मुंबई (एजेंसी)। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गर्वनर डॉ शक्तिकांत दास ने कहा है कि इस समय भू-राजनैतिक अस्थिरता और गंभीर वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है। दास ने शुक्रवार को कहा कि आरबीआई के वित्तीय स्थिरता की रक्षा करते हुए ऐसा अनुकूल नियामकीय वातावरण तैयार करने को प्रतिबद्ध है जिसमें स्वस्थ तरीके से नये परिवर्तनकारी नवप्रवर्तनों को समाहित किया जा सके। आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘इतिहास दर्शाता है कि जब प्रौद्योगिकी, बाजार के प्रतिभागी और नियामकीय संस्थाएं मिलकर काम करते हैं तो उससे क्रांतिकारी नवप्रवर्तन होते हैं और आर्थिक वृद्धि तेज होती है।
मुझे उम्मीद है कि हमारे बैंक आने वाले दिनों में इसको सही सिद्ध करेंगे। दास मुंबई में बैंक आॅफ बड़ौदा वार्षिक बैंकिंग सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में बैंकिंग, व्यवसाय और अधिक सहयोग मूलक होने के साथ-साथ पहले से अधिक प्रतिस्पर्धी होगा, जिसमें नयी प्रवेश करने वाली इकाइयां नए-नए नवप्रवर्तनकारी उत्पाद लेकर आएंगी। वर्तमान बैंकों को इस सतत परिवर्तनशील वातावरण के लिए तैयार रहना होगा और साथ ही उन्हें कारोबार के उपयुक्त मॉडल स्वस्थ विकास, स्थिरता और ग्राहकों के संतोष पर ध्यान केंद्रित रखना होगा।
माल और श्रम बाजार में मांग एवं पूर्ति में अंतर बढ़ा
दास ने कहा,”इससे भी महत्वपूर्ण कंपनी के संचालन की अच्छी नीति है। अच्छा संचालन सफलता का मूल आधार होता है और इससे समझौता नहीं किया जाना चाहिए।” आरबीआई गवर्नर ने बैंकों को आॅनलाइन धोखाधड़ी से बचाव के उपयुक्त प्रबंध बनाए रखने का सुझाव देते हुए कहा, ” हितधारकों को डिजिटल धोखाधड़ी, डाटा चोरी और साइबर अपराधों से बचाने के उपयुक्त इंतजाम रखे जाने चाहिए। अंतत: बैंकिंग एक सेवा है और इसमें ग्राहकों के हित की अधिक से अधिक सुरक्षा तथा सुविधा को उपयुक्त प्राथमिकता देना आवश्यक है।” अर्थव्यवस्था के हालात के बारे में उन्होंने कहा, ‘आज हम अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं। यूरोप में चल रही लड़ाई और महामारी ने वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में बहुत अनिश्चितता पैदा कर दी है। देशों में मुद्रास्फीति, जिसमें खाद्य मुद्रास्फीति भी शामिल है अप्रत्याक्षित रूप से बहुत ऊंची चल रही है। आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हैं। माल और श्रम बाजार में मांग एवं पूर्ति में अंतर बढ़ा है।”
भविष्य में मंदी का खतरा बढ़ रहा है
डॉ. दास ने कहा कि आज दुनियाभर में केंद्रीय बैंक जिस तरह तेजी से अपनी मौद्रिक नीतियों में शक्ति ला रहे हैं। उससे निकट भविष्य में मंदी का खतरा बढ़ रहा है। जिंसों की कीमतें जून के मुकाबले कम हुयी हैं लेकिन अब भी वे ऊंचे स्तर पर बनी हुुई हैं। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि अमेरिका में ब्याज दरों के और अधिक ऊंचा होने के साथ-साथ वैश्विक निवेशकों द्वारा जोखिम से दूर हटने के कारण सुरक्षित संपत्तियों में निवेश की मांग बढ़ी है और इसके परिणाम स्वरूप अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है। उन्होंने कहा कि डॉलर के मुकाबले न केवल भारत जैसे उभरते बाजार वाली अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं बल्कि कुछ उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएं भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हुयी हैं।
डॉलर के इस तरह मजबूत होने से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ रहा है और अंतरराष्ट्रीय बाजार से कर्ज लेना महंगा हो रहा है। उन्होंने कहा,”अस्थिर भू-राजनैतिक परिस्थियों के बीच कुल मिलाकर वैश्विक स्थिति गंभीर है और युद्ध तथा महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में विघटन एवं विखंडन पैदा करने वाली शक्तियों को बल प्रदान किया है।” दास ने कहा,”ऐसे चुनौतिपूर्ण वातावरण में भारतीय अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से अधिक अच्छी स्थिति में है और इसे इसकी ठोस व्यापक आर्थिक बुनियादी परिस्थितियों से शक्ति मिल रही है।
देश की वित्तीय प्रणाली का पूंजी आधार अच्छा है, ऋणों की गुणवत्ता के संकेत सुधरे हैं, लेखा-जोखा मजबूत हुआ है और बैंक लाभ में लौट आए हैं।” आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था में ऋण की मांग में अच्छी वृद्धि दिख रही है। अर्थव्यवस्था के पास व्यापार और पोर्टफोलियो निवेश के बहिरप्रवाह के चलते संभावित बाहरी झटकों से सुरक्षा के पर्याप्त संसाधन है। उन्होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक आगे आने वाली चुनौतियों के प्रति सतर्क है और वित्तीय स्थिरता के लिए तत्परता के साथ हर जरूरी कदम उठाने को तैयार है।
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