देश में कोरोना के नए मामलों में तेजी की रफ्तार चौंकाने वाली है। लगातार दूसरे सप्ताह कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। बढ़ रहे मामलों में सबसे ज्यादा (करीब दो तिहाई) योगदान दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का है। इनमें भी सबसे ज्यादा मामले एनसीआर के शहरों यानी नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुड़गांव से आ रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली और आसपास के इलाके कोरोना के इस नए विस्फोट का केंद्र बनकर उभरे हैं। इस ट्रेंड की किसी भी सूरत में अनदेखी नहीं की जा सकती। ध्यान रखने की बात है कि मास्क की अनिवार्यता समेत कोरोना संबंधी तमाम पाबंदियां उठाने के फैसले के कुछ ही समय बाद बढ़ोतरी का यह ट्रेंड शुरू हो गया। यह बात अभी साफ नहीं है कि इस बढ़ोतरी के पीछे नए सब-वेरिएंट ओमिक्रॉन की भूमिका है या वैक्सीन की दूसरी डोज के बाद लंबे गैप के कारण घटी इम्यूनिटी की।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई रिसर्च से यह बात सामने आई है कि वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के छह महीने बाद उसका असर कम होने लगता है। हालांकि अपने देश में प्रिकॉशन डोज के लिए कम से कम नौ महीने का गैप अनिवार्य रखा गया है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि इसे घटाकर छह महीने किया जाना चाहिए। बहरहाल, इसमें दो राय नहीं कि कोरोना के नए मामलों में आई अप्रत्याशित तेजी को गंभीरता से लेना होगा। खुद आईसीएमआर के विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार तेजी से बढ़ते मामलों के पीछे प्रमुख वजह यही दिख रही है कि लोगों ने मास्क पहनने बंद कर दिए और कोविड प्रोटोकॉल लगभग भूल गए। अभी भी देरी नहीं हुई है। कोविड प्रोटोकॉल को लेकर देशभर में फिर से जागरूकता बढ़ानी होगी। मास्क और वैक्सीन संक्रमण को रोकने में कितने मददगार हैं, इसकी याद दिलानी होगी। अच्छा हो, सरकारी केंद्रों में भी बूस्टर डोज लगाई जाए।
एक तथ्य यह भी है कि सरकारें कोविड टेस्ट भी पूरी ताकत से नहीं कर रही हैं, जिससे कि महामारी कितनी फैल चुकी है, इसका ठीक-ठीक पता चले। इसलिए टेस्ट की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए। इससे संक्रमण की सही तस्वीर का पता चल पाएगा। कुल मिलाकर, हाल में महामारी को लेकर जो ट्रेंड दिख रहा है, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि सिर्फ दिल्ली, हरियाणा या उत्तर प्रदेश में ही नहीं, सभी प्रदेशों को अभी मास्क अनिवार्य रखना चाहिए। अत: इस जंग को अभी खत्म न मानते हुए वैज्ञानिक अनुसंधान, दवा व वैक्सीन विकास पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।
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