अप्रैल, 1981 की बात है। हम कल्याण नगर में अपना मकान बना रहे थे। लगभग 22 दिन तक काम चलने के बाद भी मकान अधूरा था। इस दौरान पैसे भी खत्म हो चुके थे। सारा परिवार दुविधा में था कि अब मकान कैसे बनेगा? मैंने मिस्त्रियों को काम पर आने के लिए मना कर दिया। मकान अधूरा रहते देख हम सभी परेशान हो गए। हम रोते-रोते पूजनीय परम पिता जी के पावन स्वरूप के आगे अर्ज करने लगे कि पिता जी, अब आप ही कुछ करो जी। हम में हिम्मत नहीं है। अगले दिन सुबह चार बजे एक सत् ब्रह्मचारी सेवादार हमारे पास आया और उसने बताया कि पूजनीय परम पिता जी 6 बजे तुम्हारे घर आएंगे।
उन्होंने यह भी बताया कि पूजनीय परम पिता जी का हुक्म है कि आपका घर वे स्वयं बनवाएंगे। यह सुनकर हमारे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी के दिलों की जानने वाले प्यारे सतगुरू जी ने हमारी अरदास स्वीकार कर ली। इतने में आश्रम से 9 मिस्त्री व 60-70 सेवादार हमारे घर पर पहुंच गए। लगभग सवा 6 बजे पूजनीय परम पिताजी भी आ गए। पूजनीय परम पिताजी के दिशा-निर्देशन में सभी सेवादार मकान बनाने में जुट गए। पूजनीय परम पिता जी ने फरमाया, ‘‘बेटा, सारा परिवार पेड़ के नीचे छाया में बैठ जाओ, तुमने कोई काम नहीं करना, तुम्हारा घर हम बनवाएंगे।’’ सारा दिन सेवा कार्य चलता रहा। पूजनीय परम पिता जी दोपहर को आश्रम में चले गए तथा शाम को लगभग 4 बजे फिर कल्याण नगर में आ गए। दो दिन में ही सारा मकान बना दिया और फरमाया, ‘‘कल से अपना सामान अंदर रख लेना और हम 2-3 दिन बाद आकर घर का मुहुर्त कर देंगे।’’ इस प्रकार पूजनीय परम पिता जी ने अनूठी रहमत का उदाहरण प्रस्तुत किया।
श्री पुरूषोत्तम धवन, कल्याण नगर, सरसा (हरियाणा)
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