वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने के वाराणसी कोर्ट के आदेश के खिलाफ मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्देश जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परिसर में जिस जगह शिवलिंग मिला है, उस जगह को सुरक्षित रखा जाए। शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि लोगों को नमाज अदा करने से रोका न जाए। निर्णय जो भी आए, उसका संयम और सद्भावना से इंतजार करने की आवश्यकता है। इन परिस्थितियों में विशेष तौर पर भड़काऊ बयानबाजी करने से बचा जाना चाहिए। यह बात भारतीय समाज और मीडिया का दुखांत है कि कोई भी निर्णय आने से दो-चार दिन पूर्व ही फैसला से जुड़ी खबरें पेश करने लगते हैं।
इलेक्ट्रॉनिकस मीडिया में खबर को चिल्ला-चिल्लाकर खबरों को यूं पेश किया जाता है जैसे युद्ध छिड़ गया हो। देश के संविधान में न्याय प्रक्रिया की व्यवस्था है। एक न्यायालय के बाद ऊपरी न्यायालय में मामलों पर विचार किया जाता है, लेकिन मीडिया कर्मी किसी मामले की सुनवाई के शुरूआती दौर को बिना किसी तथ्य के भड़काऊ अंदाज में पेश करते हैं, जिससे कई बार निर्दोष लोगों की इज्जत को ठेस पहुंचती है। दूसरी तरफ टीवी चैनलों पर तीखी बहस छेड़ दी जाती है, जो कई बार तूं-तड़ाक और लड़ाई तक पहुंच जाती है। बहस में भाग लेने वाले वक्ताओं में एक-दूसरे के प्रति सहजता और कोई सम्मान नहीं देखा जाता। आजकल लोग भी चिल्लाने वाली बहसों से ऊब चुके हैं। मीडिया में खबरों का बढ़ता व्यापारीकरण सोशल मीडिया, विशेष तौर पर यूट्यूब के बढ़ने का बड़ा कारण है।
लोगों में सोशल मीडिया के प्रति रूझान तो बढ़ रहा है लेकिन उतनी ही विश्वसनीयता भी घट रही है। यूट्यूब पर बहस की बजाय खबरों में सरलता, सादगी और तथ्यों पर आधारित होने के कारण यूजर बढ़ रहे हैं। एकतरफा खबरों का रुझान मीडिया और देश के लिए घातक है साथ ही भड़काऊ बयानबाजी करने वाले राजनीतिक और धार्मिक नेताओं को संयम और धैर्य से काम लेना चाहिए। विचारों की प्रबलता के लिए तर्क और तथ्य आवश्यक हैं। न्याय देने का काम अदालतों पर छोड़ देना चाहिए, उन्हें ऐसे मामलों में घटिया राजनीति से बचा जाना चाहिए। बेहतर हो यदि सभी पक्ष धार्मिक मुद्दों को राजनीतिक सीढ़ी बनाने की बजाए विकास के मुद्दों पर काम करें। इस वक्त महंगाई और बेरोजगारी जैसी समस्या पर गंभीरता से आवाज उठाने की जरूरत है। सुरक्षा और भाईचारा कायम रखना ही देश की बड़ी ताकत है।
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