सरसा (सच कहूँ न्यूज)। पूज्य बाबा सावन सिंह जी महाराज ने 2 अप्रैल, 1948 को अपनी नूरी देह का त्याग किया और वो रूहानी ताकत शाह मस्ताना जी महाराज के स्वरूप में जीवों का उद्धार करने का अति पुनीत कार्य करने लगी। पूज्य मस्ताना जी महाराज ने पूज्य बाबा जी के चोला (शरीर) बदलने के बाद डेरा सच्चा सौदा की शुभ स्थापना 29 अप्रैल सन् 1948 को की जिसका हुक्म आप जी को पहले ही हो चुका था। पूज्य शहनशाह जी ने सहयोगी सत्संगियों को साथ लेकर डेरा सच्चा सौदा के लिए जगह देखी और साध-संगत की राय से ही जगह पसंद की। ये वही जगह है जहां अब शाह मस्ताना जी धाम बना हुआ है।
यह जगह सरसा-भादरा सड़क पर शहर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उस समय यह जगह बहुत ही वीरान थी। जमीन ऊबड़-खाबड़ थी। कहीं कॉंटेदार झाड़ियां व कहीं गहरे गड्ढे थे। पूज्य शहनशाह मस्ताना जी महाराज ने अपने पवित्र कर-कमलों से फावड़े का टक लगाकर डेरा बनाने का शुभारंभ किया। डेरा सच्चा सौदा के मुहूर्त के समय मुम्बई के एक भक्त ने जो भजन गाया, उसकी टेक थी ‘हरि की कथा कहानियां, गुरमीत सुनाइयां।’ पूज्य बेपरवाह मस्ताना जी महाराज ने इस भजन पर अपनी मस्त-वाणी में व्याख्या भी की और इसके साथ ही आश्रम बनाने की सेवा का कार्य जोर-शोर से शुरू हो गया।
जब डेरा बनकर तैयार हो गया तो पूज्य शहनशाह जी ने समस्त साध-संगत को इकट्ठा किया और उन्हें मुखातिब करते हुए पूछा, ‘‘ अब हमने डेरे का नाम रखना है, क्या रखा जाए? सभी भक्त चुप थे। पूज्य शहनशाह जी ने स्वयं ही निम्नलिखित तीन नामों का सुझाव दिया 1. रूहानी कॉलेज 2. चेतन कुटिया 3. सच्चा सौदा। पूज्य शहनशाह जी ने साध-संगत से पूछा कि इन तीनों में से कौन सा नाम रखें। किसी भक्त ने कहा-साईं जी ‘‘सच्चा सौदा’’ । सर्व-समर्थ सतगुरू पूज्य बेपरवाह जी महाराज ने स्वयं उस भक्त के अंदर बस कर उसके द्वारा यह नाम ‘सच्चा सौदा’ कहलवाया।
इस प्रकार पवित्र जगह का नाम ‘डेरा सच्चा सौदा’ रख दिया गया। पूज्य मस्ताना जी ने स्वयं अपने दिशा-निर्देशन में डेरा सच्चा सौदा की इमारतों का निर्माण करवाया। बाद में ज्यों-ज्यों संगत बढ़ती गई, आप जी संगत की सुविधा के लिए और मकानों का निर्माण करवाते रहे। आप जी ने साध-संगत की सुविधा के लिए अलग-अलग स्थानों पर डेरा सच्चा सौदा के नाम से कई आश्रमों का निर्माण भी करवाया। मकान बनाने तथा गिरवाने का सिलसिला भी चलता रहा।
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