नई दिल्ली (एजेंसी)। वित्त वर्ष 2021-22 में देश में बैंक ऋण में 10,458 अरब रुपये की वृद्धि दर्ज की गयी जो इससे पिछले वर्ष के दौरान 5,767 अरब रुपये की वृद्धि का 1.8 गुना है। यह जानकारी भारतीय स्टेट बैंक(एसबीआई) के मुख्य अर्थशास्त्री सौम्यकांति घोष द्वारा तैयार एसबीआई रिसर्च की इकोरैप रिपोर्ट में दी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि एमएसएमई और बुनियादी ढांचा क्षेत्र को बैंक ऋण में 2,300 अरब रुपये का जोरदार इजाफा हुआ जबकि आवास एवं गैरबैंकिंग वित्तीय कंपनी क्षेत्र एनबीएफसी को बैंक ऋण में वर्ष के दौरान 2,000 अरब रुपये की वृद्धि हुई। घोष ने रिपोर्ट में बताया कि खुदरा ऋण में इस दौरान 3,700 अरब रुपये की जबरदस्त वृद्धि हुयी। इसमें एक बड़ा योगदान आवास ऋण कारोबार में तेजी का रहा। कृषि क्षेत्र के लिए ऋण में 1,325 अरब की वृद्धि हुयी।
उन्होंने लिखा,” ऐसा लगता है कि अर्थव्यवस्था में कोविड-19 महामारी के प्रभावों को झटक कर दूर कर दिया है। बैंक ऋण में सभी क्षेत्रों में विस्तार दिखा है।” रिपोर्ट में कहा गया,” हमें बैंक ऋण में एक रोचक रुझान दिखा है जो वित्त वर्ष 2022-23 में अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है। अब यह दिख रहा है कि सरकारी क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिए जाने वाले ऋण के विस्तार से निजी क्षेत्र के बैंकों के ऋण कारोबार में भी तेजी आयी है।” रिपोर्ट में कहा गया है कि एकबार इसके स्वयं गति पकड़ने से अर्थव्यवस्था को लाभ होगा। यदि यह देखें की 2021-22 में संपूर्ण ऋण वृद्धि में सरकारी क्षेत्र के बैंकों का 43 प्रतिशत रहा जो वित्त वर्ष 2018-19 में केवल 27 प्रतिशत था।
इसी के साथ ऋण विस्तार में निजी क्षेत्र के बैंकों का हिस्सा इसी दौरान 65 प्रतिशत से घटकर 47 प्रतिशत रहा। घोष ने रिपोर्ट में लिखा है,” कोविड के पहले वित्त वर्ष 2018-19 में बैंक ऋण में वृद्धि का वर्तमान मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि के 63 प्रतिशत के बराबर था। यह अनुपात 2021-22 में गिरकर 27 प्रतिशत रहा। वित्त वर्ष 2019-20 में समाप्त सात वर्ष की अवधि में यह अनुपात 50 प्रतिशत था।”उन्होंने कहा कि ऋण जीडीपी अनुपात में ऊंचा रहने का अर्थ है की वास्तविक अर्थव्यवस्था में बैंकिंग क्षेत्र आक्रमक और सक्रीय ढंग से भागीदारी ले रहा है और यह अनुपात कम होने पर वास्तविक अर्थव्यवस्था के लिए बैंकिंग क्षेत्र से ऋण सहायता के विस्तार की आवश्यकता अनुभव की जाती है।
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