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भारत में करीब 4 करोड़ लोग हेपेटाइटिस-बी वायरस का है शिकार
सच कहूँ डेस्क। नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉ. बरुच ब्लमबर्ग का जन्म आज ही के दिन हुआ था। उन्होंने ही हेपेटाइटिस-बी वायरस की खोज की थी और उसका टीका विकसित किया था। उन्हीं की याद में हर साल 28 जुलाई को वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे मनाया जाता है। हेपेटाइटिस एक ऐसी खतरनाक बीमारी है, जो लीवर को प्रभावित करती है। इस बीमारी की वजह से लिवर में सूजन आ जाती है, जिस वजह से लिवर ठीक तरह से काम नहीं कर पाता है।
लीवर भोजन पचाने के साथ-साथ खून में से टॉक्सिन्स को साफ करने का भी काम करता है। ये काम बखूबी नहीं होने पर लिवर कैंसर होने का भी खतरा होता है। डब्लयूएचओ के मुताबिक दुनियाभर के करीब 35 करोड़ लोग इस बीमारी से संक्रमित हैं। भारत में भी करीब 4 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी वायरस का शिकार हैं। इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 2010 से ही हर साल 28 जुलाई को वर्ल्ड हेपेटाइटिस डे मनाया जाता है।
कितने प्रकार हैं?
हेपेटाइटिस ‘ए’-डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर साल 1.4 मिलयन लोग इस बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं। ये दूषित भोजन और दूषित पानी के सेवन करन से होता है।
हेपेटाइटिस ‘बी’- इन्फेक्टेड ब्लड के ट्रांसफ्यूशन कारण होता है।
हेपेटाइटिस ‘सी’- यह ब्लड और इन्फेक्टेड इन्जेक्शन के इस्तेमाल से होता है।
हेपेटाइटिस ‘डी’- जो लोग पहले से एचबीवी वायरस के इन्फेक्टेड होते हैं, वे ही इस वायरस से संक्रमित होते हैं। एचडीवी और एचबीवी दोनों के एक साथ होने के कारण स्थिति और भी बदतर हो जाती है।
हेपेटाइटिस ई- यह विषाक्त पानी और खाने के कारण ज्यादा होता है।
गम्भीरता के आधार पर पहचान:
एक्यूट हेपेटाइटिस : अचानक लीवर में सूजन होती है, जिसका लक्षण छह महीने तक रहता है और रोगी धीरे-धीरे ठीक होने लगता है। एचएवी इन्फेक्शन के कारण आम तौर पर एक्यूट हेपैटाइटिस होता है।
क्रॉनिक हेपेटाइटिस: क्रॉनिक एचसीवी इन्फेक्शन से 13-150 मिलियन लोग दुनिया भर में प्रभावित होते हैं। लीवर कैंसर और लीवर के बीमारी के कारण ज्यादा लोग मरते हैं। एचइवी इन्फेक्शन क्रॉनिक रोगी का इम्यून सिस्टम भी बुरी तरह से प्रभावित होता है।
कारण
लीवर में सूजन होने के कारण हेपेटाइटिस रोग होता है। इस वायरल इन्फेक्शन के कारण जान को खतरा भी हो सकता है। मतलब हेपेटाइटिस एक जानलेवा इंफेक्शन है। इसके कई कारण हो सकते हैं:
वायरल इन्फेक्शन: खासकर, हेपेटाइटिस ए, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी वायरल इंफेक्शन के कारण होता है।
ऑटोइम्यून स्थितियां: अक्सर, शरीर के इम्यून सेल से यह पता चलता है कि लीवर की सेल्स को डैमेज पहुंच रहा है।
शराब का सेवन: अल्कोहल हमारे लीवर द्वारा डायरेक्टली मेटाबोलाइज्ड होता है, जिसके कारण यह शरीर के दूसरे भागों में भी इसका सकुर्लेशन होने लगता है। इसलिए, जब कोई बहुत शराब या अल्कोहल का सेवन करता है, तो उस व्यक्ति के लिए हेपेटाइटिस का खतरा बढ़ जाता है।
दवाइयों का साइड-इफेक्ट्स: यह भी एक कारण है हेपेटाइटिस का। कुछ विशेष दवाइयों के ज्यादा सेवन से लीवर सेल्स में सूजन होने लगती है और हेपेटाइटिस का रिस्क बढ़ जाता है।
लक्षण
अक्यूट हेपेटाइटिस की शुरूआत में बहुत स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई पड़ते हैं। लेकिन, इंफेक्शियस और क्रोनिक हेपेटाइटिस में ये समस्याएं काफी स्पष्ट तरीके से लक्षण के तौर पर दिखाई पड़ती हैं:
- जॉन्डिस या पीलिया
- यूरीन का रंग बदलना
- बहुत अधिक थकान
- उल्टी या जी मिचलाना
- पेट दर्द और सूजन
- खुजली
- भूख ना लगना या कम लगना
- अचानक से वजन कम हो जाना
निदान
लक्षणों को ध्यान में रखते हुए और स्थिति की गम्भीरता के आधार पर डॉक्टर्स हेपेटाइटिस का निदान करते हैं। लीवर में सूजन, त्वचा की रंगत पीली होना, पेट में में फ्लूइड होना आदि को देखकर फिजीकल एक्जामिनेशन करने को कहते हैं। इसके लिए इन टेस्ट को करने की सलाह दी जाती है-
- पेट का अल्ट्रासाउन्ड
- लीवर फंक्शन टेस्ट
- ऑटोइम्यून ब्लड मार्कर टेस्ट
- लिवर बायोपसी
डायट कैसी होनी चाहिए?
हेल्दी डायट की मदद से हेपेटाइटिस की समस्या से निदान आसान हो जाता है। हालांकि, स्थिति की गम्भीरता और लीवर की सूजन के आधार पर डायट निर्धारित की जाती है। साथ ही डायट से जुड़ी इन बातों का ध्यान रखने से भी मदद होती है।
- अपनी डायट में फूलगोभी, ब्रोकोली, बीन्स, सेब, एवाकाडो का समावेश करें।
- प्याज और लहसुन जैसे पारम्परिक मसालों को अपने भोजन में शामिल करें।
- खूब पानी पीएं, ताजे फलों का जूस पीएं।
- अल्कोहल का सेवन न करें, गेंहू का सेवन कम करें।
- जंक फूड, मैदे से बने फूड्स, प्रोसेस्ड फूड और मीठी चीजों के सेवन से बचें।
- भोजन को चबा-चबाकर खाएं। इससे, भोजन पचने में आसानी होगी।
- एक साथ भारी भोजन करने की बजाय कम मात्रा में 4-6 बार भोजन करें।
हेपेटाइटिस से बचाव क्या हैं?
हेपेटाइटिस ‘बी’ और ‘सी’ की रोकथाम वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के प्रयाल करने से हो सकता है। इसके अलावा बच्चों को हेपेटाइटिस से सुरक्षित रखने के लिए लिए वैक्सीन्स दी जा सकती हैं। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन के अनुसार 18 साल के उम्र तक और उससे वयस्क लोगों को 6-12 महीने में 3 डोज दी जानी चाहिए। इस तरह उन्हें, हेपेटाइटिस से पूर्ण सुरक्षा मिलेगी। साथ ही इन बातों का ख्याल रखें-
- अपना रेजर, टूथब्रश और सूई को किसी से शेयर न करें, इससे इन्फेक्शन का खतरा कुछ हद तक कम किया जा सकता है।
- टैटू करवाते समय सुरक्षित उपकरणों का इस्तेमाल सुनिश्चित करें।
- कान में छेद करते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि उपकरण सुरक्षित और इंफेक्शन-फ्री हैं।
उपचार क्या है?
अक्यूट हेपेटाइटिस कुछ हफ्ते में कम होने लगते हैं और मरीज को आराम मिलने लगता है। जबकि, क्रोनिक हेपेटाइटिस के लिए दवाई लेने की जरूरत होती है। लीवर खराब हो जाने पर लीवर ट्रांसप्लैनटेशन भी एक विकल्प है।
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