G-7 देशों के सम्मेलन के सदस्य देशों ने 600 अरब डॉलर का महांबजट बनाने का ऐलान किया है, जिससे विकासशील व कमजोर देशों की हालत में सुधार होगा। भारत को इस सम्मेलन में मेहमान के रूप में आमंत्रित किया गया व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सम्मेल में शिरकत की। भले ही इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि जी-7 देशों की रूस व चीन के खिलाफ रणनीति ही इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य था, लेकिन जी-7 के इन ऐलानों से दोनों देशों को लाभ भी पहुंचेगा।
जी-7 देश भारत को बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश मानते हैं। यह भी स्पष्ट है कि रूस-यूक्रेन युद्ध का कारण जी-7 रूस के खिलाफ लामबद्धी में जुटे हुए हैं व भारत सहित अन्य देशों का समर्थन प्राप्त करने का कोई ना कोई रास्ता तलाश रहे हैं। यहां भारत को पूरी मजबूती से संतुलित पकड़ बनाए रखने की आवश्यकता है। वास्तव में भारत ने अमेरिका व रूस के टकराव के बावजूद दोनों देशों के साथ बराबर रिश्ते कायम रखे हैं व इन संबंधों को बरकरार रखने की रणनीति बरकरार रहने की उम्मीद है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद वर्तमान में भारत रूस से तेल भी खरीद रहा है व रूस अमेरिका सहित जी-7 के साथ भारत के घनिष्ठ रक्षा संबंध भी हैं।
हालांकि अमेरिका ने भारत सहित कई देशों पर रूस से तेल न खरीदने के दबाव बनाने की नाकाम कोशिश की गई। जहां तक जी-7 का आर्थिक दबदबा घटना की रणनीति का संबंध है, यह घटनाक्रम भारत के लिए लाभदायक होगा। जी-7 ने बुनियादी ढांचें के विकास संबंधी प्रोग्राम का ऐलान कर दिया, जिससे भारत को बुनियादी ढांचें विशेष तौर पर ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए ज्यादा लाभ होगा। विश्व स्तर पर घट रही घटनाओं को लेकर भारत को सतर्क रहना होगा। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि यदि अंतर्राष्टÑीय मंचों पर भारत का दबदबा कायम है तो वह गुटनिरपेक्षता के कारण ही है।
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