपरवाह शाह मस्ताना जी महाराज का सत्संग था। मैं सत्संग सुनकर आ रहा हूँ। यह बात सुनकर वे बोले- तेरे सतगुरु ने ही तुझे बचाया है। नहीं तो तेरे बचने की कोई उम्मीद ही नहीं थी क्योंकि गाड़ी साईकिल के बिल्कुल ऊपर से निकल गई थी। वे कहने लगे कि ऐसे सतगुरु के हमें भी दर्शन करवाओ और मुझे अपनी गाड़ी में बैठने के लिए कहा। मैं डर गया कि ये मुझे कहीं और ही न ले जाएँ। उनके बार-बार कहने पर मैं उनकी गाड़ी में बैठ गया तथा दरबार की ओर चल पड़े। इधर अर्न्तयामी सतगुरु जी साध-संगत को कह रहे थे कि अभी थोड़ी देर बाहर रूकेंगे, फोर्स आ रही है। इतने में हम दरबार में पहुँच गए। मिल्ट्री वाले दौड़कर शहनशाह मस्ताना जी के पास चले गए और हाथ जोड़कर क्षमा मांगी कि बाबा जी! हमारी गाड़ी के नीचे आपके शिष्य ने मर जाना था। आप जी की रहमत ने ही उसे बचाया है। फिर अर्न्तयामी दातार जी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए फरमाया, ‘क्यों भाई ! साईकिल पर चलते-चलते ही सो जाते हो। साईकिल के ऊपर न सोया करो। आगे से ऐसा नहीं करना।’ शहनशाह जी ने उन मिल्ट्री वालों को प्रसाद दिया और वे आज्ञा लेकर चले गए।
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