सर्वोत्तम है गौमाता का दूध, स्वास्थ्य संबंधी फायदों पर डाला प्रकाश
- चूल्हे-चौकों पर गौमूत्र और गोबर मिली मिट्टी के लेप से दूर रहते हैं बैक्टीरियां व वायरस
बरनावा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि गऊ का बहुत बड़ा महत्व है, इसलिए हम इसे गऊ माता कहते हैं। गऊ का दूध सर्वोत्तम है बहुत सारी चीजों में। ये जो भी खाती है उसे बहुत तेजी से दूध में बदल देती है। वहीं इसके बछड़े हल में जुड़ते थे।
आपजी ने फरमाया कि गऊ के ऊपर आप हाथ फेरोगे तो आपको पॉजीटिव एनर्जी जरूर आएगी। किसी पशु पर हाथ फेर लो और गऊ पर हाथ फेर लो उसमें आपको अंतर जरूर महसूस होगा। दूसरी बात गऊ के मल मूत्र में एंटी बैक्टिरिया तत्व होते हैं। आपजी ने फरमाया कि हम राजस्थान के वासी हैं और 1972-73 में हमारे जो चूल्हे-चौके होते थे, उसमें गऊ का गोबर व पेशाब मिट्टी में मथकर वहां पोंछा जरूर लगाया जाता था और बाल्टी में भिगोकर वो रख दिया जाता था। बाद में उससे पोछा सब जगह लगाया जाता था। यही नहीं, किसी के बच्चा होता था तो उस कच्चे मकान में भी गऊ के मल मूत्र को मिट्टी का पोंछा लगता था।
बैक्टीरिया से रहता था बचाव
पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि गौमूत्र और गोबर मिली मिट्टी का पोछा लगाने से बीमारियां नहीं आती। और नीम क्यों बांधते थे? आजकल तो कहते हैं कि बेटा होगा तो नीम बांधेंगे। नहीं, हमारे टाइम में जिस माता के बच्चा होता था, उसके घर नीम के पत्ते बांधे ही जाते थे मोस्टली (ज्यादातर)। उसकी वजह भी यही थी कि वो एंटी बैक्टीरिया है, एंटी वायरस है, तो बीमारियां आती ही नहीं। बच्चे ने खुला सोना है। आगे भी आपको एक बार जिक्र किया था कि पेशाब कर दिया तो पंजाबी च’ कहते हैं ‘पोतड़ा’, कपड़ा सा बांध देते थे, वो गीला हो गया दूसरा बांध देते थे। आज वालों को मौज बनी हुई है, एक लिफाफा सा चढ़ा देते हैं, सारा दिन लगा रहा बेटा, दे तेरे की, ले तेरे की, बाहर बूंद नहीं निकलती। बाहर तो नहीं निकलती, उसका अंदर क्या होता होगा वो तो सोचो, अंदर तो सारा गड़बड़ ही है ना। तो हमारी संस्कृति बड़ी स्वस्थ थी।
नीम भी बहुत गुणकारी
अब आप लोग अपने आप को हाईटैक मानते हैं, हम कहते हैं हम लोग हाईटैक थे उस टाइम में, बहुत सारी चीजों में। आप एंटी बैक्टीरियां, एंटी वायरस के लिए पता नहीं कितना खर्च करते हो और हम सिर्फ गऊ के गोबर और मूत्र से एंटी बैक्टीरिया और एंटी वायरस बना लेते थे। नीम बांध लिया एंटी बैक्टीरिया हो गया। नीम के पत्ते बिछा दिये चारपाई पर, जिस माता के बच्चा होने वाला है या आसपास राख रख दी और नीचे नीम के पत्ते बिछा दिए तो हो गया एंटी बैक्टिरिया और आप कितना खर्च कर रहे हैं और अपने आप को हाईटैक कह रहे हो, कमाल की बात है। कहने का मतलब हमारे पवित्र वेद बहुत ज्यादा हाईटैक थे और हैं, उनमें ये चीजें थी।
गायों के लिए हो नैचुरल गौचर भूमि
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आजकल हम देखते हैं और पहले भी देखा करते थे कि गऊएं रोड पर बड़ी घूमती है। कहीं सांड भिड़ रहे हैं। आपजी ने फरमाया कि गौचर भूमि, एक भूमि होती है, जो हमने बागड़ी में सुना उधर राजस्थान में, यानि गऊ के लिए स्पेशल जगह, रहने के लिए, खाने के लिए दी जाती थी। राजा-महाराजा होते थे या आज भी हो सकता है वैसा ही हो। तो वो स्पेशली जमीन होती तो अगर वो लीज पर मिले, उस पर आप ट्यूबवेल लगाएं, उस पर खुले शैड वगैरहा हों, बड़े-बड़े पेड़ हों और जो गऊएं हैं या सांड हैं वो वहां विचरण करें तो नैचुरली एक वो वातावरण मिले, जो मान लेते हैं कभी सतयुग में होता होगा, कि खुले वातावरण में वो घूम रही हैं, उनके गले में रस्सा नहीं है, वो चर रही हैं, कहीं खा रही हैं। तो ये एक फ़र्ज बनता है कि हमें भी अपनी विरासत संभालनी चाहिए। हमारी संस्कृति संभालनी चाहिए।
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