माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर को टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने खरीद लिया है। ऐसा लगता है कि अरबपतियों का मीडिया कंपनियों को खरीदने और संचालित करने का यह दौर है। कुछ वर्ष पहले वाशिंगटन पोस्ट को अमेजॉन डॉट कॉम के जरिये अरबपति बनने वाले जेफ बेजोस ने खरीद लिया था। एलन मस्क ट्विटर इंक को खरीदकर अब इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं। अब जब ट्िवटर को नया मालिक मिल चुका है, तब कयास यही लगाए जा रहे हैं कि आने वाले दिनों में इसमें ढेर सारे बदलाव होंगे। इसकी एक बड़ी वजह खुद एलन मस्क हैं, जो काफी समय से ट्विटर की नीतियों की मुखालफत करते रहे हैं। वह मानते हैं कि ट्विटर बहुत ही महत्वपूर्ण मंच है और देश-दुनिया को इसकी जरूरत है, लेकिन वह इसे सबके हाथों में पहुंचाना चाहते हैं।
समाज और अर्थव्यवस्था के लिहाज से ट्विटर पर हर तरह के संवाद के वह पक्षधर हैं। इससे पहले सरकार की ओर से कुछ ट्विटर हैंडलों को हटाने के लिए कहा गया था, लेकिन ट्विटर ने इस संबंध में यह कहकर कोई कार्रवाई करने से मना कर दिया था कि यह आदेश अवैध है क्योंकि यह भारत में स्थापित मौलिक अधिकारों के विरुद्ध थे। अब सवाल यह है कि इस तरह के मामलों में उनका या ट्विटर का क्या नजरिया होगा, जब सरकारें आदेश देंगी, पर वे आदेश वैध नहीं होंगे। एलन मस्क अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी तरह की रोक-टोक या पाबंदी के विरुद्ध हैं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि किसी देश के जो कानून हैं, उनका पालन किया जायेगा। अगर फेसबुक, वाट्सएप, यू-ट्यूब जैसे मंचों से तुलना करें, तो सबसे कम उपयोगकर्ता ट्विटर के ही हैं, लेकिन इसका प्रभाव बाकी सबसे काफी ज्यादा है। यही वजह है कि भारत भी इन कंपनियों को देश में रहकर काम करने को कहता रहा है। एलन मस्क ने कहा है कि रोबोट्स की मदद से चलाए जा रहे ट्विटर के अकाउंट बंद किए जाएंगे।
ऐसी कवायदों से कंपनी की नीतियों में किस तरह के परिवर्तन होंगे, यह तो नए मालिक की सोच पर निर्भर करेगा। लेकिन नए फेरबदल के बाद ट्विटर में यदि थोड़ी सफाई हो जाती है, तो यह सुखद होगा। अब यह देखना होगा कि ट्विटर पर जो हेट स्पीच यानी नफरत पैदा करने वाली और भड़काने वाली बातें की जाती हैं, उन्हें कैसे नियंत्रित किया जाता है। यह चुनौती भारत में बहुत गंभीर है। यहां तो राजनीतिक पार्टियों ने ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हॉट्सएप जैसे सोशल मीडिया के ठीहों पर नफरत बढ़ाने के लिए कॉल सेंटर तक स्थापित किये हुए हैं। ऐसी चुनौतियों का समाधान तकनीकी रूप से कैसे हो सकता है, यह सवाल भी है क्योंकि यह एक समाजशास्त्रीय समस्या है। बहरहाल, अभी तमाम तरह की अटकलें फिजां में तैर रही हैं। देखना अब यह है कि आने वाले दिनों में ऊंट किस करवट बैठता है।
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