चण्डीगढ़ (अनिल कक्कड़)। हरियाणा राज्यसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर हो गया है। जैसे कयास लगाए जा रहे थे उससे विपरीत नतीजे आए। कांग्रेस के अजय माकन हार गए हैं। चुनाव में भाजपा के कृष्ण लाल पंवार और निर्दलीय कार्तिकेय शर्मा जीत गए हैं। इससे पहले बीजेपी, जेजेपी और निर्दलीय उम्मीदवार ने चुनाव आयोग से मतगणना की गोपनीयता भंग करने की शिकायत की थीl इसी शिकायत को चुनाव आयोग ने संज्ञान लिया और मामले की जांच की l हालांकि, देर रात मतगणना कराने का निर्णय लिया गया। निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा ने चुनाव आयोग को कांग्रेस विधायक बीबी बत्रा और किरण चौधरी की शिकायत की थी। कार्तिकेय ने दोनों विधायकों के वोटिंग की गोपनीयता भंग करने के साक्ष्य दिए थे l इस संबंध में आयोग को वीडियोग्राफी साक्ष्य भेजे गए थे। सूत्र बताते हैं कि निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय ने कांग्रेस की जोरदार खिलाफत की।
शुक्रवार शाम वोटिंग रुकने के बाद कांग्रेस उम्मीदवार अजय माकन ने ट्वीट किया था कि राज्यसभा चुनाव के नतीजे में हारने के डर से बीजेपी ने वोटों की गिनती को रोकने के लिए घटिया राजनीति का सहारा लिया है l उन्होंने बीजेपी की आपत्तियों को खारिज करने वाले रिटर्निंग ऑफिसर के फैसले के आदेश को भी अटैच किया था l माकन ने पूछा था कि क्या भारत में आज भी लोकतंत्र जिंदा है? हरियाणा के राज्यसभा चुनाव में एक सीट जीतने के लिए 31 वोटों की जरूरत थी l बीजेपी के पास अपने 40 विधायक थे जबकि उसकी सहयोगी पार्टी जननायक जनता पार्टी के पास दस विधायक थे l वहीं, कांग्रेस के 31 विधायक थे l इसके अलावा सात निर्दलीय, हरियाणा लोकहित पार्टी का एक और इनेलो का एक विधायक था l इस लिहाज से बीजेपी की एक सीट कन्फर्म थी l उसके बाद बीजेपी के पास 9 वोट अतिरिक्त बच रहे थे l इसके अलावा 10 जेजेपी के विधायक भी साथ थे l हरियाणा लोकहित पार्टी के विधायक गोपाल कांडा बीजेपी के साथ थे, जबकि सात निर्दलीय विधायक भी बीजपी कैंप में माने जा रहे थे।
बीजेपी और जेजेपी के साथ सरकार को समर्थन करने वाले निर्दलीय विधायक के जोड़ लेते हैं तो कार्तिकेय शर्मा के पक्ष में 27 वोट रहे थे, जिन्हें जीतने के लिए 3 अतिरिक्त वोट चाहिए थे l कांग्रेस के पास जीतने के लिए नंबर तो पूरे थे, लेकिन कुलदीप बिश्नोई नाराज थे l इसके अलावा कांग्रेस विधायक कुलदीप शर्मा के कार्तिकेय शर्मा दामाद बताए जा रहे थे l
राज्यसभा चुनाव के वोटों की गिनती नहीं आसां, जितना समझ आए बस उतना समझ लीजिए ..
राज्यसभा चुनावों के लिए वोटों को Single Transferable Vote सिस्टम से गिना जाता है। 1851 में डेनमार्क में पहली बार इस्तेमाल हुए इस सिस्टम को वोटरों की पसंद जानने के लिए सबसे सटीक माना जाता है। इसमें वोटों की गिनती काफी टेढ़ी होती है। फार्मूला और प्रक्रिया इतनी पेचीदा है कि एक कड़े मुकाबले में नतीजा कब इधर से उधर हो जाए, कह नहीं सकते। खासतौर पर उस वक्त जब कुछ वोट रद्द हो रहे हों।
इस प्रक्रिया में जितनी सीटों पर चुनाव हो रहे हों, मतदाता को मौजूद उम्मीदवारों में से उतनों को ही 1,2,3.. के हिसाब से प्राथमिकता देनी होती है l मतलब पहली पसंद कौन, दूसरी पसंद कौन आदि, सीटों की संख्या तक। 10 उम्मीदवारों में से 4 सीटें भरी जानी हों तो किन्हीं 4 नामों के आगे 1,2,3 या 4 लिखना होगा। गिनती के वक्त पहली पसंद का वोट तो सीधे उसी उम्मीदवार को दे दिया जाता है फुल वैल्यू के साथ, जबकि दूसरी पसंद वाला वोट तब काम आता है जब आपका पहली पसंद वाला उम्मीदवार जीत चुका हो। इससे पहले जीत के लिए जरूरी कोटा तय किया जाता है जिसके फार्मूला को Droop Formula और इससे निकलने वाले जरूरी कोटा को Droop Quota कहा जाता है। इसे पार करने पर ही जीत होती है। पहली पसंद के वोट के आधार पर जो उम्मीदवार कोटा पार कर जाते हैं, उन्हें विजेता घोषित कर दिया जाता है। साथ ही, कोटे से ऊपर के उनके वोटों को दूसरी या तीसरी पसंद के उम्मीदवारों को ट्रांसफर किया जाता है। इसकी एक प्रक्रिया है और यही सबसे महत्वपूर्ण है।
हरियाणा में पिछले चुनाव में एक विधायक के वोट की वैल्यू 100 अंक रखी गई थी जिसके हिसाब से मौजूदा चुनाव में सभी 90 वोट पड़ने पर जरूरी वोटों का कोटा (9000/3) +1 = 3001 होगा। इसके हिसाब से पहले उम्मीदवार को जीत के लिए 31 विधायकों के वोट चाहिए होंगे। दूसरे जीतने वाले उम्मीदवार के वोटों की संख्या 30 ही काफी होगी।
पेचीदा बात तब है अगर कुछ वोट रद्द होते हैं। मान लीजिए कांग्रेस के 2 वोट रद्द होते हैं तो जरूरी कोटा होगा (8800/3)+1 = 2934, और इस सूरत में पहला उम्मीदवार 30 वोटों में जीत जाएगा। लेकिन उसके खाते में 2934 अंक ही भेजकर उसे विजेता घोषित कर दिया जाएगा। उसे मिले वोटों और उसके हिसाब से बने अंकों में से 2934 को घटाकर बाकी अंक (3100-2934 =166) उस उम्मीदवार के खाते में जोड़ दिए जाएंगे जो उनकी दूसरी पसंद रहा होगा। दूसरे उम्मीदवार की हार-जीत उसे मिले पहले नंबर वाले वोट और ये अंक जोड़कर तय होगी।
इस सूरत में कार्तिकेय के पास 2800+166 = 2966 अंक होंगे और वे जीत जाएंगे। उस सूरत में 29 विधायकों के वोट लेने वाले कांग्रेसी अजय माकन, 28 विधायकों के वोट वाले कार्तिकेय से हार जाएंगे। कांग्रेस के 3 या अधिक वोट रद्द होने पर भी जीत 28 वोटों वाले कार्तिकेय की होगी। भाजपा, जजपा या किसी निर्दलीय के वोट रद्द होने पर इसी तरह नई स्थिति की गणना करनी होगी। तब परिणाम उस स्थिति के अनुसार होगा।
इसमें एक और स्तर है गणना का जिसमें जीत चुके उम्मीदवार के फालतू बचे वोटों को दूसरी पसंद जताने वाले मतदाताओं की संख्या से भाग दिया जाता है और फिर उसे Round down कर (दशमलव के बाद का हिस्सा काटकर) एक वोट की वैल्यू निकाली जाती है। इस वैल्यू को दूसरी पसंद के उम्मीदवारों में उनके वोटों (दूसरी पसंद के) के हिसाब से बांट दिया जाता है। इस रूल के हिसाब से दूसरी पसंद वाले वोटों का मूल्य थोड़ा कम हो जाता है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में वह नतीजे पर फर्क नहीं डालेगा।
इसमें तीसरी, चौथी या ज्यादा पसंद होने पर प्रक्रिया और लम्बी व जटिल होती जाती है। इसकी जरूरत उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में पड़ सकती है जहां एक साथ 10-11 सीटों के लिए वोट पड़ते हैं। ऐसे समझ आने के चांस कम ही हैं, अगर आपको समझ नहीं आया तो चिंता ना करें।
Single Transferable Vote का तरीका पेचीदा या गैरजरूरी लग सकता है लेकिन मतदाताओं की राय सबसे अच्छे से जानने का यह वैज्ञानिक और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त तरीका है। इससे मतदाता को एक से ज्यादा पसंद वरीयता क्रम में बताने का अवसर मिलता है और नतीजों में इस बात को महत्व मिलता है।
प्रक्रिया को काफी हद तक आप हरियाणा के 2016 के राज्यसभा चुनाव परिणाम से समझ सकते हैं। हालांकि इसमें इस्तेमाल किए गए फार्मूले में मामूली सी गणितीय चूक है लेकिन उससे परिणाम पर फर्क नहीं पड़ा।
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