पंजाब में स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दे पर जमकर राजनीति हो रही है। दिल्ली और पंजाब की ‘आप’ सरकार के बीच हुए शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र से संबंधित 18 समझौतों को विपक्ष ने पंजाब के साथ धोखा और पंजाब सरकार पर दिल्ली का नियंत्रण करार दिया। यदि देखा जाए तो विपक्ष आम आदमी पार्टी के स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी चुनावी वायदों को पूरा होते देख तिलमिला रहा है, इसीलिए उनका विरोध असफल होता दिख रहा है। यही नहीं विपक्ष वायदों को पूरा करने के तौर-तरीकों पर भी सवाल उठा रहा है। आम आदमी पार्टी ने विधान सभा चुनावों से पूर्व दिल्ली मॉडल को पंजाब में लागू करने का वायदा किया था, विशेष तौर पर दिल्ली के मौहल्ला क्लीनिक की तर्ज पर पंजाब में 16000 डिस्पैंसरियां खोलने का वायदा किया था। विरोध करने का मुद्दा तो यह होना चाहिए था कि सरकार ने 117 हलकों में एक-एक मौहल्ला क्लीनिक खोलने का फैसला किया है, सरकार से यह पूछा जाना चाहिए कि इन 117 क्लीनिकों और स्कूलों को बनाने के लिए कितना समय लगेगा और पूरे 16000 क्लीनिक बनाने के लिए सरकार के पास क्या रोडमैप है।
सभी क्लीनिकों के निर्माण के लिए सरकार कितना समय लगाएगी? विपक्ष के इस विरोध का कोई आधार नहीं कि पंजाब सरकार ने स्कूल और क्लीनिक बनाने के लिए दिल्ली सरकार के साथ समझौता क्यों किया, केंद्र सरकार या किसी मुल्क से क्यों नहीं? जनता के साथ किए वायदे तय समय में पूरे करने की रूपरेखा ही एक मुद्दा होता है। नि:संदेह पंजाब का शिक्षा बुरी तरह से खस्ताहाल है। यहां बात केवल स्कूली इमारतों और अन्य साजो-सामान की नहीं बल्कि अध्यापकों की मांगों की भी है। विगत 15-20 वर्षों से अध्यापक अपनी मांगों को लेकर धरने दे रहे हैं। अध्यापकों को स्कूलों में पढ़ाने की बजाए चंडीगढ़ या शिक्षा मंत्रियों के शहरों की सड़कों को अपनी कर्मभूमि बनाना पड़ रहा है। विपक्ष को यह भी पता होना चाहिए कि कोई भी समझौता बेहतरी के लिए किया जाता है।
केरल देश भर में शिक्षा के लिए जाना जाता है। यदि कोई राज्य सरकार एक रूपरेखा तैयार कर अध्यापकों को अच्छा माहौल और शिक्षा की व्यवस्था करती है तब इसे अपनाने में कोई बुराई नहीं माना जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसका बच्चा अच्छी शिक्षा ग्रहण करे। पंजाब की जनता को इस समझौते से बड़ी उम्मीदें दिख रही हैं, जो उज्जवल भविष्य बनाने में अहम भूमिका निभा सकता है। बात यदि विपक्ष के विरोध की करें तो विरोध का आधार तर्कसंगत होना चाहिए। विरोधी दल यह मुद्दा भी उठा सकते हैं कि क्या 117 स्कूलों की स्थापना से ही पंजाब का काम चल जाएगा और विरोधियों को मौजूदा ढांचे को सुधारने या बदलने में देरी होने की संभावना का पता लगाने पर माथापच्ची करनी चाहिए।
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